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________________ पाश्विन, कार्तिक, वीरनि० सं०२४५६] इतिहास जीयाधिग्पकलनमा लघवनपतिवरतनयः। कर डालें। जब कोई इतिहास विद्वान किसी व्यक्ति अनवरतनिखिलविदजनननविधः प्रशस्तजनहयः। कं समयका पता लगाना चाहता है. तब वह पहलेसे बहुतसी कथायें ऐमी है जिनमें दो महापापोंके किमी ऊँटपटॉग समयकी कल्पना करके फिर उसके चरित इम नरह लिम्व गये हैं कि उनमें एक दूसरेका सिद्ध करनेवाले प्रमाण नहीं ढूंढता; किन्तु इस विषयके अनकरण करके लिखे जानेका भ्रम हाना है । जेमें जितने प्रमाण मिल सकते हैं उनका संग्रह करके फिर श्वेताम्बगवार्य मिद्ध पेनमरिकी और दिगम्बराचार्य उनका नारतम्य मिलाकर समय निश्चित करता है । ममन्तभद्रम्वामी की कथा । इनमम एकन अपने प्रभाव इमी नरहमे इन कथायाम कही हुई बातांका सिद्ध से उज्जैन के महाकालेश्वरका निंग फाड़ कर उममम करने का निश्चय करके फिर उनकी पुष्टिकं लिए अम्न. जिन भगवान की प्रतिमा प्रगट की और दमन काणी यम्न प्रमाण ढढना ठीक नहीं । चाहिए यह कि पहले या कांवीमे महादेवका लिंग फाड़कर चन्द्र भिकी प्रमाण दृढ जावें और फिर उन परमं कथाभोंकी स. प्रतिमा प्रगट की । इमी तरह भटाकलंकवक और यता सिद्ध की जावे । भक्तामरकी इम कथाको स्वयंश्वेताम्बराचार्य हरिभद्रमरिकी कथा है । एकमे जो सिद्ध मानकर कि चारण, मया भोज और कालिदाम स परमहंस हैं दृमर्गम व हा अकलक. और निकलंक ॥क समयमे थे-- जा माशय टेट प्याज कांग, मंभव हैं। बौद्धोका अत्याचार दोनों में ही दिखलाया गया है कि उन्हें दो चार इनिहामानभिज्ञ एतद्देशीय विद्वानों अनेक कथायें एमी भी है, जिनम वैदिक गौर के और चार छा चश्वप्रवंशकारी यगंपियन विद्वानाक, बौद्धधर्मकं प्रसिद्ध प्रसिद्ध गजात्रा और विद्वानांक. एम प्रमाण मिन्न जाव. जिनमे पर ममकालीनता मिद्ध विषयमं यह कहा गया है कि पीछम जनयमानया नाव, पोर इसमे व श्रापका तय ममम बैठे, हो गये थे । दिगम्बर और प्रवनाम्बर सम्प्रदाय प्रथा परन्तु हम प्रकारका मिद्धि काना कफ बान है और मे बहती कथायें मी भी है जिनम माम्बान mirit.inमायका म्यान काना मग बात। सिद्धमन, मानतुङ्ग, भपाल श्रादि आचाको अपना विक्रमकी मानवी शनालीक कायकजाधिपनि म अपना बतलानका प्रयत्न किया गया। अथान इन ज श्रीरपक. ममाका धागा-मनका. महाग विद्वानीको एक कथा श्वनाम्बर सम्प्रदायका बनलाती विक्रमादित्यक ममयजनी महाकवि कालिदासको और है और दुमरी दिगम्बर मम्प्रदायका। ज्यारहवी शताब्दी के परमारवंगीय महाराज माजरा हम यह नहीं करने कि इन कथाअाम मह भा 'क जगह विठलानका माहम कोडे इतिहासमवय ता तथ्य नहीं है अथवा ये बिलकुन ही मिथ्या है परन्तु नही समकना । एमके मिवायहम यहभानो मानना जो लोग इनिहामी ग्वाज करना वाहन है और मन्या- चाहिए कि हमारे ही जना जना या-पंधोमें जब 14 न्वेषी हैं उनसे यह प्राथना अवश्य कर देना चाहते हैं वाक्यता नहीं है, नब इन कथामांका-कवल शमनिए कि वे इन कथानों पर एकाएक पूर्ण विश्वास न कर कि ये हमागह-प्रमाणभन कैम मान लिया जाय। बैठे और न इन कथामांके तथ्यों को ही अपना अश्य पहले इनको एकवाक्यता कीजिए, अथवा चियितामानकर उनके पृष्ट करने के लिए जमीन भासमान एक बोकी योग्यता पर विचार करके किसी पकको विशेष
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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