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________________ वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] वीर-सेवक-संघके वार्षिक अधिवेशनका विवरण ४०९ वीर-सेवक-संघके वार्षिक अधिवेशन का विवरण निर्दिष्ट सूचनानुसार वीर-सेवक-संघकी मीटिंग किस कारणवश वे महानभाव अपने वचनों का पालन ता. १२ और १३ अप्रेल को दोनों दिन महावीर जय- नहीं कर सके । और भी कुछ सजनों मे सहायता जी-उत्सवक पिंडाल में की गई। पहले दिन मीटिंगका तथा सहयोग की विशेष प्राशा थी जो अभी तक परी प्रारंभ मुबह आठ बजेके क़रीब हुआ और उसमें निम्न नहीं हो सकी । इस संस्थाके चलाने का एक प्रकारसे मदम्य उपस्थित हुए: सारा भार अभी तो केवल अधिष्ठाताके ही मिर पर १ बा० चेतनदासजी रि० हेडमास्टर, मल्हीपर; २ है-आश्रम तथा अनेकान्त पत्र-सम्बंधी छोटे मोटे प्रायः ला० मक्खनलालजी ठेकेदार, देहली (प्रधान); ३ ला० सब कार्य उन्हें ही करने पड़ते हैं और इस लिये वे मरदारीमलजी, देहली; ४ ५० दीपचंदजी वर्णी, ५ अपने स्वास्थ्यकी पर्वाह न करते हुए दिन-रात अवित्रः कुँवर दिग्विजयसिंहजी, ६ बा० विशनचंदजी , श्रान्त परिश्रम करते रहते हैं, रातको प्रायः बारह एक दहली; ७ बा०भोलानाथजी मुख्तार, बलन्दशहर; ८ बजे तक उन्हें सोना मिलता है, परन्तु फिर भी काम पंजगलकिशोरजी मुख्तार (अधिष्ठाता); ९ ला नत्थ परा होनमें नहीं पाता-कितने ही पत्र तक उत्तरके मलजी, बरनावा; १० पं० महावीरप्रसादजी, देहली; लिये पड़े हुए हैं जो कुछ विशेष समयकी अपेक्षा रखते ११ ला० रूपचंदजी गार्गीय, पानीपत; १२ साह रघु- हैं-और न उनके मस्तिष्कमें संस्थासम्बन्धी जो बहुत नंदनप्रसादजी, अमरोहा; १३ बा० उमरावसिंहजी, से विचार भरे पड़े हैं उन्हें ही कार्य में परिणत करने दहली; १४ ला० दलीपसिंहजी काराजी, देहली; १५ अथवा प्रकाशमें लाने का कोई अवसर मिलता है। ला० पन्नालालजी देहली। अकेले आदमी का काम आखिर अकेला ही होता है, ___सर्वसम्मतिसे ला०मक्खनलालजी ठेकेदारनं सभा- वह सब कामों को कम करे इमीसे जिन महान उद्देपतिका आसन ग्रहण किया। तत्पश्चात पं०ज पशान पं०जगलकिशो- श्योंको लेकर यह संस्था खड़ी की गई है उनकी तरफ रजी मुख्तार अधिष्ठाता आश्रमन, वीर-सेवक-मंघ और अभी कोई खाम अथवा नमायाँ प्रगति नज़र नहीं आ ममन्तभद्राश्रमकी स्थापना तथा अनकान्त पत्रकी यो- रही है, सिर्फ अनकान्त' पत्रका ही एक काम हो रहा है जना आदिका इतिहास संक्षेपमें वर्णन करते हुए, इन और उसने समाजकी एमी उपेक्षा-स्थितिके होते हुए की वर्तमान स्थितिका कुछ दिग्दर्शन कराया, अपनी भी अपनी इम छोटीमी अवस्थामें जैन-अजैन विद्वानोंके कठिनाइयों और आवश्यकताओंको प्रस्तुत किया और हृदयमें जो महत्वका स्थान प्राप्त किया है और अपनी ६१ मार्च सन १९३० नकका कुल हिसाब पेश किया। जिस विशेषता तथा आवश्यकताको प्रमाणित किया है हिसाब सबको सुनाया गया । और वह अन्ततः सर्वम- उम बतलाने की ज़रूरत नहीं-वह उसमें प्रकट होने म्मनितसे पाम हुआ, जो अन्यत्र इसी पत्रमें प्रकाशित है। वाले 'लोकमत' में ही स्पष्ट है । उनकी इच्छा इसे अधिष्ठाताजीनं अपने वक्तव्यमें स्पष्ट बतलाया कि अभी कई गुणा ऊँचा उठाने तथा एक सर्वोपयोगी -'समाजने अभी तक इस उपयोगी तथा आवश्यक आदर्श पत्र बनाने की है परन्तु सहायकोंके अभाव में मंस्थाकी तरफ़ जैसा चाहिये वैसा ध्यान नहीं दिया है- अथवा समाजके विद्वानों तथा श्रीमानोंका यथेष्ट सहन विद्वानों ने इसे अपनी सेवाएँ अर्पण की और न योग प्राप्त न होनेकी हालतमें वे कुछ भी नहीं कर सकन, धनाढयों ने यथेष्ट आर्थिक सहायता ही प्रदान की। उनके विचार हृदयके हृदयमें ही विलीन होते जाने हैं, कई विद्वानोंने आश्रममें पाकर सेवाकार्य में हाथ बटाने उत्साह भंग हो रहा है और परिश्रम तथा चिन्ता के का तथा कुछने अपने घर पर रह कर आश्रम-सम्बन्धी कारण स्वास्थ्य भी दिन पर दिन गिरता जाता है। यदि कार्य करनेका भी वचन दिया था परन्तु न मालम यही हालन रही और स्वास्थ्यनं जवाब दे दिया अथवा
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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