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प्राषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६] क. साहित्य और जैनकवि कोष आदि प्रन्थ अधिकतया जैनियों के द्वारा ही बैचभूपका काल लगभग १७२० ईसवी सन है, अतः रचित हैं । तामिल भाषामें भी प्रायः इसी प्रकार है। कविका काल भी यही है । कविकी 'अहिंसाकथे' यक्षषटपदी लेखकोंमें कुमुदेन्दु, भास्कर, तृतीय मंगरस गान रूप है । इसमें धनकीर्तिका चरित्र वर्णित है। इनका नाम उल्लेखनीय है।"
'अन्य की सहायताके बिना मैंने इस ग्रंथको ६ मासमें ___ इस वक्तव्य के अन्त में मैं 'कर्णाटक-कविचरिते' पूर्ण किया है, ऐसा कविका कहना है। प्रारम्भमें वीरके मूल लेखक श्रीयुत आर. नरसिंहचार्यजी को जिन तदनन्तर कवि, सिद्ध, सरस्वतीआदिकी स्तुति है। धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकताहूँ, जिनकी असीम • रायगण (ल. १७२०) कृपा एवं अनुमति से मैं 'कर्णाटक -कविचरिते' के इन्होंने 'पद्मावतीय कोरवंजि' यक्षगान लिखा है। तृतीय भाग में आये हुए जैन कवियों के परिचय को इनका पितामह नागएण, पिता वोम्मरण कवि और हिन्दी में अनुवाद करके पाठकों के सामने उपस्थित स्थान श्रवणबेलगोल के उत्तरस्थित वेणुपुरि है । इनके करने में समर्थ हो सका हूँ। यद्यपि 'कर्णाटक-कवि- समय में श्रीरंगपट्टणमें 'कृष्णगजेन्द्र' गजा था, जिस चरित' के क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय भागोंमें आये का उल्लेख कविने स्वयं किया है । यह कृष्णराज प्रथम हुए जैन कवियों के परिचय में से पूर्व पूर्व कवियोंका (१७१३ से १७३१) अथवा द्वितीय (१७३४ मे १७६६) परिचय विशेष महत्वको लिये हुए है। फिर भी ततीय होगा। अधिकतर प्रथम कृष्णगज ही मालूम होता है। भाग पर से संकलित इस परिचय से पाठकों को बहुत कविक यक्षगानका दृसग नाम 'रामजनन' है । इसमें सी नई नई बातें मालूम होंगी और इतिहास तथा पुरा- पद्मावती के द्वारा कोरवंजिके वेपमें कौशल्या के पास नत्त्व-विषयका कितना ही अनुभव बढ़ेगा। इसी प्रकार जाकर उसे पत्र होने का सन्देश सुनाने का वृत्तान्त श्रागे भी कर्णाटक प्रदेशोंके बहुत से इतिहास एवं वर्णित है। पुरातत्त्व-सम्बन्धी सामगियोंको हिन्दी पाठककों के
३ पाय ण (१७ ८) सामने रखने की मेरी बलवती इच्छा है । देखिये उसे इन्होंने 'अहिमाचरित' लिखा है। इनका पिता पग करने के लिये मैं कहाँ तक समर्थ होता हूँ। गम्मढसेट्टि, गुरु नयसन, जन्मस्थान संगीनपुरके ___ 'कर्णाटक कविचरित' के तीसरे भाग में आए हुए राजा 'मंगमगय' के पुत्र..... 'द्र भुपके राज्यमें अवजैन कवियों का, काल क्रमसे, संक्षिप परिचय इस स्थित भारंगि था । एक पूर्ण पद्यमें ग्रंथरचनाका काल प्रकार है :
'प्रभव' संवत्सर लिखा हुआ मिलता है । 'कर्नाटकक१ अन्ताप (लगभग ई - सन् १७१०) विचरित' के लेखक महोदयका मत है कि यह 'प्रभव'
इन्होंने 'अहिंसाकथे' नामक यक्षगान लिखा है। शक १६७० ( ई. सन् १७४८ ) होना चाहिये । उक्त यह वैश्य हैं । इनका पिता चन्दण्णसेट्टि,माता चन्नम्म 'अहिंसाचरित' सांगत्यमें है और इसकी पदासंख्या
और निवासस्थान चिक्कबल्लापर है। इनका कथन है ६३४ है । इस ‘पंचाणुव्रतचरिते' भी कहते हैं । कविके कि, 'मैं समन्तभद्र के वरसे उत्पन्न हुआ हूँ।' इनके "मुकुरदन्तेबेलगलि एनकुल- दर्पण के समान मेरा ममयमें बैचभुप विक्कबल्लपुरमें राज्य शासन करता था। कुल उद्योनित हो" इस पदसे पंथ रचनेका उद्देश्य म्व