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________________ अनकान्त वर्ष १, किरण ६, ७ उत्नम साहित्यके प्रचारमे लोकमचि बदल जाती है हेडमास्टर इस जल्सेके सभापति चने गये । तत्पश्चात और फिर जनता को उन बातोंमें अच्छा रस पाने अधिष्ठाता आश्रम ने संघ तथा आश्रमकी नियमावली लगता है जिनमे पहले वह घबगती थी अथवा जिनमें पेश की, जो कुछ संशोधनों तथा परिवर्तनोंके बाद मर्व उसका मन कुछ लगता नहीं था । इमी बातको लक्ष्यमें सम्मनिसे पास की गई, और जो पाठकोंके अवलोकगग्य कर "त्यागभमि" जैम पत्र कई कई हजार रुपये नार्थ इसी पत्रमें अन्यत्र प्रकाशित है। इसके अनिका प्रतिवर्ष घाटा उठा कर भी अपने माहित्यका प्र- रिक्त प्रचार आदिकी दृष्टिले विद्यार्थियों आदिको “अनं. चार कर रहे है और इस तरह लोकमचिको बदलकर कान्त" पत्र ४) २० की जगह ३) में देना करार पाया बगबर अपने पाठक पैदा करने चले जाते हैं । 'अन- और फिर प्रबन्धकारिणी समितिके सदस्योंका चुनाव कान्त' के माहित्यका भी ऐसे ही प्रचार होना चाहिये, होकर जल्सा ढाई बजेके क़रीब समाप्त हुआ। दोनों दिन इमस लोकमचि बदल जायगी और फिर पत्रको अपने मीटिंगमें जो प्रस्ताव पास हुए हैं वे इस प्रकार हैं :पाठकों अथवा ग्राहकोंकी कमी नहीं रहेगी। परंतु यह प्रस्ताव काम कुछ वर्ष तक बिना प्रचर घाटा उठाए नहीं हो (१)अधिष्ठाता आश्रमकी ओरसे३१मार्च सन् १९३० मकता।"त्यागभमि"को बिडलाजी तथा जमनालालजी तकका हिसाब पेश हुआ,जिसे यह संघ पास करता है। बजाज जैम समयानुकूल दानी नररत्नोंका सहयोग प्राप्त है जो उसके सब घाटेको पृग कर देते हैं । "अनेकान्त' (२) यह संघ फिलहाल अाश्रममें एक ऊँची वेतनक को ऐसे एक भी सज्जन का सहयोग प्राप्त नहीं है, तब योग्य कर्मचारीकी नियुक्ति को आवश्यक समझता है उसे अधिकाधिक उपयोगी और लोकप्रिय कैसे बनाया और उसकी नियुक्तिका अधिकार अधिष्ठाताको देता है। जा सकता है ? धनिक कहलाने वाले समाजके लिये, (३) मंघ तथा आश्रमकी नियमावलीको अधिष्ठाता निःसन्देह, यह एक बड़ी ही लज्जाका विषय है जो वह ___ आश्रमने पेश किया और उसे कुछ मंशोधनों तथा पअपने एक भी पत्र को इस योग्य न बना सके जो रिवर्तनोंके बाद यह संघ सर्वसम्मतिसे पास करता है । दृमा उच्चकोटि के पत्रों की श्रेणिमें बैठ सके अथवा (४) यह संघ उचित समझता है कि आज से विबैठ कर उसका निर्वाह कर सके। द्यार्थियों, स्त्रियों, लायब्रेरियों, तीर्थस्थानों और विद्याइसके बाद कुछ चचा हो कर यह निश्चय हुआ संस्थाओंको अतकान्त'पत्र४)की जगह३)में दिया जाय। कि आश्रममें ऊँची वतन पर एक योग्य कर्मचारीकी (५) यह संघ निम्नलिखित सात सज्जनोंको प्रबन्धयोजना की जाय और उसकी नियुक्ति का अधिकार कारिणी समितिके सदस्य नियत करता है। शेष चार सदस्योंकी नियक्तिका अधिकार अधिष्ठाता आश्रमको प्रअधिष्ठाता आश्रम का दिया जाय । माढ़े दस बजेक करीब मीटिंग की यह बैठक समान हाई और दसरी धानजीकी अनमति अथवा मंत्रीजीकी स्वीकृतिसे होगा। बैठक अगले दिन पर १श। बजे दिनके रक्खी गई। १ ला० मक्खनलालजी ठेकेदार,मोरीगेट, देहली(प्रधान) १३ अप्रेल को नियत समय पर मीटिंगका कार्य २ बा. भोलानाथजी मुख्तार, बलन्दशहर (मंत्री) प्रारंभ हुआ और उसमें निम्न सदस्य उपस्थित हए:- ३ ला पन्नालालजी दरीबाकलां, देहली सहायकमंत्री) बा० चेतनदासजी,२ ला० सरदारीमलजी. ३ ४राम्ब०साहु जुगमन्दरदासजी,नजीबाबाद(कोषाध्यक्ष) पं० दीपचंदजी वर्णी ४ बा. भोलानाथजी, ५ पं० ज- ५ पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार,सरसावा (अधिष्ठाता) गलकिशोरजी, ६ला नत्थूमलजी, ७ ला० रूपचन्दजी, ६ राजवैद्य पं० शीतलप्रसादजी, जौहरीबाजर, देहली ८ बा० उमरावसिंहजी, ५ बा० पन्नालालजी, १०५० ७ ला० सरदारीमलजी, मोरीगेट, देहली। अर्हदासजी, पानीपत; ११ला०विश्वम्भरनाथजी,देहली। भोलानाथ जैन दररशाँ मर्वसम्मतिसे बा० चेतनदासजी बी. ए. रिटायर्ड मंत्री 'वीर-सेवक-संघ'
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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