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वर्ष १
ॐ अर्हम्
अनकान्त
परमागमस्य बीजं निषिद्ध-जात्यन्ध- सिन्धुर-विधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमधनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ - श्रमतचन्द्रसूरिः ।
समन्तभद्राश्रम, करौल बाग़, देहली।
आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, संवत् १९८७ वि०, वीर - निर्वाण सं० २४५६
धर्मस्थिति - निवेदन
कहाँ वह जैनधर्म भगवान !
( १ ) जाने जगको सत्य सुझायो, टालि अटल अज्ञान । वस्तुत कियो प्रतिष्ठित, अनुपम निज विज्ञान || कहाँ० ॥
(*) साम्यवादको प्रकृत प्रचारक,
परम अहिंसावान | नीच -ऊँच निर्धनी धनी, जाकी दृष्टि समान || कहाँ |
( ३ )
देवतुल्य चाण्डाल बतायो, जो है समकितवान ।
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शुद्र, म्लेच्छ, पशुहूने पायो, समवसरण में स्थान || कहाँ ० ॥
( ४ ) सती-दाह, गिरिपात, जीवबलि, मांसाशन मद-पान | देवमूढ़ता आदि मेटिसच, कियो जगत कल्यान || कहाँ० ||
( ५ )
कट्टर वैरीहूपै जाकी
क्षमा, दयामय बान । हठ तजि, कियो अनेक मननकोसामंजस्य विधान || कहाँ० ॥ ( ६ ) अब तो रूप भयो कछु औरहि, सकहिं न हम पहिचान | समता - सत्य-प्रेमने इक सँग, यातें कियो पयान || कहाँ० ॥
नाथुराम प्रेमी
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किरण ८, ९, १०