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________________ ४१४ अनेकान्त वर्ष १, किरण ६, ७ __ (ख) ऐसी सेवा बजाना जिससे जैनधर्मका समी- विभाग रहेगा। चीन रूप, उसके आचार-विचारोंकी महत्ता, तत्त्वोंका (९) आश्रममें 'साहित्यिक पारितोषिक फंड' नाम रहस्य और सिद्धान्तोंकी उपयोगिता सर्व साधारणको का एक विभाग भी रहेगा, जिसके द्वारा प्राचीन सामालूम पड़े-उनके हृदय पर अंकित होजाय-और वे हित्यका अन्वेषण तथा नवीनावश्यक उत्तम साहित्य जैनधर्मकी मूल बातों, उसकी विशेषताओं तथा उदार का उत्पादन (निर्माण) करने वालोंको प्रोत्साहन और नीतिसे भले प्रकार परिचित होकर अपनी भलको सु- उत्तेजन दिया जायगा । इस दशामें काम करने वालोंके धार सकें। लिये पहलेसे योग्य सचनाएँ निकाली जायँगी। ___ (ग) जैनसमाजके प्राचीन गौरव और उसके इति- (१०) आश्रममें एक आदर्श व्यायामशालाकी भी हासको खोज खोज कर प्रकाशमें लाना और उसके योजना की जायगी जिसमें मुख्यतया योगप्रणाली-द्वाग द्वारा जैनियोंमें नवजीवनका संचार करना तथा भारत- शारीरिक तथा मानसिकशिक्षाकी विशेष व्यवस्था रहेगी। वकासच्चा पूर्ण इतिहास तय्यार करने में मदद करना। (११) आश्रममें सेवाकार्य करनेके लिये उन सभी (घ) वर्तमान जैनसाहित्यसे अधिकसे अधिक कर्मवीर त्यागियों, ब्रह्मचारियों तथा दूसरं परोपकारी लाभ कैसे उठाया जा सकता है, इसकी सुन्दर योजना विद्वानों और अन्य सजनोंको आमंत्रण रहेगा, जो तय्यार करके उन्हें कार्यमें परिणत करना और कराना। आश्रमके उद्देश्योंसे सहमत होते हुए कुछ समयके () सुरीतियोंके प्रचार और कुरीतियोंके बहिष्कार लिये अथवा स्थायी रूपसे आश्रममें ठहर कर उसके में सहायक बनना तथा दूसरे प्रकारसे भी समाजके नियमानुसार कोई संवाकार्य करनेके लिये उत्सुक हों। उत्थानमें मदद करना और उसे म्वावलम्बी, सुखी तथा ऐसे सेवकोंके लिये अधिष्ठाता आश्रमकी पोरसे योग्य वर्द्धमान बनाना। सेवाकार्यकी व्यवस्था की जायगी। __ (६) आश्रम अपने उद्देश्योंमें सफलता प्राप्त करने ।१२) आश्रमवासी सेवकोंकी भोजनादि-सम्बन्धी के लिये यथासहायता उन कार्यों को अपने हाथमें लेगा योग्य आवश्यकताओं की पूर्तिका भार आश्रम खुद जो आश्रमकी विज्ञप्ति नं०१ में दिये गये हैं। उठाएगा। और यदि कोई सेवक अपना खर्च खुद ___ (५) आश्रमसे 'अनेकान्त' नामका एक पत्र बरा- करना चाहें या आश्रमको अपना खर्च देवे तो यह बर प्रकाशित होता रहेगा, जिसका मुख्यध्येय आश्रम उनकी इच्छा पर निर्भर होगा । आश्रमको उसमें कोई को उसके उद्देश्योंमें सफल बनाना एवं लोक-हितको आपत्ति नहीं होगी। साधना होगा। इसकी मुख्य विचारपद्धति अपने ना- (१३) आश्रमवासियोंके लिये आश्रमकालमें ब्रह्ममानुकूल उस न्यायवाद (अनेकान्तवाद) का अनुसरण चर्य तथा संयमसे रहना अनिवार्य होगा। इसके सिवाकरनेवाली होगी जिसे 'स्याद्वाद' भी कहते हैं । और य,विशेष उपनियमोंके निर्धार करनेका अधिकार अधिइस लिये इसमें सर्वथा एकान्तवादको-निरपेक्ष नय- ष्ठाता आश्रमको होगा। और इन सब नियमोपनियमों वादको-अथवा किसी संप्रदायविशेष के अनुचित कापालन करना प्रत्येक आश्रम-वासीका कर्तव्य होगा। पक्षपातको स्थान नहीं होगा । पत्रकी नीति सदा उदार (१४) आश्रमके नियमोंका भंग करने पर प्रत्येक और भाषा शिष्ट, सौम्य तथा गंभीर रहेगी। आश्रमवासी अपनेको श्राश्रमसे पृथक् किये जाने के (८) आश्रममें 'समीचीन विद्यामंदिर' नामकाएक योग्य समझे और उसका पृथक्करण प्रबंधकारिणी सऐसा भारतीभवन खोला जायगा, जिसमें ज्ञानार्जनके मितिकी योजनानुसार होगा। लिये प्रचर साहित्यका संगह रहेगा और मौखिकरूपसे (१५) आश्रमका योग्य रीतिसे संचालन एवं प्रबंभी नियत व्याख्यानादिके द्वारा शिक्षाप्रदानका प्रबंध ध करनेके लिये संघके सदस्यों की एक प्रबंधकारिणी किया जायगा । इसीमें पुरातत्त्वका भी एक विशेष समिति नियत होगी जिसकी सदस्य-संख्या ११ तक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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