SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९२ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८, ९, १० कालकाचार्य एक समय युवराज थे, यह वात सहस्रों नगरनिवासी यह सब दृश्य नेत्रोंके सामने देखिन लगभग भुला दी गई है । प्राचार्य अपने पूर्व सम्बन्धों रहे किन्तु कोई भी सम्मुख आकर और लाल ऑग्में को भी भूल गए होंगे। साध्वी सरस्वतीका उनके पर्व करके इस अनाचारको वीरोचित प्रतिकार न कर सका। जीवन के साथ कुछ संबंध नहीं रहा। ___ यदि वे निर्बल और अशक्त मनुष्य तनिक भी हिम्मतके साथ समीप आकर इस नरराक्षसके अनुचरोंको पकड़ कालकाचार्य विहार करते हुए एक दिन उज्जयिनी लेते तो शायद वे पृथ्वीमें समा जाते! परंतु इस समय नगरीके उद्यानमें विराजमान थे। सरस्वती साध्वियों तो उज्जयिनी निःशक्त बनकर बैठ गई थी। उसके निवासी के समीप किसी एक ग्राममें थी । वह अपने संसारी विलाम और विनोदकी मधुर किन्तु जहरीली लहरों में अवस्थाके भाई और जैनशासनके एक समर्थ आचार्य मम्त थं । न्याय अथवा पवित्रताका रक्षण करनेकी की वंदनाको आती थी। इतनमें गजा गःभिल्ल अना- अपेक्षा देहकी रक्षा करना ही उनके लिए अधिक महत्व यास इस मार्गस होकर निकला। उसने दूरम सरस्वती की वस्तु बनी हुई थी। को श्रात हुए देखा । समस्त संसारको शीतलता मि- सरस्वतीका बलान हरण होनेस उज्जयिनी-नगरचन करने वाली यह रूपराशि गजाक हृदयमें प्रचंड वासियान बिजली-जैसे चमत्कारका अनुभव किया। अग्नि प्रज्वलित करने लगी। वह जन्मम ही अत्याचारी भयंकर उल्कापातके भयस व गृहोंमें प्रवेश करने लगे। था परन्तु अभी तक उसका पाप-घट पूर्ण नहीं व्यवसायी वर्ग दुकानें बन्द कर जीवनसंरक्षणकी हुआ था, अत्यंत अभिमान और पाशविकतानं उसे आशाम अपने अपने घर चला गया । देखतं दग्वने अंधा बना दिया था। 'सरस्वती' एक साध्वी है, सर- उज्जयिनीम हाहाकार फैल गया। साध्वीका अपहरग स्वतीको किसी के हाथका स्पर्श होने पर उज्जयिनीकी यह केवल स्त्रीजाति पर अत्याचार ही नहीं था किंतु समस्त जनता शान्तिभंग कर बैठेंगी इस बात का संप्रदायमात्रके भंघका यह घोर अपमान था । दुर्भाग्य विचार वह नहीं कर सका। कामांध राजा इस समय से इस समय उज्जयिनी में कोई एक भी वीर पुरुप ता अपराधी की सहश चुपचाप चला गया । किन्तु नहीं था। गर्दभिल्लको उसके सिंहासन परसे उतार कर अपन सेवकास कहता गया कि 'सरस्वती' जब उदान -नीच पटक कर-उसके पापका प्रत्यक्ष बदला देता से पीछे लौटे तो शीघ्र ही उसे पकड़ कर गजमहल में एमी किसीमें शक्ति नहीं थी। ले आना । अनचर गह देग्वत हुए वहाँ खड़े हो गये। शृंगार, आमोद और प्राणसंरक्षण के प्रवाहमें पड़ी __ बहुन दिनों के पश्चात आज कालकाचार्य और हुई प्रजाके मस्तक पर कलंकके अतिरिक्त और अन्य सरस्वती उज्जयिनीके उद्यान में मिले थे। दोनों संयमी क्या हो सकता था ? उज्जयिनीके इतिहासमें एक निर्विकार नयनसे हर्षके आँसओंसे प्लावित होने लगे। साध्वीके अपहरण का काला कलंक अंकुरित हुआ। ___ उद्यानसे पोछे लौटती सरस्वतीको गजाके अन- कालकाचार्य ने इस बातको मालूम किया । सोता चरोंने नगरमध्यमेंसे पकड़ कर पालकी में बैठाया हुआ सिंह अचानक छेड़ा जाय उसी प्रकार यम, निऔर बलात् ले जाकर राजाके अंतःपुरमें छोड़ दिया। यमके बंधनमें बंधा रहने वाला उसका स्वाभाविक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy