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________________ ५०२ य' आदिसांख्याय [आदिकेशाप २] श्रादिशिवाय महाब्रह्मणे परमशिवाय एकानेकानन्तस्वरूपिणे भावाभावविवर्जिताय अस्तिनास्ति द्वयातीताय पुण्यपापविरहिताय सुखदुःखविमुकाय व्यक्ताव्यक्तस्त्ररूपाय अनादिमध्यनिधनाय नमो मुक्तिस्वरूपाय || ६ || अनेकान्त ॐ नमोऽर्हते नितङ्का निःशंकाय निर्मयाय निद्राय निस्तरंगाय निर्मये निगमयाय fasकलंकाय परमदैवताय सर्वदैवताय* सदाशिवाय महादेवाय शंकराय महेश्वराय महातिने महायोगिने पंचमुखाय मृत्युंजयाय अष्टमूर्तये भूतनाथाय जगदानंदाय नगत्पितामहाय जगद्देवाधिदेवाय जगदीश्वराय जगदादिकंद्राय जगद्भाव जगत्कर्म्म साक्षिणं जगच्च क्षुपं stead अमृतराय शांत कराय" ज्योतिश्चक्रचक्र महाज्योतिर्महात्मने परिप्रतिष्ठनाय स्वयं कर्त्रे स्वयं ह स्वयं पालकाय आत्मेश्वराय नमो विश्वात्मने ॥ ७ ॥ ॐ नमोऽसर्व्वदेवमयाय मध्यानम याय सर्व्वज्ञानमयाय सर्व्वजयाय सर्व्वमंत्र मयाय सर्व्वरहस्यमयाय सर्व्वभावाभावजीवा [वर्ष १, किरण ८, ९, १० जीवेश्वर राय अरहस्यरहस्याय अस्पृहस्पृहणी याय अचिंत्यचिंतनीयाय अकामकामधेनवे अकल्पितकल्पद्रुमाय चिचितामये चतुर्दशरज्यात्मकजीवलोकचूडामणये चतुरशीनिजीवयांनिलक्षप्राणिनाथाय पुरुषार्थ नाथाय परमार्थनाथाय अनाथनाथाय जीवनाथाय देवदानवसिद्ध सेनाधिनाथाय ॥ ८ ॥ ॐ नमोऽहते निरंजनाय अनंतकल्याण निकेतन कीर्तनाय' सुगृहीतनामधेयाय धीरोदात्त धीरोद्धन- धीरणांत धीरललित - पुरुषोत्तमपण्यश्लोकशतसहस्रलक्षको टिबंदितपादारविदाय गमनाय ।। ६ ।। १ पाप्रति असंख्येयाय' पार है । २५ प्रतिमं पा अधिक है । ३ पाटन प्रति 'एकानेकान्तस्वरूपिणे पा है। ४ पा० प्रतिमें 'नमोऽस्तु पाठ है। यह पपाठन प्रर्मिनी है । ६ पा० प्रतिमें इसके स्थान पर 'जगजी महाय दिया है, कुछ पत्र नहीं होता है। ७ पा० तिर्म 'शीतकाय' पाठ है । पा० प्रतिमें 'ज्योतिश्चक्रिणे' पाठ है । ६ पा०प्रति 'महाज्योतिर्महातमः' पाठ है, जो ठीक नही जान पड़ता । १० पाटन - प्रतिमें 'पारेसुप्रतिष्ठिताय' है. सभव है कि वह परि सुप्रतिष्ठिताय' हो । ॐ नमोऽहने सर्वसमर्थाय सर्वप्रदाय सर्व हिताय सर्वाधिनाथाय कस्मैवनाय (?) क्षेत्राय पात्रा तीर्थाय पावनाय पवित्राय अनुत्तराय उ त्तगय योगाचार्याय संप्रक्षालनाय प्रवराय ग्राय वाचस्पतये मांगल्याय सर्वान्मनीयाय सर्वार्थाय अमृताय सदोदित ब्रह्मचारितापिनं दक्षिणीया निर्विकाराय वज्रऋषभनाराचमूर्तये तत्व दर्शिने पारदर्शिने निरुत्तमज्ञानबलवीर्यधैर्यतेज:शत्यैश्वर्यमयाय [आदिपुरुषाय, आदिपरमेष्ठिने आदिमहेशाय महाज्योतिःसत्वाय ] १ महाचिं 9 १ पा० प्रतिमं 'कीर्तिनाय' है । २ पा० प्रतिमें सर्व गनाथ पाठ है। ३ पा० पनि 'कस्मैचन क्षेत्राय पाट है, जो कुछ स्प नही जान पड़ता । ४ पा०प्रतिमें 'यात्रा पाठ है। ५ पाटन निमें 'सदोदिताय' ऐसा अलग पद है ६ पाटन - प्रतिक इस पद 'धैर्य' शब्द नहीं, और 'शन्यैश्वर्य की जगह शक्तेश्वर्य पत्र दिया है, जो कुछ ठीक मालूम न त । ७ व कट के भीतर ये चारों पद पाटन प्रति अधिक है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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