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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण १ जो धर्म का तत्त्व और अंश उस शास्त्र-विद्या में से भी उसके गुरु, सम्बन्धी, सब लोग, उसकी सारी शिक्षाएँ इन्हें प्राप्त होगया था, उसका मेल, इन्होंने देखा, उस और सारी प्रवृतियाँ भी उसे उकसा रही हैं-उसी राजत्वसे समीचीन रूप में नहीं होता जिसकी उनसे 'राजत्व' में कुमार को कुछ खटकता भी है। आशा की जाती है। और इसलिये, समझा, वह धर्म वह 'राजत्व' उसकी कमाई हुई चीज नहीं है, वह इष्ट नहीं है। जब सारी ही शिक्षाओं की दिशा राजत्व मानों उसे मुफ्त मिली जा रही है। केवल एक कुलहै, तब शास्त्र-विद्याके जिस थोड़ेसे अंश की दिशा वह संयोग पर निर्भर रहकर इतनी बड़ी चीज अपना लेना नहीं जान पड़तीवह अंश अवश्य अनुपयुक्त और अनु- उसे अनचित जॅचता है । वह राजा का पुत्र है, इस पादेय है । वह व्यर्थ है। गुरु, पिता,समवयस्क साथी, घटना को वह आकस्मिक सी मानता है। और इस सम्मान्य बुजर्ग, सलाहकार, और समस्त पुरजन,- आकस्मिकता को वह इतने बड़े ऐश्वर्य का उचित मूल्य सब उसे सामने रक्खे 'राजत्व' की ओर ही ठेलते नहीं स्वीकार कर सकता। अपने राज-पुत्रत्व को वह दीख पड़े । मानों सब उसमें ही प्रसन्न हैं । मानों वही ज्यादे श्रेय देना नहीं चाहता । और इसलिये चुपचाप उसके लिये एक मार्ग है वही धर्म है । जो उसके राजत्व राजमुकुट उसे पहना दिया जाय, यह वह नहीं सह के मार्गसे तनिक भी अलहदा है, थोड़ा भी विरुद्ध सकेगा। और भिन्न है, वह मानों उसके लिये है ही नहीं।
__ किन्तु जब वैभव ही लक्ष्य है, तो दूसरा मार्ग उस ओर की चिंता उसे करनी ही नहीं चाहिये । इस
क्या-? प्रकार सारी शिक्षा, और कुमारकं चारों ओर फैली हुई सारी समाज न, कुमारके लिये जीवन की राह
बहुत ऊहापोहके बाद समझ पड़ा-जोमार्ग सीधेसे रूप एक रेखा ही रह जान दी, जिसके अन्त में और
सीधा उस लक्ष्य तक पहुँचे, जिस में अधिकाधिक श्रारंभ में प्रतिष्ठित था -'राजत्व' ।
सिद्धि हो, और तुरन्त अर्थ प्राप्ति हो, वही मार्ग उसका
मार्ग है। ____ कुमार ने इस 'राजत्व'का विश्लषण किया तो और इसके विरोध में दुनिया का औचित्य अनौचित्य ही पाया । देखा-वह एक ऐश्वर्य और प्रतिष्ठाका पद का प्रश्न उसके सामने खड़ा हुआ, पर टिक न सका। है, जहाँ विलासका हर तरहका सुभीता है, और स्वार्थ उसने उसे खोलते खालते देखा यह औचित्यानौचित्य की हर प्रकारकी सिद्धि है । यही पद और यही वैभवका की व्याख्या बहुत प्रापेक्षिक क्षणस्थायी और निराधार आयोजन उसके लिये निर्णीत ( Reserved ) है। है। सबल का सफल कृत्य अभिवन्दनीय है, वहीं यहीं उसके कर्तव्य की इति और प्रारंभ है । और इस निर्बल हाथ असफल रह जाने पर निन्दनीय है। पर रीतिकी, औचित्यकी, उपादेयता की और
___ यह भी दीख पड़ा कि जो एक ही अंत को आवश्यक्ता की मोहर भी लगी हुई है।
स्वीकार करते हुए दो मार्ग हैं-एक 'राजत्व' दूसरा ____ तो यह तो ठीक होगया कि विलासशोध और 'डकैती'- जिनमें से एक दुनिया उसे अधिकारतः स्वार्थसिद्धि ही उसके लिये एक इष्ट तत्त्व है। क्यों सौंपना चाहती है, और दूसरे को उसने हेय मान रक्खा कि सारा संसार उससे इस ही की आशा और है, उसके निज की ओर से यदि उनमें कुछ अंतर है
आकांक्षा रखता दीख पड़ता है। और वैसे खुद भी तो यह कि एक की सिद्धि उसे मानों उपहार में दे दी संसार उसी को अपना उद्देश्य बना कर व्यस्त रहता जायगी, दूसरे की सिद्धि उसे अपने रूप अपने
और उन्नति करता है। किन्तु संसारके औचित्य और चातुर्य और सक्षमता के बल पर कमानी होगी। न्याय्यता की मोहर लगा हुआ जो मार्ग उसके सामने एक बात कुमार को और भी दृढ़तासे इस पक्ष में पेश है, और जिसको तन्मय होकर अपना लेनेके लिये करने लगी । शस्त्र-नोंके परिचालन, सैन्य संचालन,