SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ११, १२ परन्तु उसका अनुभव ही ठीक न था । उपयोगमय 'जम्बद्वीप' मैं मेरा कोई प्रतिवादी नहीं है, इस बातकी प्रात्मा जब किसी एक इन्द्रियके सहारे एक विषयका सूचनाके लिए जम्ब वृक्ष की शाखा हाथमें रख छोड़ी अनुभव करता है, तब वह तन्मय हो जाता है । ऐसी है। लोगों ने उसका नाम 'पोट्टशाल' रख लिया था। अवस्थामें दूसरे विषयका नहीं हो सकता। हां, यह बात रोहगुप्तने उसके साथ शास्त्रार्थ करना स्वीकार अवश्य है कि मन अत्यन्त शीघ संचार करता है इसी किया । और आचार्यसे सब वृत्तान्त कहा । आचार्य लिए वह दूसरे विषयकी और इतनीतंजीम दौड़ जाता बोले-"तुमने यह उचित नहीं किया । तुम वादमें उसे है कि हम कालभेदकी सहसा कल्पना भी नहीं कर हग दोगे तो भी वह अपनी विद्याांके बल पर डटा पाते । किंतु सूक्ष्म-बुद्धिस विचार करने पर समय, श्रा- रहेगा । उसे ये सात विद्यायें खूब सिद्ध हैंबलिका आदि कालका भेद समझमें आ जाता है । एक १ वृश्चिकविद्या, २ सर्पविद्या, ३ मूषकविद्या, ४ दूसरेके ऊपर सौ कमलके पत्ते रखिए, फिर पूग जार मृगीविद्या, ५ वागहीविद्या, ७ पोताकीविद्या । लगाकर एक भाला उनमें घुसड़ दीजिए । साधारण अन्तमें प्राचार्यन इनकी प्रतिपक्षभृत सात विद्याएँ तौर पर यही समझ पड़ेगा कि सौके सौ पत्ते एक साथ रोहगुप्तको सिखलाई-१ मयुरीविद्या, २ नकुलीविद्या छिद गये हैं । परन्तु यह ठीक नहीं है । भाला क्रमशः ३ विडा विद्या, ४ व्याघ्रीविद्या, ५ सिंहीविद्या, ६ उन पत्तोंमें घसाहै। और जब उसने पहले पत्तेको छेदा उल्कीविद्या, ७ उलावकविद्या । आचार्यने रोहगप्तका तब दूसरा नहीं छिदा था। इस प्रकार उनमें काल-भेद रजाहरण मंत्रित करके वहभी उस दिया, जिसे मस्तक पर तो है पर वह साधारण तौर पर ममझमें नहीं आता। घमात ही अन्य विद्याएँ अपना प्रभाव न दिखा सकें। गंग ने भी विशेष ध्यान न दिया और विपरीत प्ररूपणा गहगप्तराजा,लधीकी सभा में पहुँचे । परित्रा भारम्भ करदी, इसीसे वह निहव कहलाया । यह वीर जक बड़ा धर्त था । उसने गेहगुप्तके पक्षको ही अपना निर्वाण में २२८ वर्षवाद हा। पूर्वपक्ष बनाया, जिसमें कि रोहगुप्त उसका खण्डन न वि छठा निन्हव कर सके । वह बोला-"मसारमें दो ही राशियाँ हैं एक जीवराशि और दूमरी अजीवराशि । इनके अति___ अन्तर्गतका नगरीमें बहिभूनगह नामक चेत्यमें रिक्त और कुछ भी संसार में उपलब्ध नहीं होता।" | श्रीगुप्त प्राचार्य ठहरे हुए थे । उनका शिष्य राहगुप्त यह बात रोगप्तके अनुकून थी, तथापि उसे नीचा किसी दूसरे गाँवमें था । वह एक बार बन्दनाकं लिए दिखाने के लिए उन्होंने इसका भी खण्डन किया । वे अन्तरंजिका आया । अन्तरंजिकामें एक परिव्राजक बोले- "तीसरी राशि भी उपलब्ध होती है और वह लोहेके पट्रेसे पेट बाँधकर और जम्ब वक्षकी एक डाली है नौजीवगशि।" हाथमें लेकर घम रहा था। लोग जब उससे पछते- इत्यादि युक्तियांक द्वारा परिव्राजक पराजित हो ____ कर अपनी वृश्चिकविद्या के द्वारा गेहगुप्त पर बिच्छू 'यह क्या स्वाँग बना रक्खा है ?' तो वह उत्तर देता बरसाने लगा। रोहग़प्त ने मयूरीविद्यासे मयर उड़ाना 'मेरा पेट झानसे इतना अधिक भर गया है कि फूटनं प्रारम्भ कर दिया। मयूगेंने बिच्छुओं को मार डाला। का बर है, अतः इमे लोह-पट्टमे बाँध रकवा है । और परिव्राजकने सर्प छोड़ना शुरु किया, रोहगुप्तने नौले
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy