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________________ ५०८ अनेकान्त ही समस्त पापों का मूल कारण है । पाठकगरण ! ऊपर के इस उदाहरण से आपकी सममें भले प्रकार आ गया होगा कि यह लोभ कैसी बुरी बला है । वास्तव में यह लाभ सत्र अनथका मूल कारण है और मारे पापों की जड़ है । जिस पर इस लाभका भूत सवार होता है वह फिर धर्म-अधर्म, न्यायअन्याय और कर्तव्य कर्तव्य को कुछ नहीं देखता; उसका विवेक इतना नष्ट हो जाता है और उसकी [वर्ष १, किरण ८, ९, १० शारीरिक तथा आध्यात्मिक पतन होता जाता है। पहले भारतमें ऐसा भी समय हो चुका है कि. राजद्वार में आम तौर पर या किसी कठिन न्यायके आपड़ने पर नगर निवासी तथा प्रजाके मनुष्य बुलाये जाते थे और उनके द्वारा पूर्ण रूपसे ठीक और म न्याय होता था । परन्तु अफसोस ! आज भारतकी यह दशा है कि न्यायकी जड़ काटनेके लिये प्राय. दर शरूम कुल्हाड़ी लिये फिरता है, जगह जगह रिश वतका बाज़ार गरम है; अदालतों में न्याय करने के लिये नगर-निवासियों का बुलाया जाना तो दूर रहा, एक भाई भी दूसरे भाई ईमान धर्म पर विश्वास नहीं करता । यही वजह है कि भारतकी प्रायः सभी जातियों में पंचायती बल उठ गया है और उसके स्थान पर अदालतोंकी सत्यानाशिनी मुकद्दमेबाजी बढ गई है; क्योंकि मुखिया और चौधरियोंने लाभ के कारण ठीक न्याय नहीं किया और इस लिये फिर उस पंचा ग्रतकी किसीने नहीं सुनी। भारतवर्ष से इस पंचायती बलके उठ जाने या कमजोर हो जानेने बहुत बड़ा गजब ढाया और अनर्थ किया है । आजकल जो हजारों दुराचार फैल रहे हैं और फैलते जाते हैं वह सब इस पंचायती बलके लोप होने काही प्रति है। पंचायती बलके शिथिल होने लोग स्वच्छंद होकर अनेक प्रकारके दुराचार और पापकर्म करने लगे और फिर कोई भी उनको रोकने में समर्थन हो सका । अदालतोंके थोथे तथा निःसार नाटकोका भी इस विषय में कुछ परिणाम न निकल सका। अफसोस ! जो भारत अपने आचार-विचार में, अपनी विद्या चतुराई और कला-कौरालमें तथा अपनी न्यायपरायणता और सूक्ष्म श्रमूर्त्तिक पदार्थों तक की खोज करनेमें दूर तक बिख्यात था और अन्य देशोंके इतनी चर्बी छा जाती है कि वह प्रत्यक्ष में जानता और मानता हुआ भी धनके लालच में बरं-सेयुग काम करनेके लिये उतारू हो जाता है। बहुतम दुर्शन इस लाभ के कारण अपने माता-पिता और सहोदर तककी मार डाला है। आज कल जो कन्याविक्रय को भयंकर प्रथा इस देशमें प्रचलित है और प्रायः ९-१० वर्षकी छोटी छोटी निरपराधिनी कन्यायें भी साठ साठ वर्षके चुटढोंके गले बाँधी जा रही हैं वह सब इसी लोभ-नदी की बाढ़ है । इसी प्रकार इस लोभका हा यह प्रताप है जो बाजारों में शुद्ध घीका दर्शन होना दुर्लभ हो गया है - घी में साँपों तक की चर्बी मिलाई जाती है, तेल मिलाया जाता है और बनम्पतिघी तथा कोकोजम आदिके नाम पर न मालूम और क्या क्या अला-बला मिलाई जाती है, जो स्वास्थ्य के लिये बहुत ही हानिकारक है। दवाइयों तक में मिलावट की जाती है और शुद्ध स्वदेशी चीनी के स्थान पर अशुद्ध तथा हानिकारक विदेशी चीनी बरती जाती है और उसकी मिठाइयाँ बना कर देशी चीनी की मिठाइयोंके रूपमें बेची जाती हैं। बाक़ी इसकी बदौलत तरह तरह की माया चारी, लगी और दूसरे क्रूर कर्मोंकी बान रही सां अलग। सच पूछिये तो ऐसेऐसे ही कुकर्मोंसे यह भारत शान्त हुआ है। और उसका दिन-पर-दिन नैनिक,
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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