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________________ आषाढ, श्रावण,भाद्रपद वीरनि०सं०२४५६] "मारवाड़का एक विचित्र मत" ४३९ नियोंके इन सब अत्याचारों ही का फल उनकी वर्त्त- दूसरोंको घृणाकी दृष्टिसे देखते थे, अब खुदही घणामान दशा है । बल्कि नहीं, जैनियोंमें इस समय जो के पात्र बन गये; जिस बल, विद्या और ऐश्वर्य पर कल थोड़ी बहुत अच्छी बातें बची-खुची हैं उनका श्रेय इन्हें घमंड था वह सब नष्ट हो गया; ये लोग अपने म्वामी कुन्दकुन्द, समन्तभद्र. पूज्यपाद, अकलंक- आपको भले ही जीवित समझते हों परन्तु जीवित देव.विद्यानन्द और सिद्ध मेन आदि परमोपकारी समाजोंमें अब इनकी गणना नहीं है। इनकी गणना है आचार्यों तथा अन्य परोपकारी महानभावोको प्राप्त है। मरणोन्मुख समाजोमें। जैनी लोग अन्धकारमें पड़े हुए एम जगद्वन्धुओंके आश्रित रहनस ही जैनधर्मके अभी मिसक रहे है-वास्तवमें इनकी हालत बड़ीही करनक कुछ चिन्ह अवशेष पाये जाते है। अन्यथा आमतौर णाजनक है। जब तक जैनी लोग इन अत्याचारोंको पर जैनियोंके अत्याचार उनकी सत्ताको बिलकुल लोप ___ बंद करके अपने पूर्व पापीका प्रायश्चित्त नहीं करेंगे तब करने के लिए काफी थे। जब तक जैनियोंन अत्याचार तक वे कदापि इस दैवकोपसे विमुक्त नहीं हो सकते, करना प्रारंभ नहीं किया था तब तक इनका बराबर उनका अभ्युत्थान नहीं हो सकता और न उनमें डंका बजता रहा, ये खूब फलत और फनते रहे । परन्तु जीवनीशक्तिका फिरसे संचार ही हो सकता है। जवसे ये लोग अत्याचारों पर उतर आए तभीसे इनका आशा है हमारे जैनीभाई इस लेखको पढ़कर अपपतन शुरू हो गया । और आज वह दिन आ गया कि ने अत्याचारोकी परिभाषा समझेगे और उनके भयंकर ये लोग परी अधोदशाको पहुँच गय हैं । जैनियोंके परिणामका विचार कर शीघ्र ही उनका प्रायश्चित्त अत्याचार जैनियोंको वा ही फल-डन्होंने अपने कि- करनमें दत्तचित्त होंगे ।प्रायश्चित्तविधि बतलाने के लिए यका खब मजा पाई। ये लांग दसगेको धर्म बतलाना में महप तयार है। नहीं चाहते थे, अब खुद ही उस धर्ममं वाचत हो गये; जुगलकिशोर मृग्टनार "मारवाड़का एक विचित्र मत" और दीक्षितजीका म्पष्टीकरण जनवरी सन १९३० के 'चाँद' में 'मारवाडका एक भावना इन शब्दोमें की गई है-"दग्वे, इस मतके 'विचित्र मत' शीर्षक एक लेख प्रकट हुआ है, अन्त होनमें कितना ममय और बाक़ी है ।" परन्तु जिसके लेग्वक हैं श्रीशंकरप्रमादजी दीक्षित। इसमें श्व- यह सब कुछ होते हुए भी उसमें यह नहीं लिम्वा कि नाम्बर जैनधर्मकी एक विचित्र शाखा 'तरहपन्थ' संप्र- यह सम्प्रदाय श्वेताम्बर जैनधर्मके अन्तर्गत है, और दायका कुछ परिचय देते हुए, जो कि निःसन्देह बड़ा न जो परिचय दिया उसके आधार-प्रमाणक रूपमें ही विचित्र है, उस पर कटाक्ष कियगय हैं-उस अमा- किसी ग्रंथकं नामका ही उल्लेख किया है-मात्र "मारनुषिक, हिंसात्रिय तथा संमारका सबसे बुरा धर्म बत- वाइ-प्रदेशमें जैनधर्मके अन्तर्गत एक तेरहपन्थ मम्प्र. लाया गया है-और अन्तमें उमके शीघ्रनाशकी दाय है" ऐमा मामान्य उल्लेख करके उसपर सारे श्रा
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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