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________________ ५९८ अनेकान्त वर्ष १, किरण ११, १२ कठिनाइयोंके कारण एक गाँवका बहुत दूरके किसी और सरकारको देहातसुधारकी तरफ पूरा ध्यान देना प्रान्त अथवा गाँवस कोई विशेष सम्बंध न था; और होगा। हमें अपनी समस्त शक्तियोंको देहातसुधारके इसी लिये एक स्थानको अवस्थाका दूसरे स्थानकी काममें लगा देना चाहिये-देहातकी उन्नति तथा सुधार अवस्था पर कोई बहुत गहरा प्रभाव नहीं पड़ता था। के लिये कटिबद्ध हो कर तन-मन-धनसे प्रयत्न करना किन्तु अब जमाना पलट गया है, गाँवकी वह एकता चाहिये । याद रखिये भारतका उद्धार उसके २८ करोड़ तथा स्वाभिमानता (Self sufficiency) प्रायः आदमियोंकी अवहेलना करके नहीं हो सकता । बिना नष्ट हो गई है । अंग्रेजी राज्यके मशीनके समान काम देहातसुधारक देशान्नतिकी बातें व्यर्थ हैं। करने वाले प्रबंधों, रेलों, तारों, सड़कों, समाचार- अब देखना यह है कि देहातक सम्बन्धमें किन पत्रों और समयके प्रभावके कारण अब देशके किन बातों अथवा समस्याओं पर ध्यान देनकी आवएक कोनमें होने वाली घटनाओंका कुछ न कुछ प्रभाव श्यकता है। क्या आपने आज तक कभी देहात-सबंधी प्रत्यक्ष अथवा परोक्षरूपसे दूसरे गाँवों पर अवश्य समस्याओं पर सोचनका कष्ट उठाया है ? देहातकी होता है । अब गाँवोंके आदमियों को भी जीवनकी समस्याएँ भारतवर्षकी समस्याांसे भिन्न नहीं है । छोटी छोटी अवश्यकताओं रंग, सुई, दियासलाई और दहातकी भी वे ही समस्याएँ हैं जो प्रायः समस्त देशकी कपड़े प्रादिके वास्तं बाहर वालोंका मुँह ताकना पड़ता हैं और जिनकी चर्चा आज कल सभी स्थानों पर कुछहै । इतना ही क्यों ? आज यदि बाहर प्रदेशमें कुछ प- न-कुछ चल रही है । परन्तु भेद केवल इतना है कि रिवर्तन अथवा कोई विशेष घटना होती है तो गाँवो उन समस्याओके सम्बन्धमें अब तक जो कुछ भी के भादमियों के जीवन पर भी किसी न किसी रूपमे आन्दोलन हुआ है वह प्रायः समाचारपत्रों और बड़े उसका कुछ प्रभाव जरूर पड़ता है । अपने देश के बड़े शहरों तक ही सीमित रहा है, उससे बाहर देहात किसी भी प्रान्तमें होने वाले दुर्भिक्षोंका, तंजी-मन्दीका में उसकी बहुत कम, नहीं के बराबर चर्चा है । देशकी और अन्य घटनामोंका तो कहना ही क्या, यदि परदेश समस्याओंके विषयमें अभी गाँवोंमें कोई प्रचार-कार्य में भी कोई दुर्भिक्ष, सुकाल या और कोई विशेष घ. नहीं हुआ है। प्रचारके अभावका कारण यह मालम टना घटती है तो उसका भी कुछ-न-कुछ प्रभाव गाँवों होता है कि देहातमें देशकं कार्यकर्ताओंको शहर-वाला पर अवश्य पड़ता है। आराम तथा नाम कम प्राप्त होता है। आजकल काम ऐसी हालतमें तथा राष्ट्रीय उन्नतिके इस यगों के लिये कार्य बहुत कम होता है बाकी सब नाम के गाँवोंकी अवस्था पर हमें अवश्य ध्यान देना होगा। लिये ही किया जाता है । देहातमें काम करनेके लिये अब गाँवोंको तथा प्रामवासियोंको उनके भाग्य पर बड़े ही धैर्य तथा संलग्नताकी जरूरत है और इन गुणों नहीं छोड़ा जा सकता। यदि भारतवर्ष संसारके समु. की बहुत हद तक हमारे कार्यकर्ताओंमें कमी है । दे. न्नत देशोंके साथ चलना चाहता है, यदि वह कुछ कर हातमें व्याख्यान-दाताओंके वास्ते मोटर, मेज, कुर्सी के दिखाना चाहता है और यदि वह चाहता है अपनी प्रादिका अभाव है । सरकारी अफसरोंका ध्यान भी माग उमति, तो भारतवासियोंको, देशके नेताओंको उधर कम ही जाता है । देहातमें जाने के लिये न नेता
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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