SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६] क० साहित्य और जैनकवि मगे, जैनगणितसूत्रटीकोदाहरण आदि गणित ग्रंथोंका 'पाण्ड्य राजा' के लिये 'कल्याणकीति' ने 'ज्ञानचंलेखक 'राजादित्य' विष्णवर्धन (११११-११४१) द्राभ्युदय' तथा संगीतपुरके ' हैवनप ' के पत्र संगम के समयमें था । यशोघरचरित्र आदि ग्रंथों का लेग्वक की आज्ञानुसार 'कोटीश्वर' ने 'जीवन्धरषट्पदी' की 'जन्न' कविका पिता 'सुमनोबाण नरसिंह राजा का रचना की है । 'भरतेश्वरचरित्र'का रचयिता रत्नाकर' कटकोपाध्याय था । कविताविशारद 'चिराज' कवि * कार्कलके भैरवरस प्रोडेय की सभामें प्रा'वीर बल्लाल' का मन्त्री था । यह कवितामें 'पोन्न' स्थान-कवि था । रस-रत्नाकर, भारत, वैद्यसांगत्य कविके समान रहा। उसी राजाके अधिकारी 'पानाभ' आदि के लेग्वक 'माल्व' कवि तैलव, हैव, कोंकण देके आशयानुसार 'नेमिचंद्र' ने 'अर्धनमि' बनाया है। शाधिपति साल्वमल्ल का दरबारी कवि था। कार्कलके रमी राजाके अन्यतम मंत्री रेचरस की प्रेरणासे 'पा- भवेन्द्र की आज्ञानुसार 'बाहुबलि' ने 'नागकुमारचन्न' न 'वर्धमानपुराण' की रचना की है । उक्त राजाने चरित्र' की रचना की है । इमी राजा की आज्ञानुसार ही जन्न कविका 'कविचक्रवर्ती' की उपाधिस विभ- 'चन्द्रम' कविन 'कार्कल-गोम्मटेश्वर-वरित्र' लिखा है। पित किया था । 'केशिराज' के पिता 'मल्लिकार्जन' ने गंम्मापेके राजा भैरवराय के समयमें 'आदियप्प' ने 'सोपेश्वर' के विनोदार्थ सिक्ति सुधार्णाव' की रचना 'धन्यकुमारचरित्र' लिखा है । 'पायगण' ने संगमराय की है । सौन्दनियरहरु-'पार्श्वनाथपुगण'का कर्ता के पुत्रके आश्रित रहकर 'अहिंसाचरित्र' की रचना की 'पार्श्वपण्डित' कार्तवीय चतुर्थ.का आस्थानकवि रहा, है । 'रामचन्द्रचरित्र' के पूर्वार्धका रचयिता 'चंद्रशेखर' और द्वितीय 'गणवर्म' इसी राजा के अधिकारी कवि 'बंग्वाडि लन्मण भंगरस' का आम्थानकवि 'शान्तिवर्म' का आश्रित था। मालम होता है कि था। रामचंद्र चरित्र' के उत्तरार्ध का लेखक पद्मनाभि बालचन्द्र कवि भी इमी राजा के ममयमें था। कवि मूलि के चंन्नगय का आश्रित रहा। चौटरानी करहाट के शिलाहार-गंडगदित्य के पुत्र चन्नमाम्ब के समयमें उमकी आज्ञानुसार 'सुराल' लागराजा की आज्ञानुसार 'कर्णपार्य' ने 'नेमि- कविन 'पद्मावतीचरित्र' की रचना की है। नाथपुराण' और उसी गजाके समयमें नमिचंद्र' ने विजयनगर के गजा-'प्रथम हरिहर' 'लीलावनी' की रचना की थी। (१६६६-१३५३)क कालमें मूगलिपुर के स्वामी प्रथम कोंगान्ध - विदित होता है कि 'चन्द्रनाथाक' मंगरमन 'खगेन्द्रमणिदर्पण' की और द्वितीय हरिहर का लेवक मौक्तिक' कवि वीर कोंगाल्व के कालमें कं आम्थानकवि मधुर ने 'धर्मनाथपुगण' की रचना चंगाल्व - तृतीय 'मंगरम' इन्हीं राजाओं का का है। शब्दानुशासन की है । 'शब्दानुशासन' के लेखक भट्टाकलंक' वेंकटकुलक्रमागत मंत्री का पुत्र था । इस कविने जयनृप TM पनिराय के समयमें थे, यह बान विलिगि ताल्लकेके काव्य,प्रभञ्जनचरित्र, श्रीपालचरित्र, मम्यक्त्वकौमदी, एक शासनसे ज्ञात होती है। सृपशास्त्र आदि ग्रंथोंको रचा है। * "मादर्श-जैनचरितमाला" के माहित्यांक में प्रकाशित मेरा तुलदेश के गना - कार्कल-भैरवग्म के पुत्र लख दग्यो । था।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy