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भनेकान्त
वर्ष १, किरण ११, १२ जिस वंशमें मुनिसुव्रत और नेमिनाथ जैसे तीर्थंकरोंका 'चेदि' की स्थापना कर ली थी, जिसका उल्लेख हरिवंशहोना प्रसिद्ध है।
पुराण करता ही है, तब 'ऐलवंश' का नामोल्लेख मिले ____७ यदि ऐलेय' राजाके बाद वंशका नाम बिलकुल भी तो कैसे मिले ?' 'ऐल'के रूपमें बदल गया होता तो नेमिनाथ भी ऐल- पहले कारणके सम्बंधमें मैं सिर्फ इतना ही बतवंशी' कहलाते; परन्तु ऐसा नहीं है-स्वामी समन्त- लाना चाहता हूँ कि हरिवंशपुराणमें दूसरे वंशोंका भद्र जैसे प्राचीन प्राचार्य भी 'हरिवंशकेतुः' जैसे वर्णन न पाया जाता हो ऐसा नहीं; किन्तु इक्ष्वाकुवंश, विशेषणों के द्वारा उन्हें 'हरिवंशी'हा प्रकट कर रहे हैं। सूर्यवंश, सोम( चंद्र ) वंश, उप्रवंश और कौरववंश
इतनं युक्तिवादके साथमें मौजूद होते हुए भी श्रादि दूसरे वंशोंका भी उसमें वर्णन है (सर्ग १३ लेखकका उसे 'मात्र' शब्दके द्वारा "हरिवंशपराण आदि); जिस अभिचंद्रके द्वारा चेदिवंश की स्थापना में 'ऐलवंश का उल्लेख न होने" तक ही सीमित बतलाई जाती है उसकी रानी वसुमतीको भी 'उग्र' वंश कर देना कितने दुःसाहसको लिय हए अन्यथा कथन की लिखा है और इस रानी वसुमतीसं उत्पन्न होनेवाले है, इस पाठक स्वयं समझ सकते हैं । और माथ ही 'वसु' राजाकी सन्ततिमें आगे चल कर राजा 'यदु' से इस बातको भले प्रकार अनभव कर सकन हैं कि 'यादववंश' की उत्पत्तिका विस्तारके साथ वर्णन किया लेखक महाशय अपनी इष्टसिद्धिके लिये जरूरत पड़ने है । और 'यदु' का हरिवंश रूपी उदयाचल पर सूय पर दूसरोंके कथनको कितनं गलतरूपमें प्रस्तुत करने की समान उदित होना लिखा है । इस तरह दूसरे के लिये उतारू हो जाते हैं । अस्तु ।
वंशांक उल्लेखके माथ जब हरिवशकी एक शाखारूप लेखकन अपने इस लेख में भी दसरे प्राचीन ग्रंथों 'यदुवंश' अथवा 'यादववंश' का भी इस पुराणमें । या अन्य शिलालेखादि परातन साहित्य परसे कोई भी वर्णन है तब 'ऐल' वंशकी स्थापना यदि हुई होती प्रमाण ऐस उपस्थित नहीं किये जो उनकी उक्त कल्प- तो उसका वर्णन न दिया जानेकी कोई वजह नहीं नाको पुष्टि प्रदान कर सकें-'ऐलेय के बाद और खा. था। अतः यह कारण सदोष है और इस युक्तिमें कुछ
भी दम नहीं जान पड़ता। रखेलसे पहले होने वाले हजारों राजामोमेंस एक भी .
दुसरा कारण बड़ा ही विचित्र मालूम होता है ! ऐस राजाका नाम पेश नहीं किया जिसने अपने को
उसमें प्रथम तो राजा अभिचंद्र के द्वारा 'चेदिवंश' की 'ऐलवंशी' लिखा हो या जिसके ऐल' विरुद धारण.
। १०५ कारण स्थापनाका जो उल्लेख है वही मिथ्या है-हरिवंशपुगकरनेका किसीने उल्लेख किया हो।
में चेदिवंश की स्थापनाका कोई उल्लेख नहीं है । राजा ___ अब लेखक महाशय हरिवंशपुगण में
अभिचंद्रनं जिम प्रकार शुक्तिमती नदी के किनारे एक उल्लेख न मिलने के दो कारण बतलाते - एक नगरी बसाई थी उसी प्रकार विन्ध्या वलकं पृष्ठ भाग तो यह कि 'हरिवं रापुराणमें हरिवंश के वर्णनकी प्रथा
पर एक चेदि राष्ट्रकी-चेदि' नामके जनपदकी - नता होनेसे उसमें अन्य वंशोंका परिचय मिलना प्राकृत
* उदियाय यदुस्तत्र हरिवंशोदयाचले। दुर्लभ है' और (२) दूसरे यह कि 'ऐल के उत्तराधि
यादवप्रभवो व्यापी भूमौ भूपतिभारकरः ।।६।। कारियों ने गजा अभिचंद्र के द्वारा जब एक दूसरे वंश
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