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________________ वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] वीर-सेवक-संघ और समन्तभद्राश्रम की नियमावली ४१५ रहेगी और इसका चुनाव हर वर्ष संघके वार्षिक अधिवेशन पर हुआ करेगा। परन्तु किसी सदस्यके इस्तीफा परिशिष्ट देन, काम न करने अथवा अन्य प्रकारस उसका स्थान नियम नं०६ में आश्रमकी जिस विज्ञप्ति नं० १का रिक्त होने पर उसकी जगह दूसरे सदस्यकी योजना उल्लेख है उसका कार्य-सूची-वाला अंश इस प्रकारहै:बीचमें भी होसकेगी और वह शेष सदस्योंके बहुमता * कार्य-सची * धार पर अथवा संघकी प्रत्यक्ष या परोक्ष मीटिंगके द्वारा हुआ करेगी। (१) ग्रंथसंपह-अर्थात्, आश्रमके भारती-भवनमें (१६) संघके मुख्य पदाधिकारी पाँच होंगे- संपूर्ण जैनग्रंथों की कम से कम एक एक प्रति संग्रह १ प्रधान, २ मंत्री, ३ अधिष्ठाता आश्रम, ४ को- करनेके साथ साथ दूसरे धार्मिक तथा ऐतिहासिकादि पाध्यक्ष, और ५ सम्पादक "अनेकान्त" । जरूरत होने अनेक विषयोंके उत्तमोत्तम तथा उपयोगी ग्रंथोंका एक पर सहायक मंत्री, उपअधिष्ठाता और सहायक सम्पा- विशाल संग्रह प्रस्तुत करना, जो आश्रमके कामोंमें सब दक भी नियत हो सकेंगे। और उनकी नियक्तिका - तरहसे सहायक होसके और जनता भी जिससे धिकार संघकी ओरसे कोई नियक्ति न होने पर उस अच्छा लाभ उठा सके। उस पदके पदाधिकारी (२) लुप्तप्राय जैनग्रंथोंकी खोज-अर्थात् जिन ग्रंथों (१७)संघका सब कार्य बहमतके आधार पर हा के निमोण आदिका पता तो चलता है परन्तु वे मिलते करेगा और अनुपस्थित सदस्योंकी लिखित सम्मति भी नहीं उनको भारत तथा भारतसे बाहरके शास्त्रभंडारी में उसमें परिगणित होगी। और प्रबन्धकारिणी समितिके तलाश कराकर आश्रमको प्राप्ति कराना। अधिवेशनका कोरम चार रहेगा। (३) ग्रन्थप्रशस्त्यादिसंग्रह-अर्थात्, जैन ग्रन्थोंमें (१८) संघ का वार्षिक अधिवेशन आमतौर पर दिये हुये ग्रन्थकारादिकके परिचयों तथा दूसरे ऐतिहामहावीर-जयन्ती के अवसर पर देहली में हुआ करेगा सिक भागोंका संग्रह करना । और जरूरत होने पर बाहर तथा दूसरे अवसरों पर भी (४) पर्ण जैनग्रंथावलीका संकलन-अर्थात् संपूर्ण हो सकेगा, जिसकी सूचना पहलेसे अनेकान्त' पत्रादि- जैनग्रंथोंकी एकवृहतसूची तय्यार करना,जो ग्रंथनाम, द्वारा सदस्योंको दी जायगी।। २ कर्ता, ३ भाषा, ४ विषय,५श्लोकसंख्या, ६निर्माण___ (१९) अधिष्ठाता-द्वारा बनाये गये उपनियमों के समय, ७ लेखन-समय, और ८ भंडारनाम-जैसी सुचलिये प्रबन्धकारिणी कमेटीकी स्वीकृति आवश्यक होगी नाओंको साथमें लिय हुए हो, तथा जरूरत होने पर और नियमोंका सम्पादन तथा संशोधनादिक संघकी जिसमें किसी किसी प्रन्थकी अवस्थादि-सम्बंथी कोई म्वीकृतिसे हश्रा करेगा। खास रिमार्क भी दिया जाय । (२०) अधिष्ठाता आश्रमको आमतौर पर २५) रु० (५) जैनशिलालेखसंग्रह, जैनमूर्तियोंके लेखसंग्रहमासिक वेतनके कर्मचारीको नियत तथा पृथक् करने सहित (शिलाओं-मूर्तियोंके संपूर्ण जैनलेखोंका संग्रह) का अधिकार होगा। इससे अधिक वेतनके कर्मचारी । की नियुक्ति और पृथक्करणके लिये उन्हें संघके मंत्री (६) जैन ताम्रपत्र, चित्र और सिक्कों का संग्रह। तथा प्रधानमें से किसीकी स्वीकृति प्राप्त करनी होगी। (७) जैनमंदिरावली, मूर्तिसंख्यादिसहित-अर्थात् (२१) संघके सभी प्रकारके सदस्योंके लिये संघ सब जगह के जैनमंदिरो की पूरी सूची। के प्रधान तथा आश्रमके अधिष्ठाताकी स्वीकृति प्राव (८) त्रिपिटक आदि प्राचीन बौद्धग्रन्थों परसे जैनश्यक होगी। इतिवृत्त का (जैनसम्बंधी अनुकूल या प्रतिकूल सभी वृत्तान्त का) संग्रह।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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