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आश्विन, कार्तिक, वीनि० सं०२४५६] इतिहास वे सर्वथा भ्रमशन्य नहीं हैं । : तिहासकी दृष्टिम वे महाव्याधिः पनिपमानन्धमार्गो भगवन कि लिखे भी नहीं गये, केवल धर्मप्रभावनाको प्रकट करने क्रियतामिति वाणां भगवता परमात्मनो गणके स्वयालम लिम्वे गये है। उदाहरणकं नौर पर कुछ गणस्तांत्रविधीयतामित्यादिष्टःभकामरेन्यादित." नमून नीचे दम्वियं ----
, अथान मानतुंग नामक श्वेताम्बर महाकवि छ । 'भक्तामर स्तोत्रक कना माननामरिक विषयमं एक दिगम्बराचार्यन उनका महाच्याधिम मुनका हमारे यहाँ कई कथायें है जो एक दृमर्गस ना दिया. ममं होने दिगम्बर मागं धारण कर लिया मिलती है। एक भट्टारक मकलचंद्रके शिष्य ब्रह्मचारी और पछा कि भगवन . अब मैं क्या करे ? नब दिग'यमल्लजी' कृन भक्तामरवत्ति है. जो मंचन १६६७ को बरावार्यन प्राज्ञा दी कि परमात्मा गणांका स्तोत्र ममाप्त हुई है * । उममें धागधीश भाजकी गजसभा धनाश्री. इस पर उन्होंने भक्तामगति तात्रकी रचना में कालिदास, भारवि, माघ श्रादि भिन्न समयवर्ती की। प्रभाचंद्राचायकी इमी टीकाको एक और पान अनेक कवि एकत्र बनलाये गये हैं और लिखा है कि हमने देखी है जिसकी व्यानिका माननानामा उमा ममय मानतुज न ४८ मांकलोको नाड़ कर जैन- मिनाबगं महाकविः' की जगह 'मानतानामा धमकी प्रभावना की नथा गजा भोजको जैनधर्मका बौद्ध महाकविः लिम्बा हुआ है। उपासक बना लिया। दूमर्ग कथा भट्टारक विश्वभपगण
___ इसी प्रकार श्वनाम्बर सम्प्रदायमे, "क कथा श्वना कृत भक्तामरचग्नि' में है जिमका पाबद्ध अनुवाद
भ्यराचार्य श्रीपभाचद्रमरिकृत प्रभावकारित'म दीहुई. पं० विनोदीलालका किया हुआ मिलना है ४ । इसमें
जा विक्रम संवत १३२४का बना हुआ है। इसके मन भोज, भर्तहरि, शुभचंद्र, कालिदास. धनजय, वरमाच.
मार मानतुंग काशीके धनदेव श्रेणीक पुत्र थे। पहले मानतुङ्ग आदि मबकी मम-सामयिक बतलाया है और
उन्होंने एक दिगम्बर मुनिम दीक्षा ली और उनका नाम अन्तम लिखा है कि न कंवल भोजन ही किन्तु कालि
'चामकीनि महाकौति रकम्वा गया,पीछे एक श्वेताम्बर दासन भी जैनधर्म स्वीकार कर लिया। इन दोनों ही
मम्प्रदायकी अनयायिनी श्राविकाने उनके कमण्डल के •पथाओंमें जब यह लिम्बा है कि गजा भोज के द्वाग
जलमं त्रमजीव बतलाय जिममं उन दिगम्बरचर्याम ४८ कोठस्थिोंमें सॉकलोम बाँधे जाने पर मानतुङ्गमार
विक्ति हो गई और पास्थिर वे 'जिनसिंह' नामक श्वं नेतामरम्नानकी रचना की, तब आचार्य प्रभाचंद्र
नाम्नगचार्य निकट दीक्षित हो कर श्वनाम्बर माधने क्रियाकलाप-टीका' के अंतर्गत भक्तामरम्नात्रटीका
हो गये, और उमी अवस्थामें उन्होंने भकामरकी रचना की स्थानिकाम लिखा है- "मानतुम्नामा सि.
की। दमर्ग कथा श्वेताम्बराचार्य मेमनंग'-कम 'प्रषध ताम्बरां महाकावा निग्रन्याचावयापनान- चिनामणि' में लिखा है । यह पथ विक्रम मवन १३६०
* इसका अनुवाद प. उदयनाल ती कागलीवाल-कृत प्रकाशित का बना हुआ है । इसमें लिम्बा है कि महाकवि बाग हो चुका है। • यह क्या मेरे मटीकमा मानुवान भकामानाक पहन भयहारका मिनिटाफ, १८ मकरणकी भमिका में प्रकाशित की गई है।
-...की प्रति।