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________________ श्राश्विन, कार्तिक, वीरनि० सं० २४५६ ] भारतमें देहात और उनके सुधार की आवश्यकता भारतमें देहात और उनके सुधारकी श्रावश्यकता [ लेखक -- बाब माईदयालजी, बी० ए० नर्स ] सन् १९२१ की मनुष्यगणना के अनुसार हमारे देश की ३२ करोड़ आबादी में से २८ करोड अधिक आदमी देहात में - ग्रामोंमें-रहते हैं । इसी बातको दूसरे शब्दों में यूँ कहा जा सकता है कि यहाँ सौ पीछे नव्वे आदमी देहातमें रहते हैं। जर्मनी और इङ्गलैण्डमें क्रमशः ५४ और २२ प्रतिशत आदमी देहात में रहते हैं । इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि भारतवर्ष प्रधानतः एक देहाती देश है और यहाँ की जनताका अधिकांश भाग देहात में ही रहता है, शहगें और कस्बो में केवल दश प्रतिशत आदमी रहते हैं । हमारं देशमें ६८५६२२ गाँव हैं और २३१३ शहर है । एक लाखसं अधिक आबादी के शहरोंकी तो कुल संख्या तेतीस ही है। अधिकतर संख्या ऐसे शहरों की है जिनकी आबादी १० और २० हजार के बीच में है। अच्छा तो यह है कि इनको शहर कहनेके स्थान पर कस्बे ही कहा जाय । रही गाँवोंकी बात | देहाती आबादी का कोई तीन चौथाई भाग ऐसे गाँवों में रहता है जिनकी आबादी दो हजार और पाँच हजार के बीच होती है। बाकी एक चौथाई आबाद इनसे छोटे छोटे गाँवों रहती है। १ Census of India 1921 Vol. I Part I Page 95 : Census of India 1921 Vol I. Part I Page 40 ३ Census of India 1921 Vol. I Part I Page 65 ५९७ देहातका नाम सुनते ही हमारी आँखों के सामने विचित्र दृश्योंका चक्र बँध जाता है। वे दृश्य गाँव के सादा, प्राकृतिक तथा भोलेभाले जीवन के कारण जितने चित्ताकर्षक और रोचक मालूम होते हैं उतने ही वहाँकी गन्दगी, अज्ञान, प्रचलित कुरीतियों और जीवन की श्रावश्यक सामग्री के अभाव के कारण अरुचिकर और भद्दे मालूम होते हैं। दुनियाकी मँटों और वर्तमान सभ्यता के सँघर्ष से उकताए हुए आदमीको जहाँ प्रामीण जीवन शान्ति देता है वहाँ नही जीवन कुछ आवश्यक वस्तुप्रोके न मिलने के कारण दुखका कारण बन जाता है । जिस प्रकार शहरी जीवन के अच्छे और बुरं दो पहलू हैं, उसी प्रकार देहाती जीवन के भी अच्छे और बुरे दो पहलू हैं। वर्तमान अवस्थाको द हुए यह कहा जा सकता है कि न तो बहुत बड़े बड़े शहरोंका जीवन और न छोटे छोटे गाँवोंका ही जीवन अधिक सुखकर है; बल्कि दरमियानी कम्बोंमें ही आगम है 1 पुराने जमाने और वर्तमान कालमें आकाशसंपूर्ण ग्राम एक देशके ही अंग थे, तो भी प्रत्येक गाँव पातालकासा अंतर हो गया है। यद्यपि पहले भारतकं अथवा श्रास पास के गाँवोंका कुछ समूह - चौबीस परगना, आदि - अपने लिये हर एक वस्तु तैयार कर लेता था और बाकी देशसे उसका बहुत कम सम्बन्ध रहता था । उन लोगोंकी आवश्यकताएँ भी कम थीं और वे प्रायः गाँवोंमें ही पूरी हो जाती थीं । राज्यसी व्यवस्था, अच्छे मार्गोका अभाव तथा उनकी
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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