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माश्विन,कार्तिक,पीरनिःसं०२४५६] श्वे० सात निव छोड़ दिये । इसीप्रकार मूषिकके लिए बिलाव, मृगीके गेहगप्तने शरीर में भम्म रमाई और वैशेषिक मन लिए व्याघ्र, शूकरोंके लिए सिंह, काकोंके लिए उल्ल की स्थापना की । गेहगात 'उलक' गोत्र का था और और पोतकीके लिए उलावक छोड़े जाने लगे। उसने छह पदार्थ माने थे, इसीम वह पहलफ भी
परिव्राजक जब इनस पार न पासका तो अन्तम कहलाया। इस प्रकार वैशेषिक मत वीरनिर्वाण मंवन उसने एक गधैया छोड़ी । गधैया श्राती देख रोहगतने ५४४ में स्थापित हुआ !' * अपने मस्तक पर रजाहरणघमाकर वही गधैया जमा रोगप्तने 'नाजीव' गशि एक पृथक मानी थी, दिया । रोहगप्तका जमाना था कि गधैया परिव्राजककं किन्तु बाद में उसने छह पदार्थ क्योंकर मान लियं । ऊपर मल-मूत्र त्याग कर चलती बनी। रोहगलकी अब इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पूरी विजय हुई । मब लोगों ने परिव्राजक को ग्वृष
सातवाँ निन्हव थका और नगरसे निकाल बाहर किया।
दशपुर नगरमें 'मोमदेव' ब्राह्मणकाचौदह विद्याओं गेहगुप्त गुरुके पास गये और सब वृत्तान्त कह का पारदर्शी रक्षित नामक एक पुत्र था । वह सुनाया। गाजी बोले-परिव्राजक को जीत लिया, यह तसलीपत्र आचार्य के समीप दीक्षित हो गया। तो अच्छा किया; किन्तु वादके बाद सभाकं समक्ष तुम्हें उसने गम्स ग्यारह अंग और कुछ दृष्टिवाद सीख लिया स्पष्ट कर देना चाहिए था कि यह हमारा सिद्धांत नहीं था। शपदृष्टिवाद उसने आर्यवर स्वामी में पढ़ लिया है । गहगात इस समय मिथ्यात्वी हो गया था। वह
था। कुछ दिन बाद उसके भाई और माता-पिता आदि बोला-इम सिद्धांतमें कोई दोष ही दिखाई नहीं देता,
भी दीक्षित हो गये। इस प्रकार उसका बड़ा गच्छ हो तब मैं यह कैम म्वीकार कर सकता हूँ। अन्नमें गुरु
गया । गच्छ म चार साधु प्रधान ये -१ दुबलिकाशिष्य मिलकर गजा बलश्री के पास फैमला कगने
पुष्पमित्र, २ विन्ध्य, ३ फल्गुरक्षित, गोष्ठामाहिल । गये । वहाँ निश्वय हुआ कि 'कुत्रिक आपण,' में चल
दुर्बल कापुष्पमित्र विन्ध्य का वाचना देता था। पर का 'नाजीव' माँगना चाहिए। यदि देवना नाजीव दं
वह नववा पव भल गया था। प्राचार्य ने मांचा वि. सका तो रोहगुप्तकी बात ठीक समझी जाय,नदे सका जब ऐमा बद्धिमान भी पर्वको भल गया नी ममग्न तो श्रीगप्त की विजय मानी जाय । सब मिलकर
सत्राको याद रखना बहुत कठिन है। यह विचार महान 'कुत्रिक श्रापण' गये, पर देव 'नाजीव' न दे सका। श्री
अनयांगांका विभाग कर दिया और नय निगाहन गप्तकी जीत हो गई और रोहाप्न नगर बाहर कर दिया ।
विभाग कर दिये । यही श्राचार्य विहार करने का गया । यद्यपि रोहगुप्त पराजित हो चुका था, नथापि
मथरा श्राय और मथुगम दशपुर पहुँच। उसके गुरु उससे ऐम चिढे कि जान जाने विचार के
दशपुर आन बान नास्तिकांक माथ शाला सर पर उन्होंने थक ही दिया।
करने के लिए प्राचार्य भार्यरक्षितने अपने शि
गाष्ठामाहिलका भेजा और अपने पद पर दुबलिका१ 'कुत्रिक प्रापण' एक ऐसा बजार था, जहां तीन लोक क प्रत्येक पार्थ मिल सकता था। वह देवता मे अधिनित था।
* यह बात निहामिक शि में विवागाय है।