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________________ वैशाख,ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] सिंदूर वाला एकहा-"कथामाला।" दूसरे क्षणमें ही पूछ बैठी- सरसुती रामायण पढ़ती और निधिराम अपनी "माँ ने पुछा है, गुडके दाम कितने हैं। ?" सिन्दूरकी पेटी गोदमें रक्खे खिड़की के पास चवतरेपर इस प्रश्नको सुनकर निधिराम ठिठक-सा गया; बैठा हुआ सुनता । बीचमें जो एक ईटकी दीवार का फिर सूखे मुँहसे बोला-"माँसे कह देना बिटिया, कि व्यवधान था,-श्रोता और पाठिका-किसीको भी उस बातकी सुधि न रहती। मेरे घर का बना हुआ गुड़ है, पैसे नहीं लगे।" सहसा एक दिन वह व्यवधान बढ़ गया। मरसुनीने कहा-"अच्छा।" पाठ जब अयोध्याकाण्ड तक आगे बढ़ चुका था, इसके बाद, दो दिन तक उस रास्तमें निधिराम तब एक दिन निधिरामनं आकर देखा कि नीचे के प्रस दिखाई न दिया । तीसरे दिन, दो पहरको वह अपने कमरेमें उस चौकी परमरसतीके बदले दो भले भादमी नियमानुसार नीले मकानके जंगलेके सामने आकर साफ-सुथरे बिछौने पर बैठे हुए हुका पी रहे हैं। निधि रामने आवाजदी-"चीना सिन्दू-रलेउ, बीना सिन्दबड़ा हो गया, बोला-"सरसुती बेटी" -ऊर। मरसुनी सिलेट परसे मुँह उठा कर एकदम पछ दुमजलेकी एक खिड़की खुल गईसरस्वतीन जंगले बैठी-"दो दिन प्राये क्यों नहीं थे ?" में खड़े होकर, बायाँ हाथ मुँहपर रखकर और वाहना निधिगमके चेहरेपर मानन्दोल्लासकी लालियाँ दौर हाथ हिलाकर इशारा किया कि वह आज पढ़ेगी नहीं। ठी। निधिगम जिस रास्तेमे पाया था. उसी रास्ते -तो, सरसतीने उसकी यान की है। लौट गया। गलीकी मोडपर मरस्वतीकी सहेली गषा रानी उर्फ रधियानं निधिरामको ममाचार दिया किअनपतिथतिका एक झटा बहाना बनाकर निधि- मरस्वतीका जल्दी व्याह होनेवाला है, और पाज उमे आमने बड़ी सावधानीके माथ कोमल म्वरम कहा- वे देवने आये है। "मरसती-बेटी ! एक पम्नक लाया हूँ, पढ़ोगी?" मरमनी-माँका व्याह । फिर मामक घर कितनी --कहकर सींकचोंमें से एक कृत्तिवास-कृत जिल्ददार दूर है वह ' गमायण-चारों ओर नाककर-मग्मतीकी चौकी निधिगमन (फर का दृरम एक बार नीले मकान की दुमाजलेकी बन्द बिड़कीकी श्रार दम्बा, फिर धीरे पर रख दी। सरसतीने उसे पास बुलाकर पूछा-"तसवीर हैं धीर मन्द गनिमें चला गया। इसमें" तीन-चार दिन अपनी कोठरी में ही बिता कर फिर निधिराम ने मुमकराकर कहा-"बहुत ! राम, उमी पेटी को मिग्पर लाद उमी गलीकी मोडपर श्रा गवण, हनुमान-सबकी तसवीर !-मैं पढ़ना नहीं कर निधिरामने एक दिन अावाज दी-"चीना मिन्द र ले उ, चीना मिन्दु-ऊर।" जानता, सरसुनी, पहले तुम पढ़ लो, फिर मुझे पढ़कर सुनाना। ___उम दिन नीले मकान के दरवाजे पर नौवन बज रही सरस्वती ने कहा-"अच्छा। फिर तुम कल प्रा. थी। निधिराम बहुन देरतकबाट देखना रहा-ऊपरके भोगे तो" खुले जाले के पास भाकर शायद भाज भी कोई माड़ा निधिराम एक उज्ज्वल मानन्द की हंसी हंसकर हो लेकिन भाज कोई न पाया। पानेका वादा करके चला गया। X दूसरे दिनसे फिर पहले के नियमानुसार निधिराम x
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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