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________________ भाषाढ, श्रावण, भाद्रपद वीरनि०सं०२४५६] सिद्धि श्रेयसमुदय व्यकान्तशान्तमूर्तये भवद्भाविभूतभावावभासिन अधीश्वराय शंभवे स्वयं भवे जगत्प्रभवे जिनेकालपाशनासिने सत्वरजस्तमोगुणातीताय अ- श्वराय स्यावादिने सार्चाय सर्वज्ञाय सर्वदर्शिने नागणाय वाङ्मनसोरगीचरचरित्राय पवि. सर्वतीर्थोपनिषदे सर्वपाबंडमोचिने सर्वयाफत्राय कारणकारणाय तारणतारणाय सात्त्विक- लान्मने सर्वयज्ञफलाय सर्वज्ञकालात्मने सर्व दैवताय तात्विकजीविताय निर्ग्रन्ब्रह्महृदयाय ध्यान रहस्याय केवलिने देवाधिदेवाय वीतरायोगीन्द्रप्राणनाथाय त्रिभुवनभव्यकुलनित्योत्स- गाय . वाय विज्ञानानदपरब्रह्मकात्म्यमात्म्य-समाधये ॐ नमोऽहते परमार्थाय परमकारुणिहरिहरहिरण्यगर्भादिदेवतापरिकलितम्बम्पाय काय सगताय नथागताय महाहसाय हंसगजाय सम्यगध्येयाय सम्यक्बद्धयाय सम्यकशरण्याय महासत्वाय [महाशिवाय '] महारोधाप मारासुममाहितसम्यक्स्पृहणीयाय ॥ २ ॥ मित्राय सगताय मनिश्चिनाय विगतद्वंदाय ॐनमोऽहते भगवते आदिकराय तीर्थकराय गुणाधये [ लोकनाथाय ] जितमाग्वलाय म्ययंबुद्धाय पुरुषोत्तमाय पुरुषसिंहाय पुरुपवर- ॥ ५ ॥ पंडरीकाय परुषवग्गंधहस्तिने लोकोत्तमाय लो- ॐ नमोऽहने सनाननाय उत्तमश्लोकाय कनाथाय ) लोकहिताय लोकप्रद्योतकारिणे मुकुन्दाय गोविन्दाय विष्णवे जिष्णवे अनंताय लोकप्रदीपाय अभयदाय दृष्टिदाय मार्गदाय अच्युताय श्रीपतये विश्वरूपाय हषीकेशाय बांधदाय धर्मदाय जीवदाय शरणदाय धर्म- जगन्नाथाय मभुवःम्वःममुनागय पानंजगप देशकाय धर्मनायकाय धर्मसाग्थय धर्मवरचात- कालंजय धूवाय अजेयाय जिताय" प्रजरंतचक्रवनिने व्यावृत्तछमने अप्रतिहतमम्यगद गय४ अजरम” अनाय अचलाय अव्ययाय र्शनज्ञानसाने ॥३॥ विभवे अविनाशाय अनित्याय असंख्या___ ॐ नमोऽहत जिनाय जापकाय नीय पाटन प्रति म 'मादिम्बाय' पाठ है, जो कुछ ठीक नारकाय बुद्धाय बोध काय मुक्ताय पाचकाय मालमनाना । २ पाटन प्रतिम 'सर्वाय' पाठ है। पाटन प्रनि । 'कलाम दिया है, जा टीक नहीं है। यह पाठ पाटन प्रतिम न। ५५० प्रनि । 'कलात्मने दिया है, जो कुछ ठीक १ जयपुरकी प्रनि में "भापविनाशिने" पाट दिया है जा न।।६ पानि वान' के स्थान पर 'योग' शब्द दिया है टीक मालुमनाहीं होता । पाटन-प्रतिने 'बाडमनसामगोचर' ७० प्रतिम 'परमात्मने' पाठ है। यह पाट पाटन प्रति पाठ है । ३ पाटन-प्रतिमें 'सात्म्य" शब्द न है। यह पट अधिक है। पा० प्रतिः पोखाय' पाठ है। .पा. प्रनिमें पाटनकी प्रतिमें है जयपुरकी प्रतिमें नहीं । ५ पाटन-प्रतिमें मक्ति- 'मैत्राय' पाट है। ११ इम मन्त्रमें 'सगताय' पददा जगह दाय'पाठ है। पाटन प्रतिमें बोधिदायहे। पाटन-प्रतिमें पाया है और दोनों ही प्रतियां में यह पाया जाता है । मभव 'जीयकाय' पाठ है, जो ठीक प्रतीत नहीं होता, मभव है कि वह एक जगह एक पर्थ मौर यसरी जगह उसीका मा म । १२ 'बीपका' हो। पाटनप्रति में 'बि' पाट है। जयपुर यह पाठ पान-प्रतिमें अधिक है। १३, १४, १५, १६ ये चांग प्रतिमें 'निकंदनाय' पाठ है। पर पानकी प्रतिमनही है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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