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अनेकान्त
वर्ष १, किरण ६,७ है - । यहाँ पर यह कहना असंगत न होगा कि श्रेणिक इस दशामें इस विरोधके तीन समाधान संभव है:
और कूणिक के इतिहासका वर्णन दिगम्बर ग्रन्थोंकी (१) या तो श्रेणिकके पूर्व-भव-वर्णनवाला पाठ अपेक्षा श्वेताम्बर प्रन्थों में अधिक विस्तृत और प्रामा- प्रक्षिप्त है । यह समाधान बलवान् प्रतीत होता है, क्यों णिक है, जैमा कि ब्राह्मण पगण और बौद्ध ग्रन्थोंसे कि जहाँ तक मुझे मालूम है श्वेताम्बर, ब्राह्मण और तुलना करने पर प्रतीत होता है । श्वेताम्बर ग्रंथ निर- बौद्ध किसी भी ग्रंथमें श्रेणिकके पूर्व भवोंका वर्णन यावलीमें लिग्या है कि कूणिकने अपने पिता श्रेणिक नहीं मिलता XI को कैद कर लिया था और उसने कैदखानेमें ही प्रात्म- (२ या ग्रंथकर्ता की ही असावधानतामे विगंध हत्या करली । इमस कूणिकके नाम पर पितृहत्याका आ गया है। कलङ्क पाया । बौद्व ग्रन्थ महावश अध्याय २ गाथा (३) या पीछेके लिपिकारोन प्रतिलिपी करने २६-३३ में कृणिकको मुर्ख और (पित घातक लिखा भल करदी है। श्रेणिक पिताका नाम कुछ और होगा है। इसी प्रकार निरयावली में कूणिकका अपने नाना जिस लिपिकारों ने असावधाननासे कूणिक निम्य चेटककं माथ घोर युद्धका वर्णन है परन्तु उत्तरपुराण दिया है । आशा है कि पुराण और इतिहासके में इन बातोका उल्लंग्व नहीं है. x | शेताम्बर ग्रंथ अभ्यासी कोई सजन इस विषय पर अधिक प्रकाश श्रीपपातिक मत्रमें कूणिकको "भंभसारपत्त” अर्थात डालंग और निर्णय करने की चेष्टा करेंगे। भंभमाग्का पत्र लिखा है । भभसार शब्दके आधार पर ब्राह्मण पगणों और बौद्ध ग्रंथोंमें उलिग्वित बिम्बि नहीं कि वह एक व्यक्तिके मभी नामांका उरेग्व अपने प्रथमें कर (बिम्ब) मारका श्रेणिकम और उसके पत्र अजातशत्र खुद श्वेताम्बर प्रथम भी एक व्यक्तिक मभी नाम का एकत्र उ4 (पाली--अजानसत्त) का रिणकम तादात्म्य संबन्ध नहीं मिलता।
-सम्पादक स्थापित किया गया है। उत्तरपगगमें "भंभसार" का जब पूर्व पर विराध ही नहीं, जैसा कि शुरूके सम्पादकीय भी लव नही है ।
नोटमें प्रकट किया गया है, तब समाधानकी यह सारी कल्पना ध्य हो जाती है।
-सम्पादक - महजताम्बर प्रथाम इस नामका उग्व मिलनस हा उम X जिस हतुक माधार पर यहा उस पाठको प्रक्षिप्त क्तलाने
पुराणक कपनका) भयुक्त नही कहा जा सकता । हो मकतः साम किया जाता है वह बलवान् तो क्या होगा, उसमें कुछ मी है कि किक ताक नाम भी कम भधिक हो. जेमा वि.खुद जान मालम ना होती । बामणों भौर बौद्ध प्रयांकी बातको त. भगिक मार गिाकक कृयाका नाम एकमे मधिक थे। बोर ने दिया जाय, उनमें न मिलनेका तो कोई असरदी नही-श्व उनी नामोंमें मे एक नाम माग वाल मा
ताम्बर प्रथोंमें यदि श्रेणिकक पूर्व भिवोंका वर्णन नहीं है तो उससेमी -सम्पादक
यह नतीजानी निकाला जा सकता कि प्रेणिका कोई पूर्व.भव xभले ही उलापुरायामं इन बाताका उस परन्तु इमाम ।
नाथवा किमान उनका वान किपातीनी अबश्वेताम्बीय यह नही कहा जा मकता कि दमा दिगम्बर ग्रन्या में भी उनका
पथ पवभवाक वर्गानास बहुत कुछ भरे हुए है तब उनमें श्रेणिक २१ब नही है। प्रणिकचरित्रम रेणिकद्वारा वणिकर कदखाने में ..
म प्रधान पुष भवाका वर्णन न होना तो एक मावर्षकी हाल जाने मोर अमर मामहत्या कर लनेका पर उस है।
बात होगा।
-सम्पादक एसी हालत लेखक महाशयने दिगम्बर माहित्यक यत्किसि प्रव
जब तक पूर्व पर विराको अच्छी तरस सिबन कर दिया लोकमक प्राधार पर जो अनुमान बांधा मदोष है।
जाय तब तक प्रथकाकी प्रमावधानता कइंनका हमें कोई अधिकार -सम्पादक ही न.1।
-सम्पादक भई सर.१४, २३ कादि ।
+मनका हाता यदि लेखक महाशय यहा मूल पाठलो अ-इसके होनेसे जो नतीजा लेखक माशय निकालना चाहतेत करके उसमें लिपिकारों द्वारा हो सकने वाली भूलका कुछ पर
निकला जा सका। किसी प्रकार के लिये यह लाजिमी परके बतलाते।