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________________ २७० वो घड़ी बात चीत करके निधिरामको बढ़ा आनन्द . मिलता; कभी-कभी उसने उस नीले मकान के जंगले बाहर चबूतरे पर बैठकर सिन्दूरकी पेटी अपनी गोद में रखे, सरस्वती के साथ उसके बाल-बच्चोंके सुख-दुखकी बातें करते-करते घंटों बिता दिये हैं । दूसरे मुहल्लेमें जाकर फेरी करनेसे चार है पैसेका रोजगार होता; इस बातका बीच-बीच में उसे खयाल भी हुआ है लेकिन फिर भी वह अपनी प्रगल्भा बान्धवी की नोंका मोह छोड़कर उठकर जा नहीं सकता है, ऐसी दशा में जब कि वह समझना था कि उसकी बातें बिलकुल निरर्थक फिजूल हैं और कभी भी - निधिराम के मी-- किसी काम नहीं आ सकतीं । अनेकान्त श्रन्तमं निधिराम देश चला गया। stant बार देश में एक तरहकी घातक बीमारीका मौर दौरा हुआ। उसके आक्रमण से निधिराम को भी छुटकारान मिला। -सात महीने बीमारी पाकर, एक दिन, माह-फागुनकी दुपहरी में निधिरामने अपनी सिन्दूरकी लाल पेटी सिर पर लादे सरस्वती के मकान के सामने आकर भावाज दी -- "बीना सिन्दूर लेउ, चीना सिन्दू-ऊ-र" पहले की भांति कोई धप-धूम करके उतरकर दरवाजा खोलकर बाहर नहीं निकला। दूसरी बार श्र वाज देने पर नाचेके कमरेका एक जंगला खुल गया। जंगले के भीतर सरस्वतीको देख, भर मुँह हँसकर निधि रामने पूछा - "इस बुडेको अभी तक भूली नहीं हो, सरसुती-बेटी ?" वर्ष १, किरण ६ करनेका सूत्र निधिरामको ढूँढे न मिला। कुछ देर ठहर कर, बहुत सोच-विचारके बाद उसने कहा - "एक बार बाहर श्राभोगी बेटी ?” सरस्वतीनं गरदन हिलाकर जवाब दिया- "नहीं" निधिरामको बड़ा आश्चर्य हुआ, सरस्वती तो बिना बातचीत के रहनेवाली नहीं। पूछा - "तुम्हारे लड़के वाले सब अच्छी तरह से है न, बिटिया ?" अत्र सरस्वती बोली - " वे सब मैंने रशियाको दे दिये हैं।" इसके बाद और कोई प्रश्न सरसुती कुछ बोली नहीं; पीछेसे उसका छोटा भइया बोल उठा - " अम्माने कहा है, जीजी अब बाहर नहीं निकलेगी। जीजी बड़ी हो गई है न ।” - श्रच्छा ! इसीसे ! 1 कहीं निधिराम की निगाह में सरस्वतीका परिवर्तन ठीक तौर से दिखाई दिया। साल भर से उसने सरस्वतीकी नहीं देखा है, परन्तु एक साल पहले देश जाते समय जिस बातून चंचल लड़कीसे उसने बिदा ली थी, उसमें और इसमें जमीन आसमान का फ्रक है। निधिराम इससे किस भाषा में - किस विषय में - बातचीत करे, यकायक उम की कुछ समझ में न आया । जरा इधर उधर करके. घरसे जो वह नया पटाली गुड़ लाया था उसकी पोटली जंगले के सींकचों में से सरस्वतीके हाथमें दे कर बोला - "देशसे लाया हूँ सरसुती माँ, ले जाओ इसे। इसके बाद अपने घर-सम्बन्धी दो एक श्रसम्बद्ध बात कह कर निधिराम चला गया। अपने गाँवके कारीगर से वह विचित्र रंगके काठ के खिलौने बनवा लाया था, उनको पेटीसं निकालने का तो मौका ही न मिला । 1 दूसरे दिन निधिराम अपनी रोज की पेटी सिरपर लिये नीले मकान के जंगले के सामने आ खड़ा हुआ नीचेके कमरे में एक बड़ी चौकी पर बैठी सरस्वती किताब पढ़ रही थी । निधिरामने कोमल स्वरसे पूछा"क्या पढ़ रही हो, सरसुती माँ ?" सरसुतीने मुँह उठाकर निधिरामको देखकर हँसते * पटाली गुताके रसक बना हुआ थालीके मका जमा हुआ गुरु, जो खानमें बहुत ही स्वादिष्ट और सुगन्ध-युक होता है। - अनुवादक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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