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________________ जैन- मंत्रशास्त्र और 'ज्वालिनीमत' ४२९ है, जिसमें चौबीस अधिकार तथा पाँच हजार मंत्र हैं । जैसा कि उसके निम्न वाक्यों से प्रकट है:अथ मंत्रिलक्षण विधिर्मत्राणां लक्ष्म सर्वपरिभाषा । सामान्य मंत्र साधन वृक्तिः सामान्य मंत्राणाम् ॥ १ गर्भोत्पत्तिविधानं बालचिकित्सा ग्रहोपसंग्रहणं । विषहरणं फरिणतंत्रं मण्डन्यायपनयोरुजां शमनम् कृतरुथो मृत्प्रतिविमुच्चाटनं च विद्वेषः । स्तंभः शान्तिः पुष्टिर्वश्या स्त्र्याकर्षणं नर्म || ३ | धारिताया प्रयत्नेन रिपुसैन्यस्य सम्मुखे ।। ३२ । अधिकाराणां शास्त्रेऽस्मिन्निमं चतुर्विशनिः क्रमात्कथि ताः । त्रसहस्राण्यस्य मत्राणां भवति संख्यानम् ॥ २ तम्या दर्शनमात्रेण व्याकुलीकृतमानसः । नश्यन्ति रिपवस्तस्य सिंहस्यैव मृगा यथा ।। ३३ उपलब्ध दिगम्बर साहित्य में मंत्रशास्त्र के सबसे अधिक ग्रन्थ मल्लिषेणाचार्यके पाये जाते हैं । आप बड़े मन्त्रवादी थे - महापुराण में आपने अपनेको खास तौर से 'गरुडवादी' लिखा है और साथ ही सरस्वती आप कोई वर भी प्राप्त थे, जिसका उल्लेख आपने 'भैरवपद्मावतीकल्पमें सरस्वतीवरमादः इन स्पष्ट शब्दोंमें किया है और दूसरे ग्रन्थों में 'बारवनालंकृतः' 'वाग्देवतालक्षित नाव्यक्त्रः' 'लब्धवाणीपसाउन इस प्रकार के विशेषणपदों द्वारा उसकी सूचना की है। आप 'उभय भापाकविशेखर'की पदवी विभूषित थे और 'नागकुमार काव्य ' तथा ‘महापुराण' की रचना पहले 'उमयमा पाकवि चक्रवर्ती' की पदवीको भी प्राप्त हो चुके थे, इससे आप उसका उल्लेख अपने इन दो ग्रन्थोंम कर सके है। आप अजित सेनानायके प्रशिष्य जिनसेनाचार्य के शिष्य थे और आपका समय विक्रमकी ११ वीं तथा १२ वीं शताब्दी है, क्योंकि आपका 'महापुराण' शक संवन ९६९ (वि० ११०४) में बन कर समाप्त हुआ है। मंत्रशास्त्रका आपका सबसे बड़ा ग्रन्थ ' विधानुशासन' आषाढ श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६ ] कि कौन बीजाक्षर किस अर्थमें अथवा किस कार्यसि द्धिके लिये प्रयुक्त होता है। हनुमत्पताकाविधिके अन्त में निम्न दो पद्म पाये जाते हैं, जिनमें बतलाया है कि इस हनुमन्तपताकाको गजके ऊपर स्थापित कर के यदि शत्रु - मैन्यके सम्मुख रखा जाय तो उस... दर्शनमात्र से शत्रु व्याकुल होकर नाशको प्राप्त हो जाते हैं, अथवा भाग जाते हैं, जैसे सिंहको देख कर मृग :मन्तपताकेयं गजस्योपरि संस्थिता । मंत्रशास्त्र के नामोमे जो 'कल्प' शब्दका प्रयोग पाया जाता है उसका अर्थ प्रायः 'मन्त्रवाद' है और जिस देवताका नाम उसके साथ में जुड़ा हुआ है उसे उस देवताका मंत्रवाद समझना चाहिये । कल्पका अर्थ 'सिद्धान्त' तथा 'मत' का भी है, और इस अर्थ में भी वह अनेक स्थानों पर प्रयुक्त हुआ है-इसीस 'ज्वालिनीमत' को 'ज्वालिनीकल्प' और 'ज्वालिनीमंत्रवाद' इन नामोंस भी उसी ग्रन्थ में उल्लेखित किया है । मल्लिके 'भैरवपद्मावती कल्प' में १ साधकलक्षर, २ मकलीकरण, ३ देवीपूजाक्रम, ४ द्वादशयंत्रभेदकथन, ५ स्तंभन, ६ स्त्रियोंका आकर्षण, ७ वशीकरणमंत्र, ८ अपनिमित्त, ९ वश्योपध और १० गारुड, ऐसे दस अधिकार हैं । इस ग्रंथ पर खुद ग्रंथकारने अपनी टीका भी लिम्बी । इसमें 'पद्मावती' देवीके पद्मा भिन्न १ त्रांतला, २ त्वरिता, ३ नित्या, ४ त्रिपूरा, ५ कामसाधनी, ६ त्रिपुरभैरवी ऐसे छह नाम और दिये हैं और फिर इन ग्रहों का भी अलग अ * त्रोतला त्वरिता नित्या त्रिपुरा कामसाधनी । देव्या नामानि पद्मायास्तथा त्रिपुरभैरवी ॥ ३ ॥
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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