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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८, ९, १० पद्य १२१ हैं । इसमें गमानजगरु-द्वारा तोण्णुरु में पल्ली चेलुवम्म, श्वसुर ब्रह्मदेव, मातुल दोड्य्य और बेट्टवर्धन राजाके वैष्णव बनाने आदिका वर्णन है। उपाधियाँ असाधारण कलियुग प्रथमदाक्षिणात्य, कवि भारंभमें चन्द्रप्रभ और सरस्वतीकी स्तुति है। चक्रवर्ती, महाकवि,धर्मचक्रवर्ती थीं। साथ ही, यह मा
११ विज्जणरायपुराण-यह भामिनी ष- लम होता है कि, श्रवणबेलगोल के चारुकीर्ति पंडित से ट्पदीमें है । इसमें श्राश्वास ८,पद्य ४९८ हैं । 'बिजण' जो वर्षाशन इन्हें मिलता था उसे मैसर-देवराजने स्वयं बसव की बहन गुणवती से विवाह कर उसके लड़के देनको स्वीकार किया था। इन गीतोंके अंतमें मैसर-राजा को राजा बनाने का अपने मंत्री तथा बसव आदि को मुम्मड़ि कृष्णराजका मंगल हो ऐसा उल्लेख है। इससे
आदेश करके मर गया । जैनियों पर बसव के द्वारा जान पड़ता है कि यह कवि उनका आश्रित रहा होगा। किये जाने वाली हिंसा को राजकुमार ने देख कर कविका जन्म शक १६८४ स्वर्भानु संवत्सर (१७६३) में उसे युद्ध में जीत करके जैनियों के कष्ट को दूर किया। हुआ था। इस प्रन्थमें उक्त बातोंका ही विस्तृत वर्णन है। कवि नं १७८९ में 'शाकटायन-प्रक्रिया-संग्रह',
१६ चारुकीर्ति पण्डिन (१८१५) १८०४ में 'लोकविभाग' तथा १८०८ में 'वृत्तरत्नाकरइन्होंने 'भव्यचिन्तामणि' ग्रन्थ लिखा है । ज्ञात व्याख्या' की प्रतिलिपि की थी । ये बातें उल्लिखित होता है कि, कवि श्रवणबेलगोल-मठ के भट्टारक थे। तीनों गन्थों की प्रतियोंसे विदित होती है । और तेरकाइनका कहना है कि, यह प्रन्थ शक १७३७ के यव सं- णांबिके नमिचंद्रने कविके लिये १८०४ में 'जैनेन्द्रव्यावत्सर ( सन् १८१५ ) में रचा गया है। 'भव्यचिन्ता- करण प्रक्रियावतार' तथा १८८७ में 'उत्तरपुराण' की मणि' चम्पूरूप है । इसमें १६ आश्वास है । इस कृनि प्रति लिपि भी की थी। ऐसा इन गन्योंकी उक्त प्रतिमें प्रत्येक जिनपूजा में सुख प्राप्त करने वाले व्यक्तियों योस जाना जाता है । की कथा लिखी हुई है । विदित होता है कि, यह ग्रन्थ
१८ हिरण्यगर्भ (ल. १८६०) श्रवणबेलगोलमें बाहुबली स्वामी के निकट ही पर्ण हुआ इन्होंने 'सरस्वतीप्रबन्ध', 'विश्वकृतिपरीक्षण' इन है । प्रन्थारंभमें जिन, सिद्धादिकी स्तुति है । दो गन्थों को लिखा है । मालूम होता है कि, इनका
१७ शान्तराज पण्डित (१८०) राजराज' नाम भी था । इनका निवासस्थान धारइन्होंने लक्ष्मीदेवी को पप पहनाने वाले गीत लिखे वाड़ प्रान्त है । इन्होंने पूर्व कवियोंमें नेमि वन्द्र, अग्गहै। इन्हीं का बनाया हुआ 'सरसजनचिन्तामणि' ल, होन्न, गुणवर्म, नागवर्म, पंप, केशव, मधुर इन नामक एक बृहत् संस्कृत काव्य भी है। यह गन्थ सन् कवियोंका स्मरण किया है । कविने 'विश्वकृतिपरीक्षण' १८२० में रचा गया है। इस ग्रन्थसे कविके बारे में की रचना १८७३ में की है ऐसा जान पड़ता है। निम्न बातें उपलब्ध होती हैं:
१ सरस्वतीप्रबन्ध-यह चम्पूरूप कृति है। इन का पिता पद्म पंडित, माता केंपदेवम्म, धर्म- पूर्ण गन्थ अभी तक नहीं मिला । सुनते हैं कि, इस
* मह बात बिजलचरिते, एकादशरुवनकथा भौर विजयकुमा- में १२ आश्वास हैं । गन्थावतारमें पद्मप्रभ,सिद्ध, कवि, रिचरितेसे भी सिद्ध होती है। -अनुवादक वृषभसेन, गौतम, सरस्वती, समन्तभद्र, पूज्यपाद, भ.