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________________ ४३८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,९, १० गये हैं और जिसके विना सुख-शांतिकी प्राप्ति नहीं हो जीबंधर के पिता सत्यंधरने बनाया था और उसमें सकती, उमी विद्या और ज्ञानस जैनियोंन स्त्रियोंको अपनी गर्भवती स्त्रीको बिठलाकर,गर्भस्थ पत्रकी रक्षाकं वंचित रक्खा, यह इनका कितना बड़ा अन्याय है ? लिए, उसे दूर देशान्तरमें पहुँचाया था! इसी प्रकार जैनियोंने स्त्रियोंकी योग्यता और उनकी विद्यासम्पादन- सैंकड़ों विद्याओंका नामोल्लेख किया जा सकता है । जैशक्तिको न समझा हो, ऐसा नहीं; किन्तु 'लडकियाँ नियोंने शिक्षा और खासकर स्त्रीशिक्षासे द्वेष रखकर इन पराप पका धन और पगा घरकी चाँदनी समस्त विद्याओंके लोप करनेका पाप अपने सिर लिया है और इसलिए जैनी समम्त जगतके अपराधी हैं। हैं, वे हमारे कुछ काम नहीं आ सकीं।' इस जैनियों का एक भारी अत्याचार औरभी है और वह म्वार्थमय वामनामे जैनियान उन्हें विद्यास विमुख अपनी संतानकी छोटी उम्र में शादी करना है। इसके रक्खा है। इस नीच विचारन ही जैनियोंका अपनी विषयमें मुझे कुछ विशेष लिखनकी जरूरत नहीं है। मंतान के प्रति ऐमा निर्दय बनाया और इतना विवेकहीन हाँ, इतना ज़रूर कहूँगा कि इस राक्षमी कृत्य के द्वारा बनाया कि उन्होंने स्त्रीममाजके साथ पशुओंसहश आज नक लाग्वाही नहीं किन्तु करोड़ों दूधमुंही बालिव्यवहार किया, उन्हें जड़वत रकग्वा, काटपापागाकी काएँ विधवा हो चुकी हैं-वैधव्यकी भयंकर आँचमें मूर्तियाँ समझा और उन्हें अपनी आत्मान्नति करनंदना भन चुकी है-, हजारोंने अपने शीलभंगारको उतार नांदूर रहा, यह भी खबर न होने दी कि मंसाग्मं क्या दिया, व्यभिचारका आश्रय लिया, दोनों कुलोंको कलं. हो रहा है। क्या यह थोड़ा अत्याचार है ? नहीं इस कित किया और भ्रणहत्यायें तक कर डाली। इसक अत्याचारके करनेमें जैनी मनुष्यताका भी उल्लघन कर मिवाय,बाल्यावस्थामें स्त्री-पुरुपका संसर्ग होजानस जा गये । इनसे पशुपक्षी ही अच्छे रहे जो अपनी नर और शारीरिक और मानमिक निर्बलनायें इनकी संतानम मादी दोनों प्रकारकी संतानका ममान टिम अवलो उत्तरोत्तर प्राप्त हुई उनका कुछ भी पारावार और हिसाब फन करते हैं और उसमें किसी भी प्रकार के प्रत्यपका- नहीं है । निर्व न मनप्य का जीवन बड़ा ही वबाल-जान की वांछा न रखते हुए अपना कर्तव्य ममझ कर और मंकटमय होना है। गंगाका उम पर आक्रमण सहपं उसका पालन पोषण करत है। हो जाना तो एक मामूलीसी बात है। जैनियों के इम । यहाँ पर मुझे यह लिखते हुए दुःख होना है कि अत्याचारसे उनकी मंतान बड़ी ही पीड़ित रही। उसजैनियांका यह अत्याचार केवल स्त्रीगमाजको हा नहीं में हिम्मत, साहस, धैर्य, पुम्पार्थ और वीरता आदि भांगना पड़ा, बल्कि पुरुपोंको भी इमका हिम्पदार सद्गुणांकी सष्टि ही एकदम उठ खड़ी हुई । जनी बनना पडा है-वालका पर भी इसका नज़ला टपका निवल होकर तन्दुल मच्छकी तरह घार है । माताओंके अशिक्षित रहनेमे -परस्थिनिके बिगड़ पापांका संचय करते रहे और इन पापनि उदय आकर जानम--वे भी शिक्षा प्रायः विहीन ही रहे हैं । इजा- जन्म-जन्मान्तगेंमें इन्हें खब ही नीचा दिखाया। रंमें दम पाँचने यदि मामूली विद्या पढ़ी भी -कुछ जेनियांका यह गुडडा गुडडीका बल (बाल्य विवाह) अतरांका अभ्यास किया भी-ताइमका नाम शिला बड़ा ही हृदयद्रावक है। इसने जैनममाजकी जडम नहीं है। जैन बालकों को जैमी चाहिए वैमा विद्यायें बड़ा ही कुठाराघात किया है। नहीं पढ़ाई गई। यदि उन्हें बराबर विद्यायें पढ़ाई जाती इस प्रकार जैनियोंने बहुत बड़े बड़े अत्याचार ना आज उन हजागे विद्याओंका लोप न होता, किये हैं । इनके सिवा और जो छोटे मोटे अत्याचार जिनका उल्लेख जैन शास्त्रों मिलता है। दिव्य वि- किये हैं उनकी कुछ गिनती ही नहीं है । जैनियोंके इन मानों की रचनाको जाने दीजिए, आज कोई जैनी उस अत्याचारोंसे जैनधर्म कितना कलंकित हुआ और जगमयग्यत्रके बनानेकी विधि भी नहीं जानता, जिसको में कैमे कैसे अनर्थ फैले, इसका कुछ ठिकाना नहीं है ।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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