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कालक कुमार
आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६ ]
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क्षत्रियत्व अधिक वर्षों के पश्चात् आज अचानक ही देखकर घबराये । पापी जिस प्रकार पुण्यमूर्ति को देख कर घबराता है उसी प्रकार ये नारकी जीव कालकाचार्य को देख कर भयभीत बन गये। छह काय के जीवों की रक्षा करने वाले एक जैन मुनि प्रतापी राजा के सामने श्राकर प्रतिकारका एक शब्दमात्र भी न कह सकेंगे ऐसा उसने समझ रक्खा था, किन्तु उसकी यह आशा व्यर्थ निकली। जो दावानल दूर दूर लगता उसी दावानल की ज्वाला इस समय राजा और राज्य को भक्षण कर जाएगी ऐसा उसे भय हुआ ।
चमक उठा ।
एक समय था जब सरस्वती के सम्मुख ऊँची दृष्टि करके देखने का किसी को साहस न होता, बहन सरस्वती के किंचित् संतोष के लिए वह मगध की राज्यलक्ष्मी को तुच्छ समझता । उसी सरस्वती को अपने सम्मुख उज्जयिनी का एक स्वेच्छाचारी राजा बलात्कार अपने अन्तःपुर में ले जाय, इसमें उसने राजा और प्रजा दोनों का प्रलयकाल समीप आता हुआ देखा। इस अत्याचारी राज्यका आज अंत आ गया, ऐसा उसका संयमी अंतःकरण बोल उठा । कालकाचार्यमें बसा हुआ कालक कुमार विकराल रूप
" गर्दभिल्ल ! अब भी प्रायश्चित्तका समय है, सरस्वती को छोड़ दे, जैन शासन की वह एक पवित्र साध्वी है; इतना ही नहीं किंतु वह धारावास-राज्य की राजपुत्री है, उसका एक बाल बाँका होने के प्रथम ही उज्जयिनी उजाड़ हो जायगी, एक दुष्टके पाप से सहस्रों निर्दोषों का रक्त बह जायगा '
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कालकाचार्य के ये शब्द पंचजन्य शंखनाद की भांति महल में गूंज उठे।
सरस्वती धारावाम-राज्य की राजकन्या और कालकाचार्य धारावास के राजकुमार कालक कुमार हैं, इस बातका ज्ञान गर्दभिलको श्राज ही हुआ। सरस्वतीके अपहरण का अयोग्य साहस वह करते तो कर गया परन्तु इससे पीछे कैसे हटा जाय इसका उचित उपाय उसे नहीं सूझ पड़ा - प्रतिष्ठा और वासना की अस्पष्ट अनल उसके हृदय में सुलगने लगी ।
गर्दभिल्ल ने कालकाचार्य की इस उद्धतता का उत्तर शब्दों की अपेक्षा शस्त्रसे देने का निर्णय किया । इशारा पाते ही राजाके रक्षक म्यानसे तलवार निकाल कर कालकाचार्य के सामने खड़े हो गए ।
नृत्य की तैयारी कर रहे थे ।
"मुझे भी एक समय तुम्हारे जैसे शस्त्रों में श्रद्धा
गर्दभिल और उसके अनुचर कालकाचार्य को थी, और आज भी यदि इस मुनिवेष को अलग कर
धारण कर उठा ।
उद्यानसे वह उसी समय गर्दभिल्लके महल की और चला । जनताने समझा कालकाचार्य होश-कांश 'चुका है, उसका मस्तिष्क विकृत हो गया है, वह साधु है — निःशस्त्र है - अकेला है । यदि वह स्वस्थ होता तो राजा के समीप इस प्रकार दौड़कर जाने का साहस न करता । किन्तु लोग यह क्या जानें कि कालकाचार्य का शरीर तो मगध की मिट्टी से बना हुआ था, उज्जयिनी की कायरता उस का स्पर्श नहीं कर सकी थी ।
विश्वका प्रास करने के लिए उमड़ी हुई दावाग्नि की सदृश वह गर्द भिल्लके राजमहल में गया । द्वारपाल अथवा कोई अन्य सैनिक कालकाचार्य को रोक नहीं मका । आज तो उसके सम्मुख निरीक्षण करने वाला जल जाय, इस प्रकारकी ज्वालाएँ उसके रोम-रोमसं निकलती थीं । कालक कुमार आज काल भैरवके तां
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