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________________ प्राषाढ, श्रावण,भाद्रपद वीरनि०सं०२४५६] यान्त्रिक चारित्र ५२९ यान्त्रिक चारित्र [ लेखक-श्रीमान् पं० नाथुरामजी प्रेमी ] सनसमाजको इस बातका अभिमान है कि हमारा चा- यन्त्रोंकी या कलोंकी क्रियाको हम रोज़ ही देखा परित्र बहुत ऊँचे दर्जेका है-औगेंसे हमारा आचरण करते हैं। किसी यन्त्रमें चाबी भर दीजिए, जब तक बहत अच्छा है। इस बातको साधारण लोग ही नहीं, चाबीकी शक्ति भरी रहेगी, वह बराबर अपना काम किन्तु बड़े बड़े विद्वान् अपने व्याख्यानोंमें और अच्छे करता रहेगा । उसे यदि बीचमें कहें कित काम करना अच्छे लेखक अपने लेखोंमें भी प्रकाशित किया करते बन्द कर दे, या यह छोड़ कर दूसग काम करने लगहैं। यदि यह बात उस चारित्रके विषयमें कही जाती जा, या इसे इतनी तेजी मन्दीसे कर, तो वह कभी न जो कि जैनधर्मके श्राचार-शास्त्रोंमें लिखा है, तो मैं सुनेगा । क्योंकि उसमें न सुननेकी शक्ति है और न चपचाप मान लेता; परन्तु जैनियों के वर्तमान चारित्रके विचारनेकी । फोनोग्राफ यंत्र इसलिए है कि वह अपने विषयमें ऐमी बात सुन कर मुझे आश्चर्य हुआ और मालिकको अच्छे अच्छे गाने सुनाकर उसके चित्तको इस विषयकी जाँच-पड़ताल करनेकी इच्छाको मैं प्रसन्न करे; परन्तु यदि कभी कोई आदमी उसके एक न रोक सका । आश्चर्य इसलिए हुआ कि जो समाज रंकार्डमें बुरी बरी गालियाँ भर कर उसमें लगा दे, तो अज्ञानके गहरे कीचड़में फंसा हुआ है-जिसमें इधर वह उन्हींको बकने लगेगा-उसे इस बातका ज्ञान उधर हिलनेकी भी शक्ति नहीं, उसमें आचरण कैसा? नहीं कि इसे सुन कर मेरा मालिक दुखी होगा या और सो भी उत्कृष्ट ! जहाँ तक मैं जानता हूँ, जैनधर्म- सुखी । ठीक यही दशा हमारे जैनियोंकी है । उनके में ज्ञानपूर्वक चारित्रको चारित्र कहा है। अर्थात् जब जितनं आचरण हैं, प्रायः वे सब ही एक प्रकारकी तक मनुष्य को यह मालम नहीं है कि मैं यह आचरण यंत्रशक्तिसं परिचालित हो रहे हैं । अभ्यास, देखादेखी, क्या करता हूँ-अथवा मुझे क्यों करना चाहिय,इमके पुण्यपापका परम्परागत लाभ और भय आदि शक्तियों करनेस क्या लाभ है, और वह लाभ क्योंकर होता है, उन्हें चला रही हैं । उनकी काई स्वाधीनशक्ति नहींतब तक उसके आचरणको सम्पचारित्र नहीं कह विचार और विवेकमे उनका कोई सम्बन्ध नहीं। इसी सकते । तब मेरे हृदयमें प्रश्न उठा कि क्या इस प्रकार कारण व अपन अभ्यासके वश चले जा रहे हैं। का सम्यक्चारित्र जैनियों में है ? किसीक कहने सुननसे वे रुक नहीं सकते, अपनी ___ मैं इस विषयकी छानबीन करने लगा । कई वर्षों गतिमें किसी प्रकारकी तीव्रता मन्दता नहीं ला सकते, के अनुभव के बाद अब मैंने यह स्थिर किया है कि जैनियोंका चारित्र एक प्रकारका यान्त्रिक-यन्त्र-संचा उसमें कुछ परिवर्तन नहीं कर सकते और उनकी इस लित-चारित्र है। चारित्रके लिए मेरे इस नये विशेषणके चालका क्या फल होगा, इसको वे सोच नहीं सकते । सार्थप्रयोगको देखकर पाठक चौंके नहीं,मैं उन्हें इसकी _यह उक्त यन्त्रशक्ति का ही काम है, जो हम छोटेसार्थकता भी बतलाये देता हूँ। से छोटे पापोंको और बड़ेसे बड़े पापोंको एक ही
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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