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________________ ४६६ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८, ९, १० था कि सूरत शहर की एक पब्लिक सभा में एक संप्रदाय परस्पर भोजन तथा कन्याव्यवहार का प्रायः वैष्णव पंडित ने अभिमानपूर्वक कहा था कि वल्लभा- खुल्लमखुल्ला विरोध प्रदर्शित करते हैं । चार्य के सम्प्रदाय वालों ने तीन लाख जैनों को वैष्णव उपर्युक्त वस्तुस्थिति तथा आचरण का परिणाम धर्मानुयायी बनायाथा।" लेखक महानभावका कथन यह हुआ कि जिन समुदायों में परस्पर भोजन तथा है कि उपर्युक्त कथन प्रायः सत्य है। कन्याव्यवहार की छूट थी वे मंडलियाँ circles ) __ अब प्राचीन जैन ज्ञातियोंने, इस कारण कि उनके उपर्युक्त भेदों के कारण प्रति दिन घटती गई। इसका अनुयायियोंको प्रारंभसे ही म्वमतानुसार अपवित्र एवं प्रत्यक्ष उदाहरण यह है कि बीसा श्रीमालादि बड़ी मिध्वात्वी अन्य धर्मी लोगोंके साथ रहना पड़ता था, जातियों में विवाहयोग्य ममस्त युवकों के लिये कन्या स्वतंत्रतापूर्वक प्राचीन समयमें ही भोजन और कन्या- कैसे प्राप्त करना, यह एक कठिन कार्य हो गया, और व्यवहार संबंधी कई एक कठोर नियम बना लिय थे। अब भी है। गुजरात, काठियावाड के कई एक स्थानों और जब फिर से ये ज्ञातियाँ श्रीमाल, वीसा श्रीमाल, में ऐसी भी परिस्थिति उत्पन्न हुई है कि एक बीसा दम्सा श्रीमाल, लाडुआ श्रीमाल, एवं वीसा सवाल, श्रीमाल श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, यदि अपनी कन्या का दस्सा ओसवाल, पाँचा सवाल और अढईया विवाह उस ही गाँव के श्वे० स्थानक वासी बीसा श्री. आसवालादि भिन्न भिन्न पटा-ज्ञातियों (उपजातियों) मालके साथ करता है तो वह मनुष्य संघबाहिर करने में विभक्त हो गई, तब उन पेटा ज्ञातियों में भी का पात्र होता है। और वेरावलका कोई श्वेमूर्तिपूजक उपर्युक्त नियम अधिक संख्या में बनने लगे। अब दम्सा ओसवाल, यदि वलानिवासी श्वे. मूर्तिपूजक गुजरात, काठियावाड और मारवाडादि प्रान्तान्तर्गत दम्सा ओसवाल के माथ अपनी पत्रीका विवाह करतो स्थानानुसार जहाँपर इन पेटा-ज्ञातियोंके समूह निवांस वह मनुष्य भी बड़ा दोषी माना जाता है। करतथं उन्हीं के अनुसार वहाँ वहाँ पर फिर इन पेटा- भारतवर्ष में लग्नयोग्य कन्याओं की बड़ी भारी ज्ञातियों की भिन्न भिन्न शाखायें उत्पन्न हुई। त्रटि है । इस विषय में नाना प्रकार के सबल कारण फिर भी इन सब ज्ञातियों तथा उप-ज्ञातियों की मालम होते हैं। उनमें से मुख्य कारण कुछ यही प्रतीत प्रत्येक शाखा अपन अपन भोजन तथा कन्याव्यवहार- होते हैं कि एक तो कई समाजों में विधवा स्त्री का सम्बंधी नियम दत्तचित्त होकर पालन लगी। इतना ही पनलग्न करने का निषेध है । और विधुर लोगों के नहीं किन्तु यह ज्ञातियाँ भिन्न २ धार्मिक समुदायों में लिय पुनर्लग्नसंबंधी प्रतिषेध के अभाव से वे लोग विभक्त हो गई । इस ही प्रकार जैन वणिक ज्ञाति बारंबार पुनर्लग्न करते हैं । दूसरे भारतीय स्त्रियाँ कम मात्र श्वेताम्बर एवं दिगम्बर इन दो मुख्य भागों में ही अवस्था में ही मृत्यु के मुखमें प्रवेश करती हैं, जिसका विभाजित नहीं हैं । बल्कि श्वेताम्बर जैन ज्ञाति में भी कारण यह है कि प्रसूति के समय उनके आरोग्यश्वे० मूर्तिपूजक, श्वे० स्थानकवासी, श्वे० तेरहपंथी, संबन्धी साधनों का अभाव होता है , तथा बाल्यकाल ये शाखायें हो गई । दिगम्बर संप्रदाय में भी तेरहपंथी में विवाह हो जाने के कारण उनके शरीर दुर्बल और तथा बीसापंथी ये दो शाखायें हैं। ये सब भिन्न २ रोगी बन जाते हैं। तीसरे कई एक गोत्रों में सगपण
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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