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________________ भाषाढ, श्रावण,भाद्रपद वीरनि०सं०२४५६] सिद्धि श्रेयममुदय ५०३ धनेश्वराय महामोहसंहारिणे महासत्वाय पहा- लोकोत्तमा निःपनिमस्त्वमेव, ज्ञानमहेंद्राय महाहंसराजाय' महासिद्धाय महा- त्वं शाश्वतं मंगलमप्यधीश । लयाय महाशातये महायोगींद्राय अयोगिने त्वामेकमहन शरणं प्रपत्र, महामहीयसे महाहंसाय शिवमचलपरुजमन- पसिद्धार्थ-सद्धममयस्त्यञ्च ॥ १ ॥ नमक्षयमव्यावाधमपनरावृत्तिमहानंदमहोदयं म- त्वं मे माता पिता नेता देवो धर्को गमः परः । वाग्वक्षयं कैवन्यममतं निर्वाणमक्षरं परम प्राणाः स्वर्गाऽवर्गश्च म त्वं नवं पनिगतिः ॥२॥ निश्रेयसमपनर्भवं सिद्धिगनिनामधेयं स्थानं जिनांदाना जिना भाका जिनः सर्वमिदं जगत् । मप्राप्तवते चगचरवते नमो नमोऽस्तु श्रीमहा- जिना जान मवंत्र यो जिनः मोऽहमेव च ॥३॥ वीगय त्रिजगत्स्वामिन श्रीवर्द्धमानाय |१०॥ यत्किचित्कर्म इंदेव ! मदा मतदाकृतं । ____ॐ नमोऽहते केवलिने परमयोगिने मुक्ति- तन्मे जिनपदस्थ स्य हंसः पयता जिनः ॥ ॥ मागयांगिने * विशालशासनाय सर्वलब्धिप- गृह्यातिगृह्यगोप्ता न्वं गृहाणास्मकृतं जपं । नाय निधिकल्पाय कल्पनातीताय कलाकला- मिद्धिः श्रयनि मां येन वन्प्रसादाचयिस्थितम्।।५।। पकलिनाय *६ विस्फग्दुमशुक्ल यानाग्निनिर्दग्ध ( माहात्म्य) कर्मवीनाय प्राप्तानन्नचतुष्टाय सौम्याय शानाय दानाय मांगल्यवरदाय अष्टादशदोपहिताय * इनीमं पूर्वाभिदंतवैकादशमंत्रगजीघामयद्विश्व (?) विश्वममीहिताय स्वाहा - ११॥ पानपद्गम अष्टमहामाद्रपद सवपापनिवारणं मायकारणं मदोपहरं मवगुणाकरं महाॐ हीं श्रीं अहं नमः । प्रभायं अनेकसम्यगदष्टि पट्टक-देवनाशतसहस्र 1, ये ना प.भपाना महामहीयसे शुपिनं भवानरकतामख्यपरायं प्राप्यं सम्यगजवाढ दिये हैं। ३ यह पद पाटन पनि। न है। ४ पानि पनां पठना गुस्यनां शृावना समनप्रक्षमाणानां संप्राप्तवते पाट है। ५० प्रनिटम अन्तिम पटक बाद सिद्धार्थ की जगह मिर्षि पाट है। याने मन्त्रक 'विशाल शासनाय' में लेकर कलाकलापक २५ प्रगति' पाहै, जे प्रगत जान पड़ता है।३ लिनाय तक वे पांच पद ( बीचकपको कुछ बगपत कर पनि गनिम कर्म है की म.. 'कुर्मह' पाट दिया है जो कुत्र, २. । दिय हैं जिन्हें अगले मन्वन इम चिन्द के गाना रिया है, किन नहाना । ४ पाटनति का चौथा भगा 'द.खं पर यह गननी मालमता है । ६ गदन . चिन्ताक गीतका । तपय जिन ग प दिया है, नापीक निमामिनी पर पाटनकी पनि न हैं, इमं १० मन्त्रक मान दिया हैमल जान पड़ती है । ७ पाटन प्रति। यह पद ना है। - य.प. ५ टन प्रति 'संसमविश्वसमीहिताय' इस म्पन दिया है। उनी में लेकर मत तकका मम्पा पाट पाटन की प्रतिम ६ पाठन प्रतिम ग्वाहा' के बाद बल विराम चिन्ह ।।दाग न..है। इसकी जगह, यह पाट: - मन्त्रको समाप्ति करने के बाद यह.मन्व दिया है, मोर इसके बाद "दति श्रीवर्षमाना जनना मन्मन्नानातिशयां मानिकवि पतिला या १०दिया है। महमुम्बाय ग्यान ॥ इति गिमेनदिवाकरन नाव. मपाः ॥"
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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