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________________ आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६] अनेकांत पर लोकमत ५५१ पत्रिकाएँ ( साप्ताहिक, मासिक आदि ) निकलते ७२ श्री. प्राक्तनविमर्श-विचक्षण रावबहादुर हैं और वे जैनसमाजको उन्नतिके शिखर पर ले जाने- आर० नरसिंहाचार्यजी एम.ए. मल्लेश्वरम् की चेष्टा कर रहे हैं परन्तु उनका कार्यक्षेत्र बहुधा (बैंगलौर )सामाजिक सुधार तक ही परिमित है । इनमें साहित्य, “ I have to express my thauks to इतिहास और सिद्धान्तसे सम्बन्ध रखने वाला पत्र you foryour courtesy in sending me two कोई नहीं । यद्यपि समय समय पर ऐसे पत्र निकलते issues of your vuluable monthly jourरहे हैं यथा “जैन सिद्धान्तभास्कर", "वीरशासन", ml, the "Anekruta '' The journal coutains information on a variety of "जैनहितैषी", "जैनसाहित्यसंशोधक" आदि परन्तु वे subjects and will be useful not only to चिरकाल जीवित न रह सके और इस प्रकारके पत्रका the jains but also others. The Jain अभाव वैसेका वैसा बना रहा । अब इस अभावको दूर Gazette, which is in english, cuu be aकरने के लिये “अनेकान्त" ने मासिक रूपमें जन्म Ppreciated only by u small circle of लिया है। इसका मुख्य उद्देश्य जैनसिद्धान्त, साहित्य english knowing jains, but your jour. nal appeals to a wider circle of rendeis. और इतिहासके विषयमें खोज करना है। इसके लेख I wish your journal every success. प्रायः अपने लेखकोंके मौलिक अनुसंधानका परिणाम I am giad to see in both the issues है। यह पत्र जैनधर्मके अभ्यासियोंके लिये अति उप- urticles on jnin kunarese poets. These योगी है। contributions are important as they bring to the notice of nonkansiese ___ मेरी मम्मनिमें यदि मामाजिक विषय इममे । knowing jains the literary work done पृथक रकावे जायँ तो अच्छा हो । फिर चाहं इसको छै by their coreligionists in the Kanarese मासिक या त्रैमासिक ही कर दिया जाय । मामाजिक (omtiy.'' विपयों के लिये पृथक् पत्रकी आयोजना की जाय । मै “I am glnd that you are supplying at leal want loy the publications of this ममझता हूँ कि एक ता उच्च कोटिके लेग्व इकट्ठा कर usefini Journal" के मासिक पत्र चलाना कठिन होगा । दूसरे जो अ __'आपने अपने बहुमूल्य मामिक पत्र 'अनेकान्त'जैन सजन जैन धर्म के अभ्यासी हैं उनको सामाजिक की दो किरणें मेरे पाम भेजी इम सौजन्यके लिये मैं विपयके लेग्ब कुछ अधिक रुचिकर न होगे। इसी आपका धन्यवाद करता हूँ। पत्र नाना प्रकारके विषप्रकार सामाजिक सुधार वालों का साहित्यिक विषयकुछ यांकी विज्ञापनाको लिये हुए हैं और वह केवल जैनिमचिकर न होगे। योंके लिये ही नहीं बल्कि दूमरोंके लिये भी उपयोगी अंतमें मेरी भावना है कि जैन धर्मको देदीप्यमान होगा। जैनगजट जो कि अंग्रेजीमें है, सिर्फ अंग्रेजी करता हुआ "अनेकान्त" उत्तरोत्तर उन्नतिको प्राण जानने वाले जैनियों के एक छोटेसे मंडल के द्वारा ही होता हुआ सदा जीवित रहे।" समझा जा सकता है,परंतु आपका पत्र पाठकोंके एक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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