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________________ ४६२ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,९,१० पर से किया गया है। इसके प्रारंभ में जिनस्तुति की की है जिसमें संस्कृत शब्दों के कनड़ी पर्याय दिये हैं। गई है और फिर विष्णु, शिव, गजानन के भी स्तोत्रों इनका भी समय लगभग १३०० ई०सन् जान पड़ता है का संग्रह किया गया है । इसमें हायसल राजाओं की १६ प्रभाचन्द्र ( ल० १३०० ) परम्परा भी दी है। इन्होंने 'सिद्धान्तसार' और 'चारित्रसार' की कमल्लप्प, मल्ल, चिदानन्द मल्लिकार्जुन ये इस कवि नही टीकायें लिखी हैं। के नामान्तर हैं । 'चोरकथा' नामक ग्रंथ भी इसी कवि का लिखा हुआ है, इसके लिए कोई प्रबल प्रमा १७ कनकचन्द्र ( ल०१३०० ) ण नहीं मिलता । हमारी समझ में चोरका का इन्होंन कोंडकुदाचार्यके 'मोक्षप्राभूत' या 'सहजाको कोई दूसरा ही मल्लिकार्जन है और वह आध- मप्रकाश' ग्रंथ पर कनड़ी व्याख्यान लिखा है । निक है। सूक्तिसुधार्णव का कर्ता शब्दमणिदर्पणकार १८ आर्यसेन (ल. १५३१ ) केशिराज का पिता और जन्न कवि का बहनोई था । नागराज'ने लिखा है कि उनके 'पुण्यास्रवपुराण' यह वीर सोमेश्वर (१२३३-५४) का समकालीन को 'आर्यसेन' ने सुधार कर सुंदर बनाया है । इन्होंन था। केशिराज के 'शब्दमणिदर्पण' के अनुसार यह किसी स्वतन्त्र ग्रंथ की भी रचना की है या नहीं, यह 'मुनिश्रेष्ठ' था। प्राचीन कवियों का निर्णय करने मे इस प्रन्थ का मालूम नहीं हुआ। " बहुत उपयोग होता है। इसमें निम्न लिखित ग्रंथों पर १६ बाहुबलि पंडित (१३५ . ) से पद्य संग्रह किये गये हैं इन्होंने 'धर्मनाथपुराण' की रचना की थी, जिस अग्गल-कृत 'चन्द्रप्रभपराण', अभिनवपंप-कत का कि अंत का केवल एक ही पत्र उपलब्ध हुआ है। 'मल्लिनाथपुराण' और 'रामायण', अण्डय्य-कृत 'कब्बि यह ग्रंथ शक संवत् १२७४ में समाप्त हुआ है और इस गरकाव', आदि गुणवर्म-कृत 'शद्रक', आदिनागवर्म- के १६ श्राश्वास हैं । इनके गुरुका नाम 'नयकीति' था। कृत 'कादम्बरी', उदयादित्य-कृत 'अलंकार', कमलभव २० आयतवर्म ( ल०१०००) कृत 'शान्तीश्वरपुराण',कविकाम-कृत श्रृंगाररत्नाकर', गुणवम-कृत 'पष्पदन्तपुराण', चन्द्रराज-कत 'मदनति- इन्होंने कनड़ी रलकरण्डक' चम्प लिखा है, जिस लक', दुर्गसिंह-कृत 'पंचतंत्र',देवकवि-कृत 'कुसुमावली " में ३ परिच्छेद हैं और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का २ नमिचन्द्र-कृत 'लीलावती' और 'अर्धनमि', सदभट निरूपण किया है। इनके गुरु का नाम 'वर्द्धमान' सिकृत 'जगन्नाथविजय', हरिहर-कृत 'गिरिजाकल्याण'। द्धान्तदेव है । इनके समयका ठीक निर्णय नहीं होसका। १, पबमम ( ल . १३८०) २१ चन्द्रकीर्ति । ल० १४००) इन्होंने विंशतिप्ररूपणी टीका' लिखी है। लगभग इन्होंने परमागमसार' लिखा है जिसके १३२ कंद १२५० में लिखे गये 'माघनंदिश्रावकाचार' का इन्होंने पद्य हैं। ग्रंथ के अंत में अपने गुणों का वर्णन किया है। अनुवाद किया है, इस कारण इनका समय ल०१३०० सरस्वतीमुखतिलक और कविजनमित्र इनके विरुदथे । होना चाहिए। इनका भी समय निर्णय ठीक नहीं हो सका। १५ अमृतनन्दि ( ल०१३०० ) इन्होंने अकारादि क्रमसे वैद्यक निघण्टुकी रचना
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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