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वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं०२४५६]
वीर-सेवक-संघ और समन्तभद्राश्रम की नियमावली
वीर-सेवक-संघ और समन्तभद्राश्रम की
नियमावली
देहलीमें महावीर-जयंतीके शुभ दिवस पर ता०२१ ४ साहित्य-रचनात्मक तथा पुरातत्त्व-अन्वेषणात्मक अप्रेल सन् १९२९ को स्थापित होनेवाले 'वीर-सेवक- कार्य करना। मंध' की और संघद्वारा ता०२१ जुलाईको प्रतिष्ठित होने ५ आश्रमके साहित्यका तथा जैनधर्मका प्रचार करना। वाले 'समन्तभद्राश्रम' की नियमावली इस प्रकार है:- (क) कमसे कम सौ रुपयेकी एकमुश्त सहायता (१) इस नियमावलीमें यदि कोई बात स्पष्टतया
देने वाले सदस्य 'आजीवन-सदस्य' ( लाइफ मेम्बर ) अथवा प्रकरणसे इसके विरुद्ध न पाई जाय तो
पॉचसौसे ऊपर हजार तककी महायता देने वाले 'स'मंघ' से अभिप्राय 'वीर-सेवक-संघ' का,
हायक', हजारसे चार हजार तककी सहायता देनेवाले 'आश्रम' से अभिप्राय 'समन्तभद्राश्रम' का,
'संरक्षक', और पाँच हजार तथा इससे ऊपरकी सहा'पत्र' से अभिप्राय 'अनकान्त' पत्रका, और
__ यता प्रदान करनेवाले सज्जन संवर्द्धक' समझे जायेंगे । 'समाज' से अभिप्राय 'संयुक्त जनसमाज' का होगा।
(ख) जिनके द्वारा संघ तथा आश्रम के हितकी वीरसेवक-संघ
विशेष सम्भावना होगी ऐसे सेवापरायण स्नास खास (२) समन्तभद्राश्रमके स्थापन, स्थितीकरण तथा व्यक्तियोंको आर्थिक सहायता के बिना और सेवा के संचालन-द्वारा जैनशासनको उन्नत बनाते हुए लोक- घंटोंका नियम किये बिना भी मदस्य बनाया जा सके हितको साधना ही इस संघका मुख्य उद्देश्य होगा। गा। ऐसे सदस्य 'आनरेरी' सदस्य समझे जायेंगे। ___ (३) संघके सदस्य वे सभी स्त्री-पुरुष हा सकेंगे (ग) संधके मभी सदस्यों को आश्रमका पत्र, जिस जिनकी अवस्था १८ वर्षसे कम न हो, जो आश्रमके का वार्षिक मूल्य चार रुपये होगा । बिना मूल्य दिया उद्देश्योंसे पूर्णतया सहमत हों, उसे सफल बनानेके इ- जयगा। च्छुक हों और उसकी सहायतार्थ कमसे कम छह रुप
(४) संघके सभी सदस्योंका कर्तव्य होगा कि वे ये वार्षिक देना अथवा प्रप्तिसप्ताह दो घंटे (वार्षिक १००
अपनी शक्ति भर आश्रमको उसके उद्देश्योंमें सफल घंटे) आश्रमका काम करना जिन्हें स्वीकार हो । ऐसे
बनानेका उद्योग करें, उसे जन-धनकी सहायता प्राप्त सदस्य 'साधारण सदस्य कहलाएंगे।
. कराएँ और इस बातकी और खामतौरसे योग देवें कि नोट-घर पर रहते भी आश्रमका काम हो सकेगा
आश्रम के पत्रका यथेष्ट प्रसार होकर उसकी आवाज जिसकी तफ़सील यह होगी
अधिकमे अधिक जनताद्वारा सुनी जा सके। १ संघके सदस्य और पत्रके ग्राहक बनाना । २ अन्य प्रकारसे आश्रमको आर्थिक सहायता प्राप्त
समन्तभद्राश्रम कराना।
(५) इम श्राश्रमके उद्देश्य निम्न प्रकार होंगेः३ जैनप्रन्थों अथवा अन्य साहित्यमेंसे निर्दिष्ट विषयों (क) ऐसे सच्चे सेवक उत्पन्न करना जो वीरके को छाँट कर भेजना।
उपासक, वीरगुणविशिष्ट और प्रायः लोक-सेवार्थ * यह नियमावनी वीर-सेवक-मंघकी मीटिगमें ता०१३ मोल दीक्षित हों तथा भगवान महावीरके संदेशको घर-घर सन् १९३० को पास हुई है।
में पहुँचा सकें।