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________________ ६३५ पाश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] विशेष नोट स्थापना की थी-'चेदिवंश' की नहीं, जैसा कि हरि- वाला सिद्ध होता है। वंशपुराणके निम्न वाक्यसे प्रकट है :- जब इन दो कारणोंक विधान-द्वारा लंबक महाविध्यपष्ठेऽभिनन्द्रेग चेदिर ष्टपषिष्ठितम् । शय यह प्रकट कर रहे हैं कि 'ऐलवंश' भी कोई वंश शुक्तिमत्यास्तटेधायि नाम्ना शुक्तिमती पुरी ॥२॥ था-भले ही उसका नामोल्लंग्य न मिले; नब फिर ____ 'राष्ट्र' को 'वंश' प्रतिपादन करना और इस तरह पापका यह कहना कि "हम ने अपने लेख में किसी जान बूझ कर पाठकोंको भुलावेमें डालना, यह लेवक 'ऐलवंश का उल्लेख नहीं किया है, वाग्वेलको एनके अतिसाहस, कलुषित मनोवृत्ति अथवा किसी वि- वंशज' जो लिखा है उसका भाव मात्र इतना ही है कि लक्षण समझका ही परिणाम जान पड़ता है । दूमरं वह ऐलेय वंशम अथवा सन्तनिमें था" और इस तरह यदि किमी तरह थोड़ी देर के लिये चेदिवंशकी इस ऐलवंश' के विना ही लिवंशज' का प्रतिपादन करना स्थापनाको मान भी लिया जाय तो भी कुछ बान बननी क्या अथ रखता है १ उमे पाठक स्वयं ममझमकने हुई मालम नहीं होती; क्योंकि एक ता तब अभिचद्रक है । यह ती मात्र डूबत हुए तिनके को पकड़ने जैसी उत्तराधिकारियोंके नामांके साथ चेदिवंशका अधिक चेष्टा है । स्थापित वंशके बिना संततिका स्मरगा और उल्लेख मिलना चाहिये था परन्तु वह बिलकुल भी नहीं उसका व्यवहार कही लाग्यो वर्ष तक चलता है। मिलता। दूसरं इस स्थापनास 'ऐलवंश के नामां. बाकी मेरं म यक्तिवादका ले कर जिम ऊपर ल्लेखमें क्या बाधा आती है वह कुछ ममझ नहीं पड़ती ! नं दिया गया है, लेवा महाशयनं जो यह लिया है, एक वंश में दूसरे वंश के उदय होने पर ज्यादा में कि- "ऐलयका मन्तान उम हरिवंशका उल्लेय अपने ज्यादा यदि हा ता इतना ही हो सकता है कि पहले लिये क्या करनी, जिममें समक पर्वज ऐलेय पिता का प्रभाव कुछ कम हो जाय परंतु उसका लोप हाना दक्षन अपनी कन्याको पत्नी बनाने का दुष्कर्म किया तो नहीं कहा जा सकता । यदि लोप हानेका ही आग्रह था और गलयको उनमे अलग होकर अपने बाहुबलकिया जाय तो फिर ईक्ष्वाकुवंश मेंमे सयवंश और में स्वाधीन राज्य स्थापित करना पड़ा था ?" वर काई चंद्रवंशका उदय होने पर इक्ष्वाकु वंशका लोप क्यों बड़े ही विलक्षण मस्तिष्ककी उपज मालम होता है, ! नहीं हुआ ? हरिवंश से यदुवंशका उदय होने पर उन्हें यह भी सझ नहीं पड़ा कि वंशमें किी एक. हरिवंशका लोप क्यों नहीं हुआ ? और यदि लापही व्यक्ति कोई दुष्कर्म कर लेनेसे ही वह वंश त्याज्य ही जाता है ऐसा भी मान लिया जाय तब अभिचंद्रके कैसे हो जाता है ? सूर्य, चंद्र और इक्ष्वाकु प्रादि प्र. उत्तराधिकारियों द्वारा यदुवन्शकी स्थापना होने पर सिद्ध वंशोंमें भी कितने ही दुष्कर्म करने वाले हुए हैं चेदिवंशका भी लोप हो गया ऐसा मानना होगा; और आज भी अनंक दुष्कर्म करने वाले मौजूद हैं फिर लेखक महाशय उसकी मत्ता और सिलसिलेको परन्तु उनकी वजहमे किमने इन वंशोंको त्याज्य ठह. खारवेल तक कैसे ले जा सकेंगे ? अतः यह युक्तिवाद राया? अथवा किस किसने इनसे अपना नाम कटाया चापका विलकुल थोथा, निःमार, किसी तरह भी पैरों है ? ऐलेयको यदि अपने पिताके उक्त दुष्कर्म पर रोष न चलने वाला और खुद अपनेको ही बाधा पहुँचाने आया था तो वे भले ही अपनेको पक्षकी मन्ततिमें या
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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