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________________ आश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६ ] जैन-मंत्रशास्त्र और 'ज्वालिनीमत' जैन. मंत्रशास्त्र और 'ज्वालिनीमत' ( २ ) इन्द्रनन्दि योगीन्द्रकृत ‘ज्वालिनीमत' अथवा 'ज्वा लिनीकल्प' नामका जैन मन्त्रशास्त्र, जिसकी मूलोत्पत्ति दिकी रोचक कथा 'अनेकान्त' की पिछली किरण में दी जा चुकी है, देहलीमें भी मौजूद है और उसके साथ में पं० चंद्रशेखर शास्त्रीका नया हिन्दी अ नुवाद भी लगा हुआ है, जो बहुत कुछ साधारण तथा त्रुटिपूर्ण जान पड़ता है। इसकी एक प्रति हाल ही में चंद-गेज के लिये मुझे ला मनोहरलालजी जौहरी के पास से देखने को मिली थी । इस मंत्रशास्त्र में, मंत्रसाधन करने वाले 'मंत्री' का स्वरूप बतलाते हुए अथवा यह प्रतिपादन करतं हुए कि किसको मंत्रसिद्धि होती है— कौन उसका पात्र है, लिखा है : मौनी निममितचित्तां मेधावी वीज शरणममर्थः । माया-मदन- मदोनः सिद्धयति मंत्री न संदेहः || ३० सम्यग्दर्शन शुद्ध देव्यचनतत्परां व्रतममेनः । मंत्रजपहोमनिग्नोऽनालस्यां जायते मंत्री ॥ १ ॥ देव- गुरु समयभक्तः सविकल्पः सत्यवाग्विदग्ध । वाक्पटुपगतशंकः शुचिगमना भवेन्मंत्री ||३२|| देव्याः पदयुगको तानार्यक्रमाब्जभक्तियुतः ! स्वगुरूपदेशप र्गेण वर्ततेयः ममंत्री स्थान ॥3 ॥ श्रर्थान्– ' जो मांनी ( साधनावस्था में मौन में रहने वाला) हो, नियमित चित्त हो, मेधावी हो, मंत्र ५५५ बीजाक्षरोके धारणामे - श्रवगाहनमें समर्थ हो. माया-मदन और मदसे हीन हो वह मंत्री निःसंदेह सिद्धविग होता है । जो शुद्ध सम्यग्दर्शनका धारक हां, देवी ( ज्वालामालिनी) के पूजन में तत्पर हो सहित हो. मंत्र जप- होममे लीन हो और निगलस्य हां वह मंत्री होनेके योग्य है । जो देव गुरु धर्मका मत हो, सविकल्प ( सविचार । हो, सच बोलने वाला हा चतुर हो, वाकपट हो, भयरहित हो, पवित्र हा अ चित्त हो, वह मंत्री होनेका पात्र है । जो देवी के चरणयुगलका भक्त हो हलाचार्यके चरण कमलाम भक्तिका लिये हुए हां और अपने गमके उपदेशानमार वर्तता हो वह मन्त्री होता है।' साथ ही यह भी लिखा है कि विद्या और गुरुकी भक्ति जो युक्त है उसे देवी (ज्वालामालिनी) तुष्टि-पत्रि प्रदान करती है और जिसका चिन इनकी भक्तिम रहिन है उस पर वह दवा उपभाव रखती हैकोप करती है। और इसके बाद जाशदम मन्त्रमाचन का पात्र नही जिसे इस शास्त्र में वांगत मंत्री सिद्ध करनेका अधिकार नहीं उसका स्वरूप इस प कार दिया है सम्यग्दर्शनदुरी बाक्कुटश्छन्द सांभयसमं तः । शून्यहृदयः मलज्जः शाखंऽस्मिन नो भवेन्मंत्री ॥ ३४ • टीम 'मंत्रबीजाक्षरावगाहनशन: 'म लिखा है,
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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