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________________ आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६] क० साहित्य और जैनकवि ४८५ के मंदिर में इसे लिखा । उल्लिखित नागकुमार षट्पदी बौद्धमन की उत्पत्ति, यज्ञका आरंभ, रामानुजमतकी यही होगा। प्रारम्भ में चंद्रप्रभ पश्चात् क्रमशः कवि, उत्पत्ति, कृष्णका देवत्व, मुल्लाशास्त्रकी उत्पत्ति, श्वेतासरस्वती, गणधर, पूज्यपाद आदिकी स्तुति की गई है। म्बरोंका प्रादुर्भाव, लिंगधारण, कोमटिग जाति कैसे • जिनभक्तिसार-यह ग्रन्थ भामिनी षट्पदी वैश्य हुई, श्रादि । इन विषयों के अतिरिक्त हिमशीतल, में है । इसमें १०८ पद्य हैं और प्रत्येक पद्य "रक्षिसन- विक्रमराय, शालिवाहन, भोज, कूनपाण्डय, होय्सलवरत" के साथ पूर्ण होता है । कविका कहना है कि, राय विज्जल, बल्लाल, बेट्टवर्धन, चामुण्डराय इनके यह कृति धर्माख्यपरके चन्द्रप्रभके अनुग्रह से लक्ष्मी- विषयमें भी कविने यतकिंचित लिखा है। प्रारम्भ में मेनकी भक्ति पर रची गई है। प्रारंभ में चन्द्रप्रभ को जिन तथा सरस्वती की स्तुति है । १७५५ के जयवपमें स्तुति है। (१८३४) कोडगु शैव हुआ. ऐसा कविका कहना है । ३ भव्यामत -- इसमें ११० कंद हैं और उनमें ६ पराणसीत्र- यह वार्धक षट्पदी में है। आत्मतत्वका वर्णन है । आदि में जिन-स्तुति है । पद्य- इसमें ५१ पद्य हैं । इस कृतिम जिनेश्वरोंके माता पिता, संख्या १०७ में कवि कहता है कि, गोम्मटसार तथा जनन, नगर, वर्ण, यक्ष, लांछन, कर्मक्षयावनि, पञ्चप्राभूत ही परमार्थ की माता पिता हैं, ऐमा विश्वाम कल्याण आदिका वर्णन है । करके और नेमीश्वर स्वामीका स्मरण कर मैंने इसकी ७ मुल्लाशास्त्र - यह ग्रंथ भामिनी पट्पदी में रचना की है। है और इसमें ८ श्राश्वाम तथा ४०० पद्य हैं । इसमें ४ परशुगमभारत-यह भामिनी पटपदी लिखा है कि, इन्द्र के द्वारा दूसरे को गणधर पद दिया में रचा गया है । इसमें अध्याय २४, पद्य १३६९ हैं। जाने पर उसमें रुट होकर पार्श्व भट्टारकन मुल्लाशास्त्र इसमें 'अर' तीर्थकरके मध्यकालमें स्थित मुभौम-परशु- की रचना करके प्रचार किया । इसकी रचना कविन गमकी कथा लिखी हुई है । कथामें लिखा है कि, पर- नाविनकर में की थी। आरंभमें चन्द्रनाथ, कवि, सिद्ध, शुराम सहस्रबाहुको जीतकर और २१ बार क्षत्रियोंका सरस्वती आदि की स्तुनि है। संहार करके अंतमें सुभौम गजास माग गया । कविन ८ जिनरामायण-यह भी भामिनी षट्पदी इस प्रन्थको गुब्धिपुरमें रचा है। प्रारंभमें चन्द्रप्रभ में है । इम गन्थी जो प्रति मिली वह अपूर्ण है। उस पश्चात् कवि, सुपार्श्व, अर, सिद्ध, सरस्वती, यक्ष इन अपूर्ण प्रतिमें ७४ आश्वास (४३०९ पद्य ) और ७५३ की स्तुति है। आश्वासके कुछ पद्य है । ग्रन्थ मामान्य है। ५ कदंवगण -यह भी भामिनी पटपदीमें हिमशीतलनकथे- यह सांगत्य में है । है। इसमें १९९ पद्य और कुछ सांगत्य भी हैं । कविन इसमें ८७ पद्य हैं । इसे 'अकलंकचरित' भी कहते हैं। इस प्रन्थमें यथाशक्ति बहुतसे विषयोंको संग्रह किया इसमें अकलंकस्वामी द्वारा हिमशीतल राजाकी सभामें है। प्रायः इसीसे इसका नाम कदंबपुराण पड़ा होगा। बौद्धोंके वादमें पराजित होने तथा निष्कासित किये इसमें कविके 'बेट्टवर्धनचरित' तथा 'मुल्लाशास्त्र' का जाकर सिंहल द्वीप भेजे जानेका वृत्तान्त लिखा हुआ है। उल्लेख है । प्रन्थके प्रतिपादित विषय इस प्रकार हैं:- १० वट्टवर्धनचरिते-- यह भी सांगत्यमें है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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