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श्रनेकान्त
अभिनन्दन और प्रोत्साहन
'समन्तभद्राश्रम' की स्थापना और 'अनेकान्त' पत्रकी योजना पर समाजके जिन विद्वानों, प्रतिष्ठित परुषों, और पत्र सम्पादकोंने अपने हार्दिक विचार प्रकट किये हैं और उनके द्वारा इन कार्योंका अभिनन्दन करते हुए संचालकोंको प्रोत्साहन दिया है उन में से कुछ सज्जनोंके विचार, उनका आभार मानते हुए, नीचे दिये जाते हैं, जिससे पाठकोंको इन कार्यों की उपयोगिता और आवश्यक्ताका और भी ज्यादा अनुभव होने लगे और वे श्राश्रम के प्रति अपना कर्तव्य पालन करनेके लिये विशेष रूप से सावधान होवें:१ रायबहादुर साहु जुगमन्दरदासजी, चेयरमेन
डिस्टिक्टबोर्ड, आनरेरीमजिष्ट्रेट, नजीबाबाद"मैं आश्रमकी प्रत्येक सेवा करनेको सदैव प्रस्तुत हूँ । वास्तव में आश्रम खोल कर जैनसमाजकी एक बहुत बड़ी आवश्यक्ताको परा करनेका अपने सराहनीय प्रयत्न किया है। इसके लिये आप विशेष धन्यवाद के पात्र हैं।"
२ साहू रघुनन्दनप्रसादजी जैन रईस अमरोहा"मेरा हृदय आपकी संस्था के साथ है, अपनी शक्ति अनुसार इसकी सेवाका प्रयत्न करता रहूँगा ।" "मेरी यह अन्तरंग हार्दिक अभिलाषा है कि यह शुभ कार्य जैन समाज में प्राण डाल कर उसको उन्नति पथ पर ले जावे।"
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३ स्याद्वादवारिधि न्यायालंकार पं० वंशीधर जी, इन्दोर
"आपने जो श्री भगवतीर्थकृत्कल्प स्वामी समन्तभद्राचार्यकं नाम पर श्राश्रम खोल कार्य करने
[वर्ष १, किरण १
की स्कीम सोची है अगर तदनुसार कार्य होने लग जाय तो सचमुच ही एक नयी क्रान्ति पैदा हो जाय, समाजके लब्धप्रतिष्ठ मध्यस्थ विद्वानों की शक्तिका सदुपयोग होने लग जाय, वर्तमान गन्दा वातावरण हट कर एक नई सुगन्ध एवं स्फूर्ति देनेवाली हवा बहने लग जाय - गरज यह है कि जैन धर्मका सच्चा प्रचार होने लग जाय । इस स्कीमके तय्यार करने और तदनुसार कार्य होने लगनेकी आयोजनामें जो आप लगे हुए हैं उसके लिये आप धन्यवादार्ह हैं ।" ४ पं० नाथूरामजी प्रेमी, बम्बई
"आपकी स्कीमको मैं अच्छी तरह पढ़ गया हूँ । मुझे उसमें कोई त्रुटि नहीं मालूम होती है । यदि आपकी यह स्कीम सफल हो, तो सचमुच ही बहुत काम हो । एक तो सफल होनेके लिये अच्छी रक़म चाहिये और अच्छे आदमी मिलने चाहियें। अच्छे आदमियोंके मिलने में मुझे सन्देह है । मैं आपको क्या सहायता दे सकता हूँ, सो श्राप जानते हैं। मुझसे तो आप बलात् भी सहायता ले सकते हैं ।"
५ दयासागर पं० बाबूरामजी, आगरा-
"मेरी हार्दिक इच्छा है कि श्रीमान्का लगाया हुआ यह पौदा हरा भरा हो और समाजका इससे कल्याण हो । मैं सभासद ही नहीं श्रीमान्के - श्रममें रह कर अपना जीवन सुधारूँगा । मुझे आपसे समाजहितकी बहुत बड़ी आशा थी जो प्रभुने पूर्ण की। बहुत शीघ्र मैं आपकी सेवामें हाजिर हूँगा।"