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________________ अनकान्त [वष १, किरण ११, १२ और मयर माले बहनोई थे। मयर कविकी बी ने ही एक विद्वान कुछ कहता है और दूसरा कुछ।। अपने गुम प्रगायकलहको सुन लेनके कारण अपने योगिराट् पण्डिताचार्यने 'पार्वाभ्युदयटीका' में भाईको शाप दिया जिसमे घाणको कोढ़ हो गया । मंघदूतके कर्ता कालिदासके जिनमनस्वामी द्वारा अपइस काढको उन्होंने 'सूर्यशतक' के प्रभावसे अच्छा मानिन होनेकी कथा लिखी है, परन्तु भगवजिनसेन कर लिया, फिर मयग्ने अपनी शक्ति दिग्बनाने के कालिदाससे बहुत पीछे हुए हैं और इसके लिए 'पायलिए अपने हाथ पैर काट लिय और 'चण्डिकास्तोत्र' हाली' के जैनमन्दिरका कविवर रविकीत्ति-कृत शिलारच कर उसके प्रभावमे फिर ज्योंका त्यों शरीर कर लेख बहुत ही पुट प्रमाण है जिसमें कालिदासके निया । गजमभाकं प्रधान पुरुषांने यह मय देख कर उन्लेग्व वाला वाक्य इस प्रकार दिया हैगजाम कहा कि जैनमनमें कोई ऐसा प्रभाव हो, नो येनायोजि नवेऽश्म जैनोंको इस देशमें रहने देना चाहिए, नहीं तो निकाल स्थिरमर्थविधी विवकिना जिनवेश्म् । दना चाहिए । नय माननंगाचार्य बुलाये गये । श्राग्निर म विजयतां रविकीतिः उन्होंने अपने शरीरको ४४ बंडियोम जकड़वा लिया कविताश्रितकालिदासभारविकीनिः ।। और मंत्रगर्भ मनामरम्तोत्रकी रचना करके एक एक यह शक संवत ५५६ का लिग्वा हुआ है, जब कि पग पढ़ कर प्रत्येक बेड़ीम अपनेको मुक्त कर लिया। ।। जिनमनाचार्यने जयधवनाटीकाकी समाप्ति शक संवत नीमती कथा श्वेताम्बगचार्य गगाकर' की 'भक्ता भक्ता ७५९ में की है। इसमें स्पष्ट है कि कालिदास जिनसन मरम्तोत्रवृनि ' मे दी है जो वि० सं० १४०६ की बनी का बना म्वामीसे लगभग २०० वर्ष पहले खब प्रसिद्ध हो चुके हुई है। यह कथा प्रबंधचिंतामगिकी अपेक्षा कुछ थे. इस लिए उनका अपमानित करनी कथा कपालवितत है. और इममें 'मयर' का श्वसुर और 'बागा' कल्पित है। कही जा सकती है। को जामाता बतलाया है तथा मयरने 'मर्यशतक' की 'दर्शनमाके की देवसेनसग्नि काटासंघकी और वाणनं 'चण्डिशतक' की रचना करके अपना उत्पत्ति शक संवत् ७५३ में बनलाई है और जिनसेनके प्रभाव दिखलाया है । गजाका नाम 'वृद्ध भोज ' सतीर्थ विनयसनके शिष्य कुमारसेनको उमका उत्पादक बनलाया है जिसकी मभामें वागा और मयर थे। शोर मयर था बतलाया है; परन्तु बलाकीदामने अपने वचनकोशमें अच्छी तरह विचार करनेम इन मब कथाओका काष्ठासंघ उत्पादक लोहाचार्यको पतला कर काठकी ऐतिहासिक मूल्य कितना है, यह ममझमें आये बिना प्रतिमा पजन आदिक सम्बन्धमें एक कथा ही गढ़ नहीं रहता । भोज, कालिदास, भारवि, वाण, डाली है। मयर, माघ, महरि, वाचि आदि प्रायः सभी आराधनाकथाकांशम लिखा है कि प्रकलाभट्ट का समय निश्चित होचुका है और इसलिए इन सबका पुरुषोत्तम नामक प्रामणके पुत्र थे; परन्तु भट्टाकलंक कोई इनिहासह विद्वान तो सम सामयिक माननेको के ही बनाये हुए राजवार्तिकमें एक लोक है, उससे तैयार न होगा। एक इन्हें श्वेताम्बर बतलाता है तो मालूम होता है कि वे लप 'हव' नामक नृपतिके ज्येष्ठ दमग निगम्बर और मजा यह कि एक सम्प्रदाय का पत्र थे। वह लोक यह:
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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