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________________ मार्गशिर, वीरनि० सं० २४५६] लेखकोंको आह्वान खासकर आज कल जब कि जैनसमाज का लेखकोंको आह्वान । वातावरण इस कदर बिगड़ा हश्रा है कि जैनसमाजके धनाढय हर एक सुधारक व हर समाज 'अनेकान्त' पत्र किसी आर्थिक उद्देश्यको लेकर के कामसे चाहे वह काम समाजसधार का हो नहीं निकाला जा रहा है, किन्तु आश्रमको उसके चाहे तालीम का खिलाफ रहते हैं।" उद्देश्योंमें सफल बनाते हुए लोकहितको साधना अथवा लोक सेवा बजाना ही इस पत्रका एक मात्र ध्येय २० बा०कन्हैयालालजी स्टेशनमास्टर, जेरठी टर, जरठा होगा, जिसमें भाग लेना सभी सजनोंका कर्तव्य है। "श्रीसमन्तभद्राश्रमके स्थापित होनेकी अतीव अतः इस सेवायज्ञमें भाग लेनेके लिये देशके सभी प्रसन्नता हुई है और आशा है कि उसके द्वारा सलेखकोंको सादर आह्वान तथा आमंत्रण है और जैनसमाज का सुधार होगा । चूकि मैं भी जैन उनसे निवेदन किया जाता है कि वे प्रौढ़ विचारों तथा समाज का तुच्छ सेवक होकर सेवा करना गहरे अनमंधानको लिये हुए अपनी सुललित लेखनी चाहता हूँ इसलिय मेरा नाम भी सभासदों द्वारा जनताको लाभ पहुँचानेका भरसक यत्न करें। कृपया दर्ज कर लीजिये । में यथाशक्ति तन मन और इस तरह इस पत्र तथा आश्रमको उसके उद्देश्यों में धनसे सेवा बजानकी कोशिश करूँगा।" . सफल बनाएँ । जो लेख असाधारण महत्वके समझे २१ महिलारत्न मगनबाई जे०पी०, बम्बई-- जायँगे उनपर वर्पक अन्तमें पुरस्कार भी दिया जा " आपका कार्य अच्छी तरह से उन्नति पर सकेगा, ऐसी योजना की जा रही है। आ ऐसी मेरी हार्दिक भावना है।" लेखोंके कुछ विषय २२ बा० कामतापसादजी, संम्पादक 'वीर' "मुझे अपने साथ समझिये । मेरा स्वास्थ्य मझे लेखोंके कुछ विषय, स्तंभ अथवा शीर्षक नीचे चाहता हूँ वैसी मेवा करने नहीं देता फिर भी जो दिये जाते हैं, जिन पर उत्तम लेखोंके लिखे जानेकी बन पड़ेगा करने को तय्यार हूँ।" "मैं आश्रमकी ज़रूरत है । लंग्वक महाशय चाहे तो इनमेंस किसीका उन्नति का ही इच्छुक हूँ""मेवा करनके लिये हर अपन लखके लिये पमन्द कर सकते हैं:वक्त तय्यार हूँ।" १-अनकांत-तत्त्व (रहस्य या दृष्टि) २३ बा० फनहचंदनी सेठी, अजमेर २-अनेकांतवादकी मर्यादा आशा है आपकी यह स्कीम दृढता पूर्वक ३-अनकांतवाद, म्याद्वाद और समभंगीवाद संचालित की जावेगी तथा समाज की एक बड़ी ४-जैनागमका प्राण, अथवा परमागमकी जान भारी आवश्यक्ता की पूर्ति करेगी । मैं इसकी ५-अनकांतवाद और लोक-व्यवहार(अथवा जैनप्रवृत्ति) मफलना चाहता हूँ तथा यथाशक्ति सेवाके लिये ६-एकांतवादकी सदोपता, ७-परीक्षाकी प्रधानता तय्यार हूँ।" ८-तत्वविवेक, अथवा जैनतत्त्वज्ञान ९-दर्शनशास्त्रोंका तुलनात्मक अध्ययन २४ बा०ज्योतिप्रसादजी,स० जनप्रदीप'देवबन्द १०-जैनधर्मकी उदारनीति, ११ जैनी अहिंसा "आश्रम खल गया हर्ष हुआ,मेरीभावना है कि १२-भक्तिमार्ग और स्तुति-प्रार्थनादि-हम्य सफलता मिले। 'के विवाहकी चिंता है इससे छुट- १३ सेवा-धर्म, १४ युग-धर्म कारा पाकर रिटायर होनेका निश्चय है फिर श्राश्रममें १५ देशकालानुसार वर्तनका रहस्य रह कर मैं भी निज-परका कार्य कर सकूँगा।" १६ अहिंसा और दयाकी परिभाषा १७ संयमकी मर्यादा, १८ सत्यासत्य-विवेक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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