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अनेकान्त
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से हर एक राज- दर्बार से यह निमंत्रित होकर जाता और महती प्रशंसा तथा सत्कार के साथ वापिस लौटता
था ।
इस कविकी चार प्रसिद्ध रचनाएँ हैं - १ गदायुद्ध जिसे साहस भीमविजय भी कहते हैं । २ अजित - तीर्थकर पुराणतिलक, ३ परशुरामचरित और ४ चक्रेश्वरीचरित । पहली रचना शैवमतानुयायी चालुक्यराज 'तैलप' को उद्देश करके लिखी गई थी । तैलपने रन्नकी इस रचना से सन्तुष्ट होकर उसे "कविचक्रबर्ती" की उपाधि दी थी। साथ ही, हाथी, पालकी, गाँव यदि देकर उसका पूर्ण सत्कार किया था । रन्न की विद्वत्तासे मुग्ध होकर ही बादको होनेवाले प्रसिद्ध प्रसिद्ध विद्वानोंने अपनी अपनी रचनाओं में रन्नकी रचनाको उदाहरण रूपसे उद्धृत किया है, जिसके लिये नागवर्म, केशीराज तथा भट्टाकलंक आदि वैयाकरणोंके ग्रंथ ही पर्याप्त हैं।
रन्नकी रचना में शब्द-सुन्दरता, रस, अलंकार, ध्वनि, गुण आदि परिपूर्ण होने से पढ़ने वालों के हृदय में जो परम आनन्द होता है उसमें केवल सहृदयों का अनुभव ही प्रमाण है । फिर भी रन्नकी कविता के कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं। विभिन्न भाषाकी कविताके अनुवादमें यद्यपि वह चमत्कार नहीं रहता जो मूलमें होता है – यों ही कुछ आभास मिला करता है तो भी कविका पाण्डित्य परिचय करानेके लिये उसकी रचना के कुछ अंशका अनुवाद भी पाठकोंके सम्मुख रख देना उचित समझता हूँ:
कर्णाटक रचना | "मोन्दिदलि-निनद-दिन्दभि । बन्दिसुतम गन्योन्पुनर्दर्शनम ||
[वर्ष १, किरण १
केन्दु दिन
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बन्ददे मुगिदिर्दु वलर्दता वरेयलर्गल् ॥”
इसमें बतलाया है कि, 'सूर्यास्त समय में आपो आप मुकुलित होने वाले कमल अपने मित्र सूर्यका वियोग देख कर प्रत्यागमनके लिये ही मानों हाथ जोड़ कर भ्रमर ध्वनि से प्रार्थना कर रहे हैं।' यह उत्प्रेक्षालंकार का एक नमूना मात्र है।
संस्कृतबाहुल्य रचना | शिष्टजनाशिष्टं बहु
कष्टं बहु दुष्टमष्टकर्माशिपरि । प्लष्टं हा हा धिक् चि
कष्टमवश्यं निकष्टमी संसारम् ॥ इसमें "च उगति दुख जीव भरे हैं, परिवर्तन पंच करे हैं । सब विधि संसार असारा, तामें सुख नाहिं लगारा ॥"
इस हिन्दी रचना विषयको कितने अच्छे ढंग रक्खा है उसका पता उभय भाषा के सहृदय विद्वान ही लगा सकते हैं ।
इतिहास के पण्डितों का कहना है कि रन्नकी कोई न कोई जुदी संस्कृत रचना भी होनी चाहिये; परन्तु वह अभी तक उपलब्ध नहीं हुई तथापि कर्णाटकी रचना के बीच बीचमें पाई जाने वाली संस्कृत रचना भी कविके संस्कृत पांडित्यकी यथेष्ट परिचायक है । पाठकों के विनोदार्थ उसीके कुछ नमूने यहाँ दिये जात हैं । भगवान् श्रजितनाथके जन्म कल्याण समय इन्द्र के द्वारा गीर्वाणवाणी से स्तोत्र कराते हुए लिखा
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“जय जय जगत्त्रयपतिकिरीटकूटको टिमसृणचारुचञ्चन्नखमयूखोदन्तमयूखमण्डल, मण्डलीभूतसकलदिकपालमालामौलिमणिकिरणजालबाला