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________________ पाश्विन, कार्तिक, वीरनिःसं०२४५६] खारवेल और हिमवन्त थेरावली ६३१ है तो कुछ हर्ज नहीं । आजकल के कितने ही राजवंशों वंशज' जो लिखा है, उसका भाव मात्र इतना हीहै कि के विषयमें एवं अन्यथा भी, इससे भी ज्यादा पुरानी वह ऐलेयवंशमें अथवा सन्ततिमें था। हरिवंशपुराणमें बातोंका उल्लेख मिलता है । स्वयं भगवान ऋषभदेव हरिवंश' का वर्णन करनेकी प्रधानता है। उसमें अन्य वंशसे सम्बन्ध बताने वाले क्षत्रिय श्राज मौजूद हैं। वंशोंका परिचय मिलना प्राकृत दुर्लभ होना चाहिये । . और इतिहासज्ञ विद्वान् भी इस बातको प्रकट करते तो भी उसमें सामान्यतया ऐलेयके वंशज अभिचन्द्रहैं । अतः यह उल्लेख बहुत प्राचीन होनेके कारण ही द्वारा चेदिवंश या राष्ट्र की स्थापनाका उल्लेख मिलता अमान्य नहीं ठहराया जा सकता है । ही है और खारवेल अपनेको चेदिवंशका लिखते ____ मुख्तार मा०'हरिवंशपुगण में 'ऐलवंश' का उल्लेख ही हैं-फिर उन्हें ऐलेयकी सन्तानमें न मानना कैसे न होने मात्र से हमारे कथनको शब्दछल ठहराते है; ठीक है ? भले ही किसी ऐलवंश' का नाम न मिलेपरन्तु खारवेल तो उनके लेखानसार 'ऐल' प्रकट वह मिले भी कम ? जब कि उसके उत्तराधिकारियोंने हो किये गये हैं ? । और हमने अपने लेख्वमें किसी एक दूसरे वंश चेदिकी स्थापना कर ली थी, 'ऐलवंश' का उल्लेख नहीं किया है। ग्वाग्वेलको 'रेल- जिसका उल्लेग्व हरिवंशपुगण करता ही है । तिस पर याँको सूचित करता है और साथ ही इस विषयमें अपने विचार- ऐलेयकी सन्तान उस हरिवंका उल्लेख अपने लिये द्वारको बन्द करनेकी पापगाा करता है। -सम्पादक क्यों करती, जिसमें उसके पूर्वज ऐलेयके पिता 'दक्ष'ने ___x उल्लेख कौनसा अधिक प्राचीन है और अमान्य किमको अपनी कन्याको पत्नी बनानेका दुष्कर्म किया था और ठहराया जाता है ! दनांक सम्बन्धादिकका व्यक्त किये बिना इस ऐलेयको उनसे अलग होकर अपने बाहुबलसे स्वाधीन प्रकारका लिम्बना यह भी एक प्रकारका शब्दछल है और इसका राज्य स्थापित करना पड़ा था ? इस दशामें हरिवंशसे आशय पाठकोंकी गुपगह करने के निकाय और कुछ मालूम नहीं अपनेको अलग बताने के लिए एवं अपने बहादुर पूर्वज ता। क्योंकि गलय' गजा की ११ लाख वर्ष पुगनी कथा पर ऐलेयका नाम कायम रखनके लिये चेदिवशनोंका, कोई आपत्ति नहीं की गई थी; किन्तु इस राजाम गल' वंशकी अपने नाम के साथ 'ऐल' शब्द विरुद या वंश के विशेस्थापनाकी और राजा खारवलक उसी 'एल' वशमें होनेकी जा पणरूपमें धारण करना ठीक है और इस दृष्टिसे उन्हें कल्पना की जाती है उसे प्रसिद्ध निमनिमूल-एवं अमान्य-- n 'ऐलवंशज' कहना समुचित है । अतः खारवेलको राजा arar मनितामा बतलाया गया था। क्या लेखक महाशयको यह खबर न कि एलेयस सम्बन्धित बताना कोरा शब्दछल नहीं हैजिन अधिक पुराने राजवशोंका उल्लेख मिलता है उनक, उन्लेखिका बल्कि यथार्थ बात है। कुछ सिलमिला अथवा पूर्व सम्बन्ध भी मिलता है ! --सम्पादक इस 'नाव' शब्दक द्वारा मेर युक्तिवादको जो सीमित किया अनः जो बातें हमने अपने इस विषयके पूर्वलेख गया है और भागे "उनके लेखानुमार" इन शब्दों द्वारा जायसवाल में प्रकट की थीं, वे अब भी ठीक प्रतीत होती हैं और जीके लेखको जा मरा लेख प्रतिपादन किया गया है वह बड़ी उन्हें सत्य घोषित करनर्म हमें जरा भी संकोच नहीं ही विचित्र घटना है और उसमें लेखककी मनावृत्ति पर खासा प्रकाश है । . पड़ता है । इस सम्बन्ध लेखके अन्तम दिया हुमा सम्पादकीय 'विशेष नोट' देखिये। -सम्पादक * इमे कदाग्रह और हरमीकी पराकाष्टा कहना चाहिये। १. 'भनेका-त' व किरण ४ पृ०२४२ पर मि. जायस- क्योंकि कितनी ही बातेकि स्पष्टतया बाधित अथवा अन्यथा सिद्ध होने बालजीने स्पष्ट लिखा है कि "खारवेलके पूर्वपुरुषका नाम महा- और प्रकारान्तर से तम्प स्वीकार किये जाने पर भी ऐसा लिखनेका मेघवाइन और वंशका नाम ऐल दिवंश था ।" साहस किया जाता है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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