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________________ अनकान्त [वर्ष १, किरण १ को खोज खोज कर प्रकाशमें लाना और उसके कर्तव्य है । अतः समाजके प्रत्येक व्यक्ति को आश्रमके द्वारा जैनियोंमें नवजीवनका संचार करना तथा प्रति शीघ्र ही अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिये-जो भारतवर्षका सञ्चा पूर्ण इतिहास तय्यार करनेमें जिसके योग्य है, अपनी शक्ति को न छिपाकर, उसे मदद करना। उसी सेवाका भार अपने ऊपर लेना चाहिये । और (घ) वर्तमान जैनसाहित्यसे अधिकस अधिक लाभ इस तरह पर अपने को एक जीवित समाज का अंग कैसे उठाया जा सकता है, इसकी सन्दर योजनाएँ साबित करना चाहिये। तय्यार करके उन्हें कार्य में परिणत करना और कराना। २ श्राश्रम का नामकरण (छ) सुरीतियोंके प्रचार और कुरीतियोंके बहिष्कारमें इस सेवाश्रमका नाम 'समन्तभद्राश्रम' रक्खा गया सहायक बनना तथा दूसरे प्रकारमे भी समाजके है और उसकी वजह है । समन्तभद्रका अर्थ है 'समउत्थानमें मदद करना और उसे स्वावलम्बी, सुखी न्तात् भद्र'--'सब ओर से भद्ररूप' और 'भद्र' कहते तथा वर्द्धमान बनाना। हैं कल्याण, मंगल, शुभ, श्रेष्ठ, साधु, मनोज्ञ, क्षेम, इन उद्देश्योंकी पूर्ति और सिद्धिके लिये यह आश्रम प्रसन्न और सानुकम्प को । जो सेवाकार्य सब ओरसे जिन कार्यों को अपने हाथमें लेना चाहता है उनकी भद्ररूप न हो उसका कोई खास महत्व नहीं । एक एक सूची आश्रमकी विज्ञप्ति नं. १ में दी जा चकी सेवाश्रम को सब ओर से भद्ररूप-मंगलमय-होना है *। उस पर से पाठकों को मालम होगा कि, धर्म ही चाहिये । आश्रमके संस्थापकोंका लक्ष्य इस आश्रम तथा समाज का उत्थान करने, उनके लमप्राय गौरवका का सब ओरस भद्रता में परिणत करके इसे 'समन्तफिर से उजालने, प्राचीन कोर्तियों को सुरक्षित रखन, भद्र' बनाने का है, और इसलिये यह इस आश्रमके इतिहासका उद्धार करने, समाजकं व्यक्तियों की ज्ञान- नामकरण में पहली दृष्टि है। वृद्धि करके उन्हें उनके कर्तव्य का सञ्चा बोध कराने दूसरे, समन्तभद्र 'जिन' का अथवा 'जिनेंद्र' का अथवा जैनजाति की जीवित जातियों में गणना करा पर्याय नाम है । इसीसे जिनसहस्रनाम में “समन्तभद्रः कर उसका भविष्य सुधारने और जैनशासन को समु- शान्तारिर्धर्माचार्यो दयानिधिः" इस वाक्यके द्वारा मत बनाने के लिये ये सब कार्य कितनं अधिक ज़रूरी जिनदेवका एक नाम 'समन्तभद्र' भी दिया है । अमरहै। साथ ही, यह भी अनुभव में आएगा कि ये संपूर्ण कोश के निम्न वाक्यसे भी ऐसा ही ध्वनित होता है:कार्य समाजके सहयोगकी कितनी अधिक अपेक्षा रखते समन्तभद्रां भगवान् मार जिल्लांकजिज्जिनः । हैं, कितने अधिक जन-धनकी इनके लिये जरूरत हैकितने विद्वानों, धनवानों तथा दसरे सज्जनों की सेवा इसमें, पूर्वापर सम्बन्ध से, समन्तभद्र को बद्ध का इन्हें चाहिये-पाश्रमके बाहर भी कितनं व्यक्तियों पयाय नाम भी सूचित किया गया है और इसस इस की इनमें योजना की जा सकती है और उन्हें समुचित नाममें और भी महत्व आजाता है । इस दृष्टि से सेवाकार्य दिया जा सकता है। प्रस्तु; आश्रमकी योजना जैनों द्वारा स्थापित होने के कारण यह आश्रम समन्तहो चुकी-वह खल गया--अब उसको निबाहना. भद्रका-जिनेंद्र का-अथवा महावीर जिनका आश्रम स्थिर रखना और सफल बनाना यह सब समाजके है, और इसमें भगवान महावीरके आदर्शका पालन हाथ की बात है और वैसा करना उसका परम पवित्र होगा अथवा उनके शिक्षासमूह पर विशेष लक्ष रक्खा --- जायगा, ऐसा आशय संनिहित है। इसीको भ्यानमें ___ * जिन्हें यस विज्ञप्ति अभी तक देखने को न मिली हो वे रखकर आश्रम के पहले उद्देश्य की सृष्टि की गई है। माश्रम से उसे मँगवाकर देख सकते हैं। बुद्ध का भी पर्याय नाम समन्तभद्र होने से यदि इस
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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