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________________ वैशाख.ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] उत्तरपुराणमें पूर्वापर विरोध ३६१ तो त उनके दर्शन के लिये पाया । यह सुनकर श्रेणिक वर्णन भी उत्तरपुराण में है परंतु यहाँ अनुपयक्त होने बहुत प्रसन्न हुआ और अपने पूर्व भवोंका वृत्तान्त के कारण उद्धृत नहीं किया । पछुने लगा । इस पर गौतम मुनि कहने लगे कि हे आगे चल कर पर्व ७६ में कूणिक को चेलिनीका गजन त अपने तीसरे भवमें खदिरसार नामी भील पुत्र करके लिखा है वह प्रसंग इस प्रकार है:था और विन्ध्य पर्वतके कुटच नामी वन में रहता था। गौतम मुनि श्रेणिकको कहते हैं कि जब भगवान वहाँ में काल करके स्वर्ग में गया और देवायु पूर्ण महावीर निर्वाणको प्राप्त हो जायेंगे तो मुझे भी केवल हान पर कूणिक राजाकी श्रीमती रानीकी कूखमे पत्र- ज्ञान होजायगा । विहार करता हुआ एक बार में इमी रूपमें उत्पन्न हुआ। नगरमें इमी पर्वत पर ठहरूँगा । मेग आगमन सुनकर कृणिकको श्रेणिक बहुत प्याग था और वह इम इस नगरका राजा चेलिनीका पुत्र कुणिक अपने परिअपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था, इसलिये उमने वार-सहित पाकर मेग उपदेश सुनेगा और श्रावकधर्म ज्योनिषयों से पूछा कि मेरे पीछे राजा कौन होगा। अंगीकार करेगा । उन्होंने विचार करके कहा कि श्रेणिक । श्रेणिक को कुछ दूर और आगे चल कर लिया है कि जब दसरे भाई बन्धुओंकी ईर्ष्या बचानके लिये कृरिणकन जम्बकुमार दीक्षा लेगा नो कृणिक उसका निष्क्रमणउसमे कृत्रिम गेष प्रकट किया और उस देश-निकाला महोत्सव करेगा। दे दिया। इस अवस्थामे श्रेणिकने एक ब्राह्मण कन्याम ऊपर दिये हुए प्रमंगाम पर्व ७४ में कणिक को विवाह किया जिमकी कूख से अभयकुमार उत्पन्न श्रेणिक का पिता कहा है । पर्व ७५ में लिखा है कि हुआ जो बहुत बद्धिमान और चतुर है। अब किमी श्रेणिककी पटरानी चलिनी थी। पर्व ७६ में कणिकका निमित्त से कणिक ने स्वयं राज्य छोड़ दिया और चलिनीका पुत्र बननाया है। इसमें मिद्ध हुआ कि पर्व श्रेणिकका राजा बना दिया है। ७४ में कूणिकका गिणक का पिना माना है और पर्व पर्व ७५ के प्रारंभ में लिखा है कि एक दिन अर्जिका ७६ में कूगिणकको श्रेणिकका पूत्र माना है। चंदनाको देख कर श्रेणिकन गौतम गणधरदेवसं पहा उत्तरपराण के इम पूर्वापर विरोधका समाधान कि यह कौन है ! तब गणधरदेव ने कहा कि वैशालीक बहुत कठिन है। यह कहना कि शायर श्रेणिकके पिता गजा चेटक की लड़की है? उसके सात लड़कियाँ है। और पत्र दोनोंका ही नाम कूणिक हो, क्योकि भारत उनमेंसे सबसे बड़ी प्रियकारिणी तो कण्डनगर के राजा के कई गजवंशी में एक ही नामके दो या अधिक ना सिद्धार्थकी रनी है और चलिनी रीपटरानी होगय युक्तियुक्त नहीं। क्योंकि श्वेताम्बर प्रन्याम श्रेणिककं पिनाका नाम पमंगगड ( प्रमनजिम) लिया गणक न चेलिनीसे विवाह किम प्रकार किया इमका । ., पर्व.. ग्लाक १-२, ६-८, ४ २. उमरपुराण, पर्व ५४, नोक ३८५ । .. ., ग्लोक 3८.४। खाक ३६०,४१७,४१ ५., ,, श्लोक १३.१ । उत्तरपुराण में और सब जगह श्लोक ४१-२०,४२३.... "शिक" लिखा है परन्तु यहाँ “कृषि महाराज" = प्रावश्यकर्मिक गाथा १२८४ प प्राकृत टीका
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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