SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३० अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,९, १० आसन पर विराजमान करने लगे हैं और इसका फल घरके सैकड़ों चूहे पटापट मार डाले और बरों के छत्तेयह हुआ है कि हममें वास्तविक पापोंकी घणा स्वभाव- में आग लगा कर लाखों जीवोंकी हत्या कर डाली; से ही कम हो गई है और उसके अनुसार हमारे लो. परंतु उसे जातिनं जरा भी दण्ड नहीं दिया । इसके काचारने तथा जातीय नियमोंन भी एक अद्भुत रूप कुछ ही दिन पीछे एक दिन उसीका लड़का एक बिल्लीधारण कर लिया है । बन्देलखंडके यदि किमी पग्वार के माथ खेल रहा था । बिल्ली भागी और उसका लजैनीका भलमे एक चिड़ियाकं अण्डे पर पैर पड़ जाय का पीछे हा लिया। दैवयोगस वह बिल्ली भागते समय तो उसे जातिसे च्युत होना पड़ेगा; परन्तु यदि वही एक कुऍमें गिर कर मर गई । बस, इससे उमको पुरुष एक मनुष्य का वन कर डाले और किसी तरह 'हत्या' लगाई गई और पंचायतने तब तक चैन न ली, राज्यदण्डसे बच जावे, तो उसका कुछ न होगा ! एक जब तक कि उसका मुंह मीठा न हो गया और हत्यारे सेतवाल यदि किसी हूमड़ जैनके यहाँ भांजन कर (!!) की नाको दम न आ गई। एक अग्रवाल मंआता है, तो उस जाति दण्ड देती है; परन्तु यदि दू- दिगे अथवा दूमग संस्थाओंके लाखों रुपये हज़म सरा संतवाल सैकड़ों बड़े बड़े दुराचार करता है, तो करके भी जातिका मुखिया कहलाता है; परंतु दूम। भी जाति कानोंमें तेल डाले बैठी रहती है । हमार अग्रवाल किसी धार्मिक संस्था या मंदिरकी नौकरी कर खण्डेलवाल भाइयोंमें ऐसे बीसों कुँवार परुष हैं, जिनके लनस निर्माल्यभक्षी कहलाता है ! दक्षिण के बहुनम विषयमें जातिको अच्छी तरह मालम है कि अमुक जैनी मालगुजार अभी कुछ ही वर्ष पहले तक दशहरे अमुक विधवायें इनके यहाँ रहती हैं, इनकी साई पर पशुवध कगनमें भी अपनका पापी नहीं ममझते थे; बनाती हैं और इनकी स्त्री-सम्बन्धी सारी जरूरताको परंतु दुमरी जातिका पानी पीनमें भी उनका धर्म चला मिटाती हैं, तो भी कोई च नहीं करता; परंतु यदि जाता है ! जैनियोंकी प्रत्येक जातिमें ऐसे एक नहीं, कोई देशभक्त खण्डेलवाल मंठ जमनालाल जी बजाज़- अनेक उदाहरण मिलते हैं। इसका क्या कारण है ? के उस कुएँका पानी ब्राह्मणसे भी भरवा कर पी लेता यही कि न तो लोगोंम वास्तिक पण्य-पापोंके समझनेहै, जो अम्पश्यों के लिए मुक्त कर दिया गया हो, तो की शक्ति है और न छोटे तथा बड़े पापोंको एक ही उसकी शामत आ जाती है । उसकी इस हरकतम तराज़ पर एक ही बटखरेम तौलते रहने के कारण खंडेलवाल महासभा तकका सिंहासन काँपने लगता उनके हृदयमें उनके प्रति घृणा ही रह गई है । जो कुछ है । गोलालारं भाइयों को यह बरदाश्त नहीं कि उनकी करते हैं, सब पूर्वके अभ्यासवश किये जा रहे हैं। खगैत्रा शाखाका पुरुप किसी मिठौपा शाखाकी मैं यह नहीं कहता कि छोटे पापोंका कुछ विचार लड़कीसे शादी कर ले । वे तत्काल ही उस जातिस न होना चाहिए। नहीं, मैं तो चाहता हूँ और मैं ही बाहर करनेको तैयार हैं; परन्तु और सब बड़े बड़े क्यों प्रत्येक जैनधर्म के उपासककी यह भावना रहती है पापोंके विषय में उनके कानों पर जॅ भी नहीं रेंगती। कि सभी लोग सब प्रकारके पापोंसे दूर रहते हुए श्रामैंने एक परवार जैनीको देखा है कि उसने आटेमें दर्श गृहस्थके रूपमें अपनी संसारयात्रा चलाते रहें; विष मिला कर और उसे जगह जगह रख कर अपने परन्तु इस बातको तो कोई भी पसन्द न करेगा कि
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy