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________________ अनकान्त वर्ष १, किरण पीछे पागल बन जाना होगा, सत्य और न्याय में ही नहीं । शुरू-शुरू में उसे अधिक कष्ट सहने होंगे. परम-सुख है, इसको अच्छी तरह जान लेना होगा। पीछे सब सरल होजायगा। न स्त्री पुरुष विना ? ___ स्त्रियाँ भी इसी प्रकार परुषों की गलामी से छूट सकती है, न पुरुष स्त्री बिना । कुछ दिन इस म्वातंत्र्य सकेंगी। विधाता ने पाप और श्री दोनों को युद्ध के लिए कष्ट सहने पर स्त्री को उसकी म्वतन्त्रता मिलाकर मानव-मष्टि की पर्णता रक्खी है। एक के मिल जायगी और पुरुष-स्त्री का वही स्वाभाविक प्रमबिना दूसग अधुग है। पर शारीरिक बल में पाप सम्बन्ध स्तापित हो जायगा, जो विश्वविधाना ने कब बढ़ा-चढा होने में आज वह विधाता के न्याय से सोच रक्खा है। विरुद्ध नी को दया बैठा है, उसमे अपने को पजवाना आज हिन्दुस्थान में युवक-आन्दोलन की शुमान है, अपने स्वार्थ पर उसकी बलि चढ़ाता है । पर बाम्नव हुई है। जिधर देखिए उधर ही यवक-परिपडे हाने में जब नक दानों को सवम व एक सत्र में बाँधने लगी हैं, ये सुलक्षण है । यवक-युवतियाँ ही वाम्नव म वाला प्रम-बन्धन मौजद नहीं है, तब तक दोनों स्वतंत्र कोई काम कर सकते हैं । वृद्धों का काम तो ममय हैं, किमी का दूसरे पर अधिकार नहीं। जब प्रम- पर मलाह देते रहना है; काम तो युवकों को ही करन पन्धन में बँधे हैं नब कोई बड़ा-छोटा नही । किन्तु होगा । श्राज यवकों के हृदयों में श्राग सुलगने लगा स्री ने कुछ तो अज्ञान के कारण पम्प के भलाव में है। पीड़ितों का पाप उन्हें दिखाई देने लगा है। आकर यह मान लिया है कि वह स्वयं बिलकन अब अपनी कमर कमन लगे हैं। अपदार्थ है, पुरुष के ही कल्यागा में उसका कल्याण किन्तु अभीना जिननी अावाज है, जितना शान है, पुरुप की दामी बनने में उसका सम्मान है; और है, उतना काम नहीं। बल्कि आवाजके देग्वते काम नहीं' कुछ अपनी तुच्छ वामनाओं के कारण पीड़ित बराबर है, यह कहना अमंगत न होगा। युवक-परिपटाम होने का भाव मन में रहने पर भी वह निर्बल-काया तमाशा करनेके लिए काराजी प्रस्ताव पास करके बड़े हो जाती है, म्पयं म्वतंत्रता का बोझा उठानम घबगनी बढ़ीके कामकी निन्दा करनेके लिए, पीड़कोंको गालियाँ है । सास बनकर बहू पर वह अपना क्रांध उतार कर सुनाने लिए युवक काफी संख्या में दृष्ट पड़ते है, पर अपनी शक्ति पा लेती है। जब उनके मामने कोई काम रक्खा जाता है, तो सभी परन्तु नादि मनमुन अाज बी को यह भामिन की आवाज़ नितंज, फीकी, दुर्बल पड़ जाती है,वे वगने होने लगा है कि उम पर पुरुषों ने अत्याचार किया है झाँकने लगते हैं। ठीक है कहने में कोनसी शक्ति लगत' और कर रहे हैं, तो यह उमी के हाथ की बात है कि है। वाणी का जोरामभी दिग्वा सकते हैं । क्रान्तिका वह जब चाहे इससे बच सकती है। उसे सादगी का जय' (Long Live Revolution) सभी पुकार धेत लेना होगा, अपना श्रृंगार करके अपने शरीर को सकते हैं, पर क्रान्तिः करने को तैयार नहीं। युवक ली। मोहक बनाने का कुत्सित कार्य छोड़ना होगा, इसे · यह नहीं समझते कि राजनीति में, समाज-नीति में. अपना पेट भरने और तन ढकने लायक स्वयं कमाने 'क्रान्ति करने के लिए सब से पहले हमें अपने जीवन का ढंग निकालना पड़ेगा। इसके विना उसकी मुक्ति में क्रान्ति करनी होगी। हम किवने अन्याय-अत्याचार
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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