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[वर्ष १,किरण ८, ९.१०
अनेकान्त
।
अकलंकदेवके 'चित्रकाव्य' का रहस्य
और
हारावली-चित्रस्तव
'अनकान्त' की गत किरणमें 'अकलंकदेवका और साहित्य एक प्रकारका है-प्रत्येकमें चौदह चो. चित्रकाव्य' इस नाममे एक स्तोत्र कुछ परिचयकं साथ दह पद्य है, शुरुके बारह बारह पद्य प्राय. उपजानि दिया गया है। परिचयमें स्तोत्रके अंतिम प्रशस्ति-पद्य छंदोमें और अंतका पद्य सबका शार्दूलविक्रीडित छंदग परसे यह बतलाया गया था कि इस स्तोत्रका नाम है । रहा १३ वाँ पद्य, वह सबका भिन्न भिन्न छदा 'चित्रकाव्य' है, यह 'अकलंकदेव' का बनाया हुआ है में है-अर्थात १ली हारावलीका 'वंशस्थ' मे, दमर्गका
और विक्रम संवत १५७४ का बना हुआ जान पड़ता 'उपेन्द्रवना' मे, तीसरी का 'उपजाति' में और चौथा है । साथ ही, पाठकोमे यह निवेदन किया गया था का 'इन्द्रवत्रा' छंद मे है । यह तरहवाँ पद्य प्रत्यय कि, यदि किसीका किसी दूमरे शास्त्रभंडारसं इस म्तात्र हागवलीमे नायकमणि-स्थानीय पद्य है-अर्थात बारह की कोई प्रति या इसकी कोई संस्कृतटीका उपलब्ध पद्योकं चार चार चरणोको लकर और प्रत्येक चरणहो तो वे, उसकी विशेषताओको नोट करते हुए, उमस के आदि-अंतमे तीर्थकरो नामाक्षररूपी मणियोको मूचित करनेकी ज़रूर कृपा करें, जिसमें रचना-ममय- गूंथ कर जो हारयष्टि तय्यार की गई है उमके मध्यम का ठीक निर्णय किया जा सके और पाठ की अशुद्धि नीचे रहने वाला प्रधान-मणि-जैसा है । पहली हागआदिका भी संशोधन हो सके। इस पर पाटनम मुनि वलीमे यह 'पद्मजाति' चित्रको लिए हुए है-जान पुण्यविजय जीने 'स्तोत्ररत्नाकर द्वितीयभाग सर्टीक' अक्षरका मध्य कर्णिकामे रख कर नकार-भिन्न शप की एक प्रति मेरे पाम भजी है, जो निर्णयसागर प्रस- अक्षगको २४ पद्मदलोमे स्थापित करनस बनता है,द्वाग विक्रम संवत १९७० की छपी हुई है और जिसमे दृसर्गमे 'म्वस्तिक जाति' को, तीसरीमे 'वनबन्धजाति 'चतुर्हारावली-चित्रस्तव' नामका एक स्तोत्र दिया हुआ को, और चौथ मे 'बन्धुकस्वस्तिकजानि' चित्रका लिय है। माथ ही, लिम्बा है कि-"इम (म्तोत्र को देग्य हुए है । १४ वॉ पद्य, प्रत्येक हारावलीमें, ममातिम्कर श्राप जैमा उचित समझ स्पष्टीकरण करे।" चक अन्त्य मगलका पदा है और उसमे कहा गया है __'चतुर्हागवली-चित्रस्तव'को देखनसे मालूम हुआ कि जिनके नाममय सुवर्ण ( शोभनाक्षर) मणियाम कि इसमें १ वर्तमान-जिन चतुर्विशतिका, २ अतीतजिन- यह सत्पुरुषोके कण्ठको भूपित करने वाली हारावली चतुर्विशतिका, ३ अनागन-जिन चतुर्विशतिका और निर्मित की गई है,वे सब जिनेन्द्र देव मंगलकारी होवें।' ४ विहरमाण-शाश्वतजिनस्तुतिः, ऐसे चित्रस्तवोंकी माथ ही, यह पद्य अर्थान्तरन्यासम कविके नामको चार हारावली शामिल हैं, जिन सबका टाइप, दंग भी उनके गुरुके नामसहित लिये हुए है, यह इसमें