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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८, ९.५० जाने योग्य हस्तलिखित प्रति मिल जायगी। पन्नर नेम पलंबचय बहुय पडेविणु भग्ग ॥ ॥ ___ अपने पाठकोंके लिये मैंने यहाँ पर कुछ दोहे दे अप्पा बज्झइ निच्च जइ केवलनाण सहाउ । दिये हैं-हस्तलिखित प्रतिमें विगमचिन्ह ठीक तौरस ता पर किन्नइकाई बढ तणुउपरि अण गउ॥२३ लगे हुए नहीं हैं-अथवा पदोंका विभक्तीकरण ठीक जस मणि नाणु न विष्फरइ कम्महं हेउ कम्नु । नहीं हो रहा है-और मेग सविनय निवेदन है कि सो मुणि पावइ सक्ख न वि सयलई सत्य मुणंत . ४ यदि इनके देनेमें कोई अशुद्धियाँ हों तो मुझे उनका नवि तहं पंडिउ मुक्खन विन वि ईसरु नन नीस । संशोधन करा दिया जाय । निम्न पद्योंमेंस कुछ पद्यों- -
नवि गुरु कोइ विसीमु न वि सव्वु इकम्म विमेसु २७ के महश-पद्योंका भी मैंने फुटनोटों द्वारा नाट कर
पुण्णु वि पाउ वि काल न विधमु अहंमु न काउ । दिया है जो कि 'परमात्मप्रकाश' और 'योगसार' में पाये जाते हैं।
एक्कु वि जीवन होहि तुहुँ मिल्लिअ चेअण भाउ। गुरु दिणयरु गुरु हिमकिरण गुरु दीवउगुरु देउ ।
ना कम्मह केरउ भावडउ जइ अप्पणा धणेहि :
" अप्पहं परहं परंपरहं जो दरिसावइ भेउ ॥ १॥
तो वि न पावहि परमपउ पुण संसारु भमेहि ।। ३६ 'नं महु विसयपग्मुहउ नियअप्पा झायंतु । वन विहण उ नाणमउ जो भावइ सम्भाउ । नं सह इंद विन उ लहइ देविहि काडि रमंत ॥२ बंभनिरंजणु सो जि सिउ तहिं किज्जइ अणगउ३७ नवि भंजता विसयमह हियडइ भाउ धति। देहा देउलि जो वसइ सतिहि सहि...देउ । सालिसित्थु निम वापुडा नरनरयह निवड नि । ५ तित्यहि जोइय लहि सिद्ध ........उ ॥५॥ घधइ पडियउ सयल जग कम्मई करइ अयाण। अप्पा केवल णाणमउ हियडइ तिवमा जाम । माक्खह कारणि पकु खिणन विचितइ अप्पाण।६ तिहुयणि अचरइ माकलउ पाउन लग्गइ तास॥५६ मोहु विलिज्जिइ मण गलइ तुट्टइ साम निसाम चितइ जंपइ कुणइंण वि जो मुणि बंधण हेउ ।
केवलनाणु विपरिणवह अंबरि जाह निवासु।१४ १ तुलना को परमात्मप्रकाश का पद्य न०६२ मा जो मुणि डिवि विसय मुह पण अहिलास करेइ। कि प्राथ ममान है। उंचण सोसण मो सहइ पण मसास भमेड १५॥ दह नीकी प्रतिमें इस पद्यम पहले "हा गारस हर मामलाउ'
इत्य दि पद्य दिया है, वह बिनकुल परमात्मपकाशका पद्य न०८१ है । उम्मूलिव ते मूलगण उत्तरगुणहि विलग्ग । '
-सम्पादक] १ प्रथम पादको छोड़ कर यह पद्य की है जैसा कि पर- २परमात्मप्रकाश पद्य १३ और यह एक ही है। मात्मप्रकाश का पद्य न० ११८,
३ यह ५० प्री तोरम नी पहा गया, अक्षर मिट गये हैं । २ इस दोहमें शालिमिया उखक लिये दया भावपाड यांनी स्पष्ट नहीं हैं। फिर भी परमात्मप्रकाश के पद्य न:: की गाथा ८६ और उस पर तसागरको टीका (मा. प्रथमाला) और योगसार क पद्य न० ४१, ४२ के साथ तुलना कीजिये ।
३ प्रथम पादके लिये तुलना को योगसार पय .१।। यह पूरा दोहा दहनीकी प्रतिमें इस प्रकार दिया है४भाषासम्बन्धी सशोधनोंको बीचमं दाले बिना ही ज्यों की देहादेवलि जो वसइ सत्रिहिं सहियउ देउ । तो कापी की गई है, मूल प्रतिमें यह पाठ इसी रूपमें है।
को तहि जोइय सत्तिसिउ सिग्घ गवेसहिं भेउ । ५ तीसरे पाढके लिये तुलना को योगसार पद्य ६१ ।
--सम्पादक