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________________ 'देशाख,ज्येष्ठ, वीरनिव्सं० २४५६] पत्रका एक अंश ३७२ अकलंकदेवका 'चित्रकाव्य' चतुर्विंशति-जिन स्तोत्र ___- मथवा 'चित्र काव्य' नामका-यह एक पुराना स्तोत्र हाल के स्तवनमें अपनी स्पष्टताके लिये कुछ प्रयत्नकी में बाब लक्ष्मीनारायणजी जैन, तिजाराराज्य अलवर, अपेक्षा रखता है। दूसरी सूची अथवा काव्य-पातुरी के अनग्रह से प्राप्त हुआ है। यह तांत्र अभी तक लप्त इन पद्योंमें यह पाई जाती है कि जिस पपमें सीधे क्रम प्राय तथा अप्रकाशित ही था, और इसलिये आज से जिस तीर्थकरकी स्तुति की गई है उसका नाम उस इस थोड़े से परिचयके साथ यथावस्थित रूपमें नीचे पद्यकं चरणोंके प्राचाक्षरोंको मिलानेसे भी बन जाता प्रकाशित करके पहले ही 'अनेकान्त के पाठकोंकी भेट है-बारह पद्योंके पाय अक्षगेको क्रमशः पढ़ जाने किया जाता है। पर बारह सीर्थकरों के नामोंका सवारण हो जाता हैइस स्तोत्रमें चौबीस तीर्थंकरोंकी स्तुति बारह पद्यों और उलटे क्रमसे जिस पचमें जिस तीर्थकरकी स्तुति में की गई है और उनमें यह खास खूबी रक्खी गई है, की गई है उसके चरणोंके अन्तिम अक्षरोंको मिलाने कि बारह पोंको एक बार पढ़नेसे वे क्रमशः श्रीवषमे से उस नीर्थकर का नाम उपलब्ध हो जाता है । इस आदि वासुपूज्य पर्यंत बारह सायककि- स्तुति-पद्य तरह प्रत्येक पद्य के चरणों की प्रादि और अन्स, मालूम होते हैं और जब उन्हें बारहवें पद्यमे पहले पद्य दोनों तरफ-उस उस पग द्वारा स्तुनि किये गये ती कफ दूसरी बार पढ़ा जाता है तो वे विमल श्रादि कगेकी नाम-स्थापना की गई है । काव्य-मरमें हम महावीर पर्यंत शेष बारह तीर्थकरों स्तुति-पच जाज: नियमका सिर्फ एक ही आंशिक अपवाद पाया जाना पड़ने हैं । इस तरह एक एक पद्यमें सीधे तथा उलटे है और वह यह कि 'अभिनंदन' नाममें चकि पाँच कमसे दो दो तीर्थकरीकी स्तुनिका, उनके नाम-सहित, अक्षर थे इममें इमामामक 'अ' अक्षरको पर्ववती ममावेश किया गया है । पहला पद्य एक अर्थमें श्री- 'मंभव' तीर्थकर के नुनि पंद्यक चौथे चरण मन्त्रा उपभका स्तुति-पद्य है तो दूसरे अर्थमें वह महावीरका गया है। प्रस्तु; छापने में इन बाकी हन के टाइप मी स्तुनि-पद्य है, दूसरा पद्य एक अर्थमें श्रीअजितका में कर दिया गया है। जिसमें प्रत्येक पंच को पढ़ने स्नुनि-पद्य है तो दूसरे अर्थमें पार्श्वनाथ की भी स्तुनि- ममय उसकी दोनों, नरफ की नीकरोंके नामांका स्पष्ट पदा है। इसी प्रकार दूसरे पोंका भी हाल जानना। दर्शन होना रहे। .:.:. माथ ही, यह भी क्रम रखा गया है कि पूर्वार्धम एक काव्यके अंतमें एक प्रशस्मि-पंच भी पाया जाता नार्थ करका नाम है नाउत्तरांधम दूसरे तीर्थ करका नाम है, जिममें काव्यका नाम चित्रकाम्य भौर नमके है और पका प्रत्यक प्रर्धमा अपने अपने नामवानं रचयिताका नाम 'अकलंकरव' पनेक अनिरिक रचना नीर्थकरतान में जहाँ स्पष्टसा है. वहाँ मरे नीर्थकर का समय भी दिया हुआ है। यह समय क-1-7.4
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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