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वैशाम्ब, ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] पीडितोंका पाप चप-चाप सहते जाते हैं, यहाँ तक कि कितने छोटे- अपमान नहीं करते, और इसे हम कहते हैं अपना
हे अत्याचार तो अब हमें अत्याचार के रूप में सनातनधर्म ! भंगी को हम छ नहीं सकते, क्योंकि दीवत भी नहीं। हमारा जीवन कितने आडम्बरों, वह हमारे पेट में से निकली हुई सड़ी गंदगी को कितने पावण्डों, कितने ढोंगों (hypocrisies ) से हमारे लाभ के लिए हमारे घर से उठा कर दूर डाल भरा हुआ है ! जिस क्षेत्र में देखिए, उधर ही यह आता है। हम गन्दे नहीं हए. वे इतने गन्दे हो गये 'अमत्य' हमारे जीवन को सहस्रों रूप रखकर घरे कि हम उन्हें छ नही सकत । चमार मरे हुए चमड़की वटा है। किन्तु अब हम उसकी ओर ताकत ही अपनी जीविका का श्राधार बनाया है। उस पदब नहीं, उसे सत्य ही समझ बैठे हैं, और उसकी चकी में दार चमड़े को किनन भी कठों की पर्वा न करके माफ पिम रह हैं । यदि ताकते भी हैं तो आँखें दुग्वन लगनी करता है, उसकी बदब दूर करता है, और हमारे लिए है, हम आँखें उधर से फेर लेते हैं। यही है हमारा जत बनाकर देता है । एक दिन हम उसी से वह स्वबसत्य-प्रेम ? यही है 'क्रान्ति की जय'? हम नित्य दखत मरत जता घरीद लाते हैं, पर जता उसके हाथमे लेते है कि हमारी राजनैतिक स्थिति दिन-पर-दिन भयावह, समय यह ध्यान रखते है कि कहीं उसका अपविन अत्याचार-मूलक, पीडिक होती जा रही है। हम भी हाथ हमारे हाथ में न जाय ' हम निन्य छोटी-छोटी चप चाप उसे सहन किये जाते हैं, उसका उग्र रूप नन्हीं-नन्हीं बालिकाश्री का विवाह कर देते हैं, और साहस-पर्वक आँखें खोलकर देखना भी नहीं चाहने विधवा होजाने पर उन्हें आजन्म विधवा रहने का क कहीं हमारे हृदय में आग न भड़क उठे, जिससे विवश करते हैं, जहाँ दूसरी ओर उमी उम्र के लइर्ष. में अपना जीवन संकटापन्न, कष्टमय, त्यागमय, एक पत्नी के मरने पर दमरा और दमरी के मरने पर बनानेको विवश हो जाना पड़े। हम गेज़ अपने चारों तीमग विवाह बिना किमी मंकोच के फर डालने है।
और भखे किसानों की स्त्रियों और बच्चों का श्रान- माठ-साठ बरम के बद्रों में बारह-बारह बग्म की नाद सुनते हैं, उनकी मखी हड़ियाँ दग्वत हैं, और · लड़कियों का विवाह करके उनके शरीर उनके हदय. दखते हैं उनकी गड़हों में घसी हुई आंख और मुरझाय उनकी आत्मा को मनी दे देते हैं। हम स्त्रियों के लिए
गाल पर हम इस डर से अपना मुंह फेर लव है कि दृमरं विधान बनाने है और शक्तिमान पुरुषों के लिए - करुणाम विवश होकर और यदि जानी हुप में अपने दृमरं । हम नित्य स्त्रियों को अपने चारों ओर दुःखी .. को ही इस स्थिति का कारगा समझ कर, हमें अपने दम्वन है, गने दबने हैं, उनके नाम पहने देखते हैं।
गजसी ठाठ, गजमी भांजन, छोड देने पड़ेंगे, हमें भी हम यह नहीं मांच पाम कि इसमें कुछ भी विशेषता है। इनके कमं. उनका-माथ देने का निकल पड़ना होगा। - ये सब दश्य हमारे लिए उसी प्रकार स्वाभाविक हो हमने अमीरों के दाव-पेचीद्वागं गरीब किसानों को जो यहै. जिस प्रकार किमी फ लामी श्रीनिहर अब नक चमा है, उसका प्रायश्चिन करने के लिए हम मां का कच्चा मदा गंता म्हता है, और उसकी मा भी आज कंगाली का व्रत लेना होगा। हम निन्य अपने उसके दुःन्य जानने का कट नहीं उठाना-वह निन्य कुओं पर, अपने मन्दिगं के पास-पाम, अपने मकानों वरचे को गंन देखनी है और कुछ दिनों में उमक में 'अछूत' नामक अपन-ही-में मनष्यों को देखते हैं, लिए बच्चेका रोना उमका म्वाभाविक कर्म बन जाना
और बात-बात पर उन्हें कुत्तोंकी तरह दतकार देते हैं।- है,वह घर ध्यान देती ही नहीं। हमारा पानी उनमे छू जाय तो हम पी नहीं सकते, हम इस प्रकार एक नहीं, दो नही. मकड़ी श्रमत्या, उनसे छू जाँय तो स्नान करके पवित्र होना पड़े, वर्तन हजारों पाखण्डोंस प्रान हमारा जीवन भग हता है। छु जाँय तो आग में तपा कर शुद्ध किये जायँ ! कुत्ते । हम आज जो कुछ करन है, बाव मून्द कर करते है : और मक्खी के समान गन्दे जीवों का भी हम इतना - हमारी विवेक शक्ति में कब का जंग ला चुका है।