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________________ ४२८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,९,१० लिग्वा है कि वे कौतहलके लिये प्रकट किये गये हैं:- ही बतलाना चाहता हूँ कि उस समय जैनमंत्र-शास्रीबहूनि कर्माणि मुनि प्रबीरे की जो सृष्टि हुई और उनकी जो परम्परा चली उस विद्यानुवादात्प्रकटीकृतानि । मबके फलस्वरूप आज भी दिगम्बर और श्वेताम्बर असंख्यभेदानि कुतहलार्थ, दोनों ही सम्प्रदायोंके जैनमाहित्यमें बहुतसे मंत्रशाम्र कुमार्ग-कुध्यानमतानि सन्ति ।। ४०-४ ।। पाये जाते हैं । 'ज्ञानार्णव' आदि योग-विषयक ग्रंथाम 'पदस्थ' नामक धर्म्य ध्यान के अंतर्गत जो मंत्रवाद पाया मुनियोंका यह 'कौतहलार्थ' कार्य सिवाय इसके जाता है, उसे छोड़ कर दिगम्बर मंत्रशास्त्रों में कुछक और कुछ समझमें नहीं आता कि उन्होंने लोकमें नाम इस प्रकार हैं:- १ ज्वालिनीमत, २ विद्यानशाअपनी प्रनिष्ठाको नथा भ्रमवश जैनशामनकी प्रतिष्ठा मन, ०३ ज्वालिनीकल्प, ४ भैरव-पद्मावतीकल्प, ५ को भी कायम रग्वनके लिय वैमा करना ज़रूरी भारतीकल्प, ६ कामचाण्डालीकल्प, बालग्रहचिकित्मा, समझा। अन्यथा, जैनमुनियाँक लियं म्वप्नमें भी ८ ऋपिमंडलयंत्र-पजा, ९ श्रीदेवताकल्प, १८ मगम्बकानुहलके तौर पर ऐम अमन ध्यानाक भवनका तीकल्प, ११ नमाका विधान नहीं है; क्योंकि कौतुकम्पस भी किये हुए ___इनमें में पहला ग्रंथ इन्द्रनन्दियोगीन्द्र का, नं०२ में म ध्यान मन्मार्गी हानिक लिय बीज रूप हो पड़ने ७ तक छह ग्रन्थ मल्लिपण आचार्यके, ८ वाँ ग्रंथ गणहैं अथवा अपने ही नाशका कारगा बन जाते हैं। जमा नन्दी मुनिका, वाँ अरिष्टनेमि भट्टारक का, १०वाँ अहकि श्रीशुभचन्द्राचायक निम्न वाक्यांम प्रकट है: हामका. और ११ वाँ सिंहनन्दीका बनाया हुआ है । स्वप्नेऽपि कौतकनापि,नाऽपद्ध्यानानि योगिभिः । पापा । इनके सिवाय, गणधरवलय कल्प, ब्रह्मदेवस्तात्र, पद्मामेव्यानि यान्ति वीजत्वं यतः मन्मागेहानय ।।६।। वतीम्तात्र, ज्वालिनीम्तात्र, पार्श्वनाथम्तात्र, कूष्मा असद्भ्यानानि जायन्ते म्बनाशायंव कवलम् । गनीम्तोत्र, मरम्वतीम्तांत्र, कलिकुंडपजा, घंटाकणगगाद्यमद् ग्रहावेशाकोनकन कृतान्यपि ।। ८ ।। तात्र, बीजकोश और हनमत्पताकाविधि आदि और -जानार्णव ४० वॉ मर्ग। भी कितने ही ग्रन्थ अथवा प्रकरगा पाये जान हैं, जो इममें मदह नहीं कि काम-क्रोधादि-वीभन क्षुद्र सब मंत्रांक अनशामनका लिये हुए हैं; परन्तु इन। देवताओंकी आराधना को लिये हुए गम कुध्यानाम रचयिताप्राक नाम मुझे इम ममय ठीक मालूम नहीं, पड़कर कितने ही मुनि अपने उच्च आदर्शमें अपने मंभव है कि इनमें कोई श्वेताम्बराचार्यकी कृति भी हो, आध्यात्मिक विकासक दृष्टि-बिन्दुमच्युत होकर पतित प्रायः ये सब ग्रंथ बम्बईक गलक पन्नालाल-सरस्वती हुए है, और इमानिय जैन शास्त्रोंमें जगह जगह भवनमें मौजूद हैं और अन्यत्र भी पाये जाते हैं। इनमें मनियोंका इस प्रकार के मंत्र-तंत्र-यंत्रादिककं झगड़ाम से नं०८ का 'ऋषिमंडलयंत्र-पूजा, नामका प्रन्थ भाषा पड़नका निषेध किया है-भले ही गृहस्थ लोग उनका टीका-सहित छप चुका है। 'बीजकोश' गद्यमय और कुछ अन्मान करें। परन्तु यहाँ पर इम विषयको कोई पद्यमय दोनों प्रकारकं पाये जाते हैं। इनमें मंत्रोंक विशेष चर्चा करनेका अवसर नहीं है । मैं सिर्फ इतना बीजाक्षरों का परिचय है-अर्थात् यह बतलाया गया है
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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